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'महागठबंधन' का पायलट प्रोजेक्ट मध्यप्रदेश से शुरू होगा...

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, बुधवार, 18 जुलाई 2018 (23:27 IST)
भोपाल। इस साल नवंबर में प्रस्तावित मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए सियासी हलचल तेज हो गई है और यह भी संभावना जताई जा रही है कि लोकसभा चुनाव के पूर्व 'महागठबंधन' का पायलट प्रोजेक्ट मध्यप्रदेश से शुरू हो सकता है। कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) का 'महागठबंधन' का उद्देश्य बीते 15 साल से काबिज भाजपा की सत्ता को उखाड़ फेंकना है। राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि कांग्रेस इस महागठबंधन की शुरुआत मध्यप्रदेश से कर सकती है।
 
 
19 जुलाई को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव दो दिवसीय यात्रा पर भोपाल पहुंच रहे हैं। वे पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ से मिलेंगे और फिर 20 जुलाई को अरुण यादव से चर्चा करेंगे। बंद कमरों में होने वाली चर्चा का केंद्रबिंदु गठबंधन ही रहेगा। कांग्रेस भी इस बात को समझ रही है कि यदि वह बसपा और सपा का 'हाथ' थाम लेती है तो उसके लिए शिवराज सरकार को सत्ता से बाहर करना आसान हो जाएगा।
 
मध्यप्रदेश में यादव समुदाय के लोग बड़ी संख्या में है। ऐसे में यदि गठबंधन होता है तो इसका सबसे ज्यादा फायदा कांग्रेस को मिलेगा। यह बात दीगर है कि समाजवादी पार्टी का मध्यप्रदेश में कोई अस्तित्व नहीं है, लेकिन पिछड़ा वर्ग का बड़ा वोट बैंक यहां है। यही कारण है कि कांग्रेस की नज़र उसी वोट बैंक पर लगी हुई जहां से उसे फायदा मिल सकता है। 
 
16 जुलाई को दिल्ली में कमलनाथ की मुलाकात बसपा अध्यक्ष मायावती से गठबंधन की संभावनाओं को लेकर पहले ही हो चुकी है। इस मुलाकात के बाद मध्यप्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता मानक अग्रवाल ने कहा कि प्रदेश अध्यक्ष पहले ही कह चुके हैं कि भाजपा को सत्ता से हटाने के लिए उनकी पार्टी बसपा जैसे समान विचारधारा वाले दलों के साथ चुनाव पूर्व तालमेल के लिए तैयार है।
 
230 सदस्यों वाली विधासभा सीटों के लिए 2013 में हुए चुनाव में सपा एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। इस लिहाज से बसपा के अलावा सपा को भी कांग्रेस के साथ जुड़ने में कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिए। मध्यप्रदेश में कुल 230 विधानसभा सीटें हैं। 
 
सीटों के गणित के लिहाज से देखें तो प्रदेश में 'एससी वर्ग' की 35 सीटें आरक्षित हैं, जिसमें से 2 कांग्रेस, 3 बसपा और 30 भाजपा के पास हैं। 'एसटी वर्ग' की 47 सीटें हैं, जिसमें से 32 भाजपा और 15 कांग्रेस के पास हैं। अगर कांग्रेस-बसपा-सपा का 'महागठबंधन' होता है तो सीधे-सीधे इसका नुकसान भाजपा को भुगतना पड़ सकता है। 
 
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कुल 230 सीटों के लिए कांग्रेस ने बसपा के साथ जो गठबंधन किया है, उसमें बसपा को 26 सीटें दी है। ये वे सीटें हैं, जहां बसपा का असर है। बुंदेलखंड और उत्तरप्रदेश की सीमा से लगने वाले गांव-शहर हैं। 
 
कांग्रेस की कोशिश यही है कि विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ पड़ने वाले वोट न बंट सकें। बसपा के बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से कांग्रेस नेताओं की मुलाकात इसी ओर इशारा कर रही है कि मध्यप्रदेश में पिछड़े वर्ग के जो 52 प्रतिशत वोटर हैं, उन्हें किसी तरह अपनी ओर आकर्षित किया जाए ताकि 15 साल से चल रहे भाजपा शासन को उखाड़ा जा सके।
 
कांग्रेस-बसपा-सपा के संभावित 'महागठबंधन' ने शिवराज सरकार की नींद उड़ाकर रख दी है। यही कारण है कि आगामी चुनाव में उन्होंने भी अपनी रणनीति में परिवर्तन करके उन सीटों पर अधिक फोकस किया है, जहां दलित-आदिवासी वोट बैंक है। महागठबंधन के बाद भाजपा को सबसे ज्यादा डर दलित-आदिवासी वोटबैंक के खिसकने का लग रहा है। 
 
अगर ये महागठबंधन बनता तो देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस को इसका कितना फायदा मिलता है। वरना बिहार में महागठबंधन हश्र तो सबको पता ही है।
 

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