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हिन्दू पिता और मुस्लिम मां की 12 साल की बेटी निशा ने इस तरह झेला 'बंटवारे का दर्द'

हमें फॉलो करें हिन्दू पिता और मुस्लिम मां की 12 साल की बेटी निशा ने इस तरह झेला 'बंटवारे का दर्द'
, सोमवार, 13 अगस्त 2018 (22:35 IST)
नई दिल्ली। उस बच्ची के लिए बंटवारे का दर्द कैसा होगा जिसके पिता एक हिन्दू और मां मुस्लिम हो? सिर्फ 12 साल की उम्र में अपनी डायरी में उसने अपनी मां के लिए खत लिखे, जो इस बात के जीवंत प्रमाण हैं कि उस दौर में उसके दिलो-दिमाग में क्या चल रहा था?
 
 
अपने 12वें जन्मदिन पर निशा को एक डायरी उपहार में मिली। उसमें उसने अपने विचार दर्ज किए। आज जब वह उन्हें पढ़ती है तो उसे लगता है कि वह कभी खुलकर उन विचारों को दूसरों से नहीं कह सकती थी। इस दौर में सिर्फ निशा ही नहीं बदल रही थी, बल्कि हालात भी तेजी से बदल रहे थे। देश इतना बदल गया है कि वह उसे नहीं पहचान पाती।
 
यह 1947 का साल था। हिन्दुस्तान का बंटवारा हो गया था। हिन्दू, मुस्लिम और सिखों के बीच हिंसा फैल रही थी। लोग एक देश से दूसरे देश जा रहे थे और वहां मची मार-काट में ढेर सारे लोग मारे जा रहे थे। निशा नहीं जानती थी कि वह सरहद की किस तरफ रहेगी?
 
उसकी मां उसे जन्म देने के बाद मर गई थीं। मां को खोने के बाद वह मातृभूमि खोने के बारे में सोच नहीं सकती थी। उसकी मां मुस्लिम थीं, लेकिन वह इस दुनिया से जा चुकी थीं। उसके पिता हिन्दू थे। उन्होंने कहा कि उनके लिए अब पाकिस्तान में रहना सुरक्षित नहीं है। और इस तरह निशा और उसके परिवार ने शरणार्थी बनकर सीमा के दूसरी तरफ जाने के लिए ट्रेन से और पैदल खतरनाक यात्रा शुरू की।
 
निशा ने अपनी मां के लिए डायरी में लिखे खत के जरिए जो बातें लिखी थीं, पेंग्विन ने उन्हें 'द नाइट डायरी' की शक्ल में प्रकाशित किया है। यह इतिहास के बेहद नाटकीय लम्हों और एक घर, अपनी पहचान और उम्मीदोंभरे भविष्य की एक लड़की की कहानी है।
 
लेखिका वीरा हीरानंदानी के मुताबिक इस उपन्यास में निरुपित काल्पनिक परिवार और उनके अनुभव मोटे तौर पर मेरे पिता के परिवार के पक्ष पर आधारित हैं। हीरानंदानी के पिता को इस किताब के किरदार निशा की तरह अपने माता-पिता और रिश्तेदारों के साथ मीरपुर खास से सीमा पार कर जोधपुर आना पड़ा।

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