Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

2 दिन बंद रहा राजघाट, सरकार की मनमानी के विरुद्ध आवाज उठाएं...

हमें फॉलो करें 2 दिन बंद रहा राजघाट, सरकार की मनमानी के विरुद्ध आवाज उठाएं...
- कुमार प्रशांत, अध्यक्ष, गांधी शांति प्रतिष्ठान
 
देश की राजधानी दिल्ली के राजघाट पर महात्मा गांधी की वह समा‍धि है, जहां देश-द‍ुनिया के हजारो लोग हर‍ दिन प्रणाम करने और प्रेरणा लेने आते हैं। यह क‍िसी सरकार का दिया पद्म पुरस्कारर नही है, लोकमानस में प्रतिष्‍ठित यह वह पवित्र प्रतिमा है, जिसकी तरफ अपिवत्र हेतु से बढ़े हर हाथ जल जाते हैं।

अभी ऐसा ही हुआ कि रविवार 24 जून 2018 को कागज पर लिखी और राजघाट के प्रवेश द्वारों पर चिपका दी गई एक सूचना से 24 और 25 जून को राजघाट उन सबके लिए बंद घोषित कर दिया गया जो बापू की स्मृति में सर झुकाने वहां आते है। यह फैसला किसने किया, क्यों किया और जो आज तक कभी नहीं हुआ था, वैसा फैसला करने के पीछे कारण क्या रहा, इसकी कोई जानकारी नागरिकों को दी नहीं गई।

ऐसी शमर्नाक कु्प्रथा चलती आई है कि जब भी कोई कुर्सीधारी औपचारिकता पूरी करने राजघाट आता है तो वक्ती तौर पर राजघाट सामान्य जनता के लिए बंद कर दिया जाता है,  तो 24 और 25 जून को कौन कुर्सीधारी वहां आया था? और दो दिनों की बंदी का औचित्त क्या था ? न राजघाट प्रशासन ने, न दिल्ली सरकार ने और न केद्र सरकार ने इस बारे मे कोई स्पष्टीकरण आज तक दिया है, लेकिन सच तो सच है जो छुपाने-दबाने-ढंकने से रूकता नहीं है।

तो सच यह है कि 24-25 जून 2018 के दो दिनों में, राजघाट के ठीक सामने स्थित गांधी स्मृति व दर्शन समि‍ति के परिसर में विश्य हिन्दू परिषद की बैठक चल रही थी, जिस कारण राजघाट पर ताला जड़ दिया गया। हमें पता नहीं है कि गांधी स्मृति व दर्शन समि‍ति, जो गांधीजी की स्मृतियों और विचार को जीवंत रखने के उद्देश्य से बनाई गई थी, उसे किसी निजी संस्था की बैठकों के लिए किस आधार पर दिया गया और वह भी विश्य हिन्दू परिषद जैसी संस्था को जिसका कभी दूर-दूर से भी महाता गांधी के आदर्शों व विचारों से नाता नहीं रहा है।

विश्य हिन्दू परिषद हो कि दूसरी कोई भी संस्था, सबको यह हक है ही कि वे अपनी विचार-बैठकें अपनी सुविधा की जगहों पर करें, लेकिन किसी को भी यह हक नहीं है कि वह किसी सावर्जनिक जगह का मनमाना इस्तेमाल करें। 
 
बापू-समाधि जैसी पवित्र जगह तो किसी ऐसे सार्वजनिक स्थल की श्रेणी में भी नहीं आती है, जिसका सरकार या सरकार की आड़ में चलनेवाली कोई संस्था अपने हित के लिए मनमाना इस्तेमाल करें, जब चाहे, उसे ताला मार दें। इतिहास गवाह है कि उसके एक थपेड़े से न जाने कितनी संस्थाएं और सत्ताधिश काल के गाल में समा गए है और समाज अपने पवित्र प्रतीकों के साथ आगे बढ़ता गया है।

राजघाट की मनमाना तालाबंदी पवित्र राष्ट्र भावना का अपमान है। हम इसकी निंदा ही नहीं करते हैं बल्कि समता व समानता के मानवीय मू्ल्यों में आस्था रखने वालों सारे देशवासियों से अपील करते है कि वे इस मनमानी और अपमान का खुला निषेध करें तथा शुक्रवार, 29 जून 2018 को अपने नगर-गांव-कस्बे के गांधी स्थल पर बड़ी संख्या में जमा हो और सरकार की इस मनमानी के विरुद्ध आवाज उठाएं।

हमें याद रखना चाहिए कि वह शुकवार का ही दिन था जब आज से कोई 70 साल पहले महात्मा गांधी को गोली मारी गई थी। किसी तरह की हिंसा नहीं, किसी का अपमान नहीं लेकिन सत्ता की मनमानी का सशक्त निषेध 29 जून 2018 का हमारा कार्यक्रम होगा। हम चाहते हैं कि केंद्र में हो कि राज्यों में, अक्ल के बंद दरवाजे खुलें, हम उस पर यह पहली दस्तक दे रहे हैं। (सप्रेस) 
 
साभार- देश की दो सबसे पुरानी व प्रतिष्ठित गांधी संस्था 'शांति प्रतिष्ठान तथा गांधी स्मारक निधि'

 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

आप जिसे भी करें डेट, पैरेंट्स को इसलिए नहीं आते पसंद