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परमाणु समझौते से अलग हुआ अमेरिका, ईरान भड़का, ओबामा ने कहा बड़ी भूल

हमें फॉलो करें परमाणु समझौते से अलग हुआ अमेरिका, ईरान भड़का, ओबामा ने कहा बड़ी भूल
वॉशिंगटन , बुधवार, 9 मई 2018 (09:56 IST)
वॉशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को 2015 में ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते से अमेरिका को अलग होने की घोषणा की। हालांकि ट्रंप के इस ऐलान के बाद तुरंत बाद ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने कहा कि उनका देश अमेरिका के बिना भी इस परमाणु समझौते का हिस्सा बना रहेगा। ओबामा ने ट्रंप को फैसले को बड़ी भूल करार दिया। 

फ्रांस के राष्ट्रपति एमानुएल मैक्रों ने इस फैसले पर दुख जताते हुए कहा है कि अमेरिका के इस फैसले से रूस, जर्मनी और ब्रिटेन निराश हैं।
 
ट्रंप ने कहा, 'ईरान समझौता मूल रूप से दोषपूर्ण है, इसलिए मैं ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका के हटने की घोषणा कर रहा हूं।' जिसके बाद उन्होंने ईरान के खिलाफ ताजा प्रतिबंधों वाले दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए।
 
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ईरान के मददगारों को चेतावनी : ट्रंप ने आगाह किया कि जो भी ईरान की मदद करेगा उन्हें भी प्रतिबंध झेलना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि इस फैसले से दुनिया में यह संदेश जाएगा कि अमेरिका सिर्फ धमकी ही नहीं देता है, बल्कि करके भी दिखाता है।
 
अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि ईरान परमाणु समझौते का गलत इस्तेमाल कर रहा है। ईरान उसे मिल रही परमाणु सामग्री का इस्तेमाल हथियार बनाने में कर रहा है। परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल का निर्माण कर रहा है। वह सीरिया, यमन और इराक में शिया लड़ाकों और हिजबुल्लाह जैसे संगठनों को हथियार सप्लाई कर रहा है।
 
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क्या बोले हसन रुहानी : ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने ट्रंप के इस फैसले की कड़े शब्दों में निंदा की है। उन्होंने कहा कि उनका देश अगले सप्ताह से पहले से कहीं अधिक मात्रा में यूरेनियम का संवर्धन करेगा। रूहानी ने कहा कि मैं ट्रंप के फैसले पर यूरोप, रूस, चीन से बात करूंगा।
 
ओबामा ने बताया बड़ी गलती : अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी इस फैसले को बड़ी भूल बताया है। उन्होंने कहा कि ट्रंप का यह फैसला दिशाहीन और नासमझी भरा है। इससे अमेरिका की वैश्विक विश्वसनीयता खत्म हो जाएगी।
 
क्या है ईरान परमाणु समझौता : जुलाई 2015 में अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन, फ्रांस और जर्मनी के साथ मिलकर ईरान ने परमाणु समझौता किया था। समझौते के मुताबिक ईरान को अपने संवर्धित यूरेनियम के भंडार को कम करना था और अपने परमाणु संयंत्रों को निगरानी के लिए खोलना था, बदले में उस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों में आंशिक रियायत दी गई थी।

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