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जनक दीदी की इको फ्रेंडली लाइफ स्टाइल देखकर चकित रह गए बच्चे

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जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट पर पहुंचकर श्री सत्यसांई स्कूल के छात्रों और उनके शिक्षक दल ने लंबे समय तक टिकने वाले विकास की विधियां सीखीं। सेंटर की निर्देशक श्रीमती जनक पलटा मगिलिगन ने इस दल को पूरा सेंटर घुमाया और अपनी जीवनशैली के बारे में विस्तार से बताया, जिसकी शुरुआत उन्होंने अपनी गाय गौरी और उसकी बछिया ऊर्जा के बारे में बताकर की।  

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श्रीमती जनक पलटा मगिलिगन ने बताया कि गाय सिर्फ स्वास्थ्यवर्धक दूध और अन्य डेयरी प्रोडक्ट्स का मुख्य स्त्रोत ही नहीं बल्कि वह असल में एक मां की तरह प्रेम करती है। गाय धरती माता के अच्छे स्वास्थ्य का प्रमुख जरिया है। उन्होंने कहा कि देश के मिट्टी को हमेशा उर्वरक बनाए रखने का तरीका भी सिर्फ गाय का गोबर और गोमूत्र है।  
 
गोमूत्र और गोबर कई तरह की तकलीफों को दूर करने के काम भी आते हैं। उन्होंने पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाने वाले गोबर से बने श्रीगणेशजी की प्रतिमा भी स्कूल से आए दल को दिखाई। श्री गणेश की मूर्ति को रंगने में इस्तेमाल किए गए रंग भी फूलों से बनाए गए थे। कच्चे नारियल में आम का पौधा रोपे हुए देखकर छात्र और उनके शिक्षक बेहद प्रसन्न नजर आए।  

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अक्सर लोग कहते हैं कि वे गाय पालते हैं लेकिन असलियत यह है कि गाय हमें पालती है। आधे एकड़ का यह फॉर्म अपने में पूरा है जहां ऑर्गेनिक, पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्धक खाने की चीजें उगाई जाती हैं। इससे बहुत अधिक समय और ऊर्जा की बचत होती है। सभी चीजें फॉर्म पर ही मिलने के कारण प्लास्टिक पॉलीथिन का उपयोग यहां नहीं होता और किसी तरह का कचरा नहीं निकलता।   
 
हर चीज बगीचे से ताजी ही आती है। जामुन, नीबू, सीताफल, पारिजात, कचनार, कटहल, महुआ, आंवला, बादाम, चेरी, मलबेरीज, अंजीर, आम, संतरे, सहजने की फली और टीकवुड के पेड़ देखकर छात्र आश्चर्य से भर गए। श्रीमती मगिलिगन ने अपने 'सतत भारत निर्माण' के विचार के क्रियान्वयन को भी फोटो के माध्यम से दिखाया। उन्होंने हजारों लोगों को 'सतत भारत निर्माण' का भागीदार बनाने की भी बात बताई। इस प्रक्रिया में शामिल होने से प्राकृतिक चीजों का निर्माण कर इन लोगों को रोजगार भी मिला।  
 
सेंटर की विजिट पर आए हुए दल के सदस्य फिर से तैयार होने वाली उर्जा के स्त्रोत और सौर ऊर्जा से भोजन बनाने की तकनीक देखकर बेहद खुश नजर आए। एक अन्य तकनीक, जिसका नाम ब्रिकेट्स यानी गोबर से बने ऑर्गेनिक गमले जिनमें मानसून के दौरान पुराने अखबारों और कृषि कचरे से घर पर बना ईंधन तैयार होता है, के बारे में तो उन्होंने कभी जीवन में न पढ़ा और न ही सुना। ऐसा पहली बार था जब छात्रों ने पहली बार ऐसी जीवन प्रक्रिया के बारे में जाना जिसमें प्रकृति के हर तत्व, इंसान, पशु, पक्षी, पेड़ पौधों के साथ मिलकर रहना और विकास करना शामिल है।   

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