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सद्गुण और संस्कार पर काव्य रचना...

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सुशील कुमार शर्मा

दोहे-
 
सद्गुण को अपनाइए, सद्गुण सुख की खान।
सद्गुण से साहस मिले, नीचा हो अभिमान।
 
बुरे विचारों को तजे, बने आचरण शील।
सद्गुण से सिंचित करे, विनय-विवेक-सुशील।
 
सद्गुण से वंचित रहें, काम-क्रोध-मद-लोभ।
कायरता मन में रहे, जीवन बने विक्षोभ।
 
साहस और विवेक हैं, सद्गुण की पहचान।
जीवन संयम से जियो, सब कोई दे सम्मान।
 
कांटोंभरा है रास्ता, सद्गुण से आसान।
सद्गुण जीवन में रहे, क्यों भटके इंसान।
 
कुंडलियां-
 
चिंतन ऐसा कीजिए, मन में रहे उमंग।
जीवन दशा सुधारिए, मन सद्गुण के संग।
 
मन सद्गुण के संग, लगन अंदर हो ऐसी।
जीवन बने पतंग, डोर सद्गुण के जैसी।
 
कह सुशील कविराय, मथो तुम ऐसा मंथन।
जीवन हो नवनीत, मथानी जैसा चिंतन।
 
जीवन के निर्माण में, सद्गुण बनें विशिष्ट।
संस्कार गर न मिलें, बालक बने अशिष्ट।
 
बालक बनें अशिष्ट, आचरण आती लघुता।
जीवन हो प्रतिकूल, बढ़े मन अंदर पशुता।
 
कह सुशील कविराय, संयमित ऐसा हो मन।
सुन्दर-सुघड़ विचार, नियंत्रित होता जीवन।
 

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