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अल्लाह से इनाम लेने का महीना है माह-ए-रमजान

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* रमजान पर विशेष : आज भी प्रासंगिक है रमजान का संदेश...  
 
खुद को खुदा की राह में समर्पित कर देने का प्रतीक पाक महीना ‘माह-ए-रमजान’ न सिर्फ रहमतों और बरकतों की बारिश का वकफा है बल्कि समूची मानव जाति को प्रेम, भाईचारे और इंसानियत का संदेश भी देता है। मौजूदा हालात में रमजान का संदेश और भी प्रासंगिक हो गया है।
 
इस पाक महीने में अल्लाह अपने बंदों पर रहमतों का खजाना लुटाता है और भूखे-प्यासे रहकर खुदा की इबादत करने वालों के गुनाह माफ हो जाते हैं। इस माह में दोजख (नरक) के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और जन्नत की राह खुल जाती है।
रोजा अच्छी जिंदगी जीने का प्रशिक्षण है जिसमें इबादत कर खुदा की राह पर चलने वाले इंसान का जमीर रोजेदार को एक नेक इंसान के व्यक्तित्व के लिए जरूरी हर बात की तरबियत देता है। 
 
पूरी दुनिया की कहानी भूख, प्यास और इंसानी ख्वाहिशों के गिर्द घूमती है और रोजा इन तीनों चीजों पर नियंत्रण रखने की साधना है। रमजान का महीना तमाम इंसानों के दुख-दर्द और भूख-प्यास को समझने का महीना है ताकि रोजेदारों में भले-बुरे को समझने की सलाहियत पैदा हो।
 
रोजे के दौरान झूठ बोलने, चुगली करने, किसी पर बुरी निगाह डालने, किसी की निंदा करने और हर छोटी से छोटी बुराई से दूर रहना अनिवार्य है।
 
रोजे रखने का असल मकसद महज भूख-प्यास पर नियंत्रण रखना नहीं है बल्कि रोजे की रूह दरअसल आत्म संयम, नियंत्रण, अल्लाह के प्रति अकीदत और सही राह पर चलने के संकल्प और उस पर मुस्तैदी से अमल में बसती है।
 
अमूमन साल में 11 महीने तक इंसान दुनियादारी के झंझावातों में फंसा रहता है लिहाजा अल्लाह ने रमजान का महीना आदर्श जीवनशैली के लिए तय किया है।
 
रमजान का उद्देश्य साधन सम्पन्न लोगों को भी भूख-प्यास का एहसास कराकर पूरी कौम को अल्लाह के करीब लाकर नेक राह पर डालना है। साथ ही यह महीना इंसान को अपने अंदर झांकने और खुद का मूल्यांकन कर सुधार करने का मौका भी देता है।
 
रमजान का महीना इसलिए भी अहम है क्योंकि अल्लाह ने इसी माह में हिदायत की सबसे बड़ी किताब यानी कुरान शरीफ का दुनिया में अवतरण शुरू किया था।
 
रहमत और बरकत के नजरिए से रमजान के महीने को तीन हिस्सों (अशरों) में बांटा गया है। इस महीने के पहले 10 दिनों में अल्लाह अपने रोजेदार बंदों पर रहमतों की बारिश करता है। 
 
दूसरे अशरे में अल्लाह रोजेदारों के गुनाह माफ करता है और तीसरा अशरा दोजख की आग से निजात पाने की साधना को समर्पित किया गया है।

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