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पुलिस ऑफिसर बनकर 'कटहल' की तलाश कर रहीं सान्या मल्होत्रा नहीं ढूंढ पाईं अपनी सोने की बालियां

हमें फॉलो करें पुलिस ऑफिसर बनकर 'कटहल' की तलाश कर रहीं सान्या मल्होत्रा नहीं ढूंढ पाईं अपनी सोने की बालियां

रूना आशीष

, गुरुवार, 18 मई 2023 (12:56 IST)
sanya malhotra interview : कटहल जैसी फिल्म के लिए तो मैं किसी भी तरीके से मना नहीं कर सकती थी। इसमें अलग-अलग रूप है और सच कहूं आपने जो ट्रेलर में देखा हो तो कुछ भी नहीं है। इससे कहीं ज्यादा मजा आपको पूरी फिल्म देखने के समय में आने वाला है। जहां तक मैं सोचती हूं कि मुझे कैसी फिल्म करनी चाहिए ताकि मेरा फिल्मों का सिलेक्शन सही रहे तो मैं बस दो बातों का ध्यान रखती हूं। एक इसमें मनोरंजन होना चाहिए। 

 
मैं जिस चीज को सुनकर मजे ले रही हूं। जाहिर है, मेरे दर्शक भी उससे देखेंगे तो उन्हें भी मजा आना चाहिए। दूसरी सबसे ज्यादा अहम बात यह कि मैं इस तरीके के रोल कर रही हूं। क्या वह किसी के लिए प्रेरणा का विषय बन रहे हैं। जो मैं बोल कर रही हूं इस समय, किसी भी उम्र की महिला हो, चाहे मुझसे छोटी हो, बड़ी हो, चाहे कोई लड़का ही क्यों नहीं क्या इसे देखकर वह सही इमेज बना रहा है। क्या मैं वह किरदार जी रही हूं जो मैं असल में हूं। मेरे से कई सारी महिलाएं हैं, जो सिर्फ एक काम नहीं करती हैं। महिलाएं एक साथ कई सारे काम कर सकती है। महिलाओं के सशक्तिकरण कर रही हूं ताकि लोग उनसे प्रेरणा लें। 
 
यह कहना है सान्या मल्होत्रा का, जो कि फिल्म कटहल के साथ एक बार फिर से लोगों के सामने आ रही हैं। इस फिल्म में वह एक पुलिस ऑफिसर की भूमिका में हैं। जिनका काम है तलाश करना और यह तलाश कटहल की है जो मंत्री जी के आहते से चुरा लिए गए हैं। 
 
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सोनाक्षी सिन्हा की दहाड़ में भी उन्होंने पुलिस यूनिफॉर्म पहना है और अब आप कटहल में युनिफॉर्म पहने दिखाई दे रहे हैं। 
जी हां, मैंने सोनाक्षी की पिक्चर्स पहले ही देख लिए थे। वह मुझे बड़ा अच्छा लगा था। जहां तक बात है हम दोनों की पुलिस यूनिफॉर्म पहने की तो अच्छी बात है। वैसे भी मैं किसी से कंपटीशन नहीं लगाती हूं। यहां तक कि मैं अपने आप से भी कोई कंपटीशन नहीं लगाती हूं, लेकिन मैं यह जरूर मानती हूं कि मैं जब भी कोई भी फिल्म करूं। तब वह ऐसी जरूरत हो जिस रोल या किरदार में मुझे विश्वास हो। 
 
आप की पहली कॉमेडी फिल्म है कटहल?
जी हां, यह पहली कॉमेडी फिल्म है। पगलैट में भी थोड़ा बहुत कॉमेडी थी। लेकिन उसमें कैसे था कि सिचुएशन ऐसी हो जाती है आपके साथ आपको ऐसा लगता है कि यह लड़की जिस हालत में है या तो आप को हंसी आ जाएगी या चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाएगी। लेकिन उसमें ड्रामा भी बहुत ज्यादा था। अब कटहल की बात करती हूं तो यह पूरी तरह से कॉमेडी फिल्म है और अब मेरी हालत सोचिए। मेरे सामने कितने बड़े-बड़े महारथी बैठे हैं। 
 
उनके सामने और उनके साथ में मिलकर मुझे काम करना है तो मैंने मन में ठान लिया था कि महाराथी तो है साथ में, तो कम से कम बिना रिहर्सल किए तो उनके सामने खड़ी नहीं होने वाली हूं और फिर एक यह भी सोच थी। मेरी कि जब इतनी अच्छी स्क्रिप्ट है तो मैं क्यों ना थोड़ी सी और प्रिपरेशन करके ही जाऊं ताकि स्क्रिप्ट को और बेहतर बना सकूं। ताकि मैं अपने किरदार को और बेहतरी से दिखा सकूं। 
 
सान्या अपनी बातों को आगे बढ़ाते हैं और कहती हैं कि इतने बड़े-बड़े आपके साथ जब काम करते हो। तब सबसे बड़ी बात यह है कि वह जो सीन चल रहा है उसको वैसे ही चलने दिया जाए। बिना रोक-टोक के उनकी छोटी से छोटी हरकत अगर आपने मिस कर दी है तो फिर तो यह समझ लीजिए कि एक चलती ट्रेन आपने छोड़ दी है। इतनी छोटी छोटी सी बातें करते हैं जिससे मुझे सीखने को बहुत मिलता है और बहुत मुश्किल हो जाता है कि उन सीन के दौरान आपको हंसी ना आए। 
 
कितनी बार ऐसा मेरे साथ हुआ कि मुझे लगा कि अब तो मैं फट जाऊंगी और इतना हंसूंगी। फिर अच्छी बात होती है कि जब बड़े लोगों के साथ काम करो या मंझे हुए कलाकारों के साथ काम करो तो आपको मदद भी बहुत मिल जाती है। मिसाल के तौर पर यह फिल्म ग्वालियर और उसके आसपास की कहानी है जो लहजा था मुझे पकड़ने में नहीं आ रहा था। पहले दो दिन मैं बड़ी परेशान रही मैं कैसे इसमें उस लहजे को अपनाऊं और रोल को अच्छा बनाऊं। तब ऐसे में मेरे साथ नेहा सराफ जो काम कर रही हैं मैंने उनसे मदद ली। उन्होंने मेरी मदद की, क्योंकि वह खुद भी बुंदेलखंड उस इलाके से हैं। फिर उस लहजे को बरकरार रखने की पूरी कोशिश की तो देखिए ना जब इतनी सारी चीज अच्छी हो रही हो तो आप भी खुद ब खुद उसमें रंग जाते हैं। 
 
फिल्म में तो कटहल गुम हुआ है। आप मुझे बताइए कभी आपके साथ ऐसा कुछ हुआ है कि बड़ी अजीब सी चीज गुम हो गई हो।
मेरी तो बहुत सारी चीजें गुम होती रहती हैं। अब यह फिल्म जब हम ग्वालियर में शूट कर रहे थे तब मेरे सोने की बालियां गुम हो गई थी। इतना ढूंढा इतना ढूंढा लेकिन नहीं मिली। मतलब जहां फिल्म में कटहल के लिए इन्वेस्टिगेशन कर रही हूं। शूट खत्म होने के बाद मेरा इन्वेस्टिगेशन मेरे सोने की बाली को लेकर हो जाया करता था, कहीं नहीं मिली। कितने लोगों से पूछा, फिर लगा होटल का कमरा ही तो नहीं खा गया सोने की बालियां मेरी। 
 
लेकिन सच कहूं तो एक समय के बाद में स्ट्रेस लेना छोड़ देती हूं। लगता है कि चलो ठीक है, गुम हो गया। शायद मेरे हाथ में नहीं लिखा था या मेरी किस्मत में नहीं लिखा था तो जिसने लिया होगा शायद उसकी किस्मत में लिखा था। शायद उससे उन सोने की बालियों की जरूरत मुझसे कहीं ज्यादा उसे होगी। चलो कोई बात नहीं जाने दो। दुख होता है कि सोने की बालियां थी लेकिन अब नहीं मिली तो क्या करूं, जहां तक बात है कटहल जैसे किसी चीज के गुम होने की तो ऐसा कुछ मेरा अभी तक गुम नहीं हुआ है। 
 

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