Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

गोवा की पहाडिय़ाँ

हमें फॉलो करें गोवा की पहाडिय़ाँ
- सुनीता नारायण

ND
हम एक विशाल खदान और खूबसूरत जलकुंड के बीच खड़े थे। स्थानीय़ कार्यकर्ता मुझे समझा रहे थे कि यह लौह अयस्क की खदान सालौलिम जलस्रोत के जलग्रहण क्षेत्र में स्थित है, जो दक्षिण गोवा का एकमात्र जलस्रोत है। जैसे ही मैंने अपने कैमरे को निकालकर तस्वीरें लेना प्रारंभ किया, एक जीप में भरकर आए लोगों ने हमें घेर लिया।

उन्होंने कहा कि वे खदान प्रबंधन की ओर से हैं और चाहते हैं कि हम यहाँ से बाहर चले जाएँ। हमने समझाया कि हम एक सार्वजनिक रास्ते पर खड़े हैं और यहाँ ऐसा कोई संकेत नहीं है, जो हमारे प्रवेश को अनधिकृत बताए पर वे हमारी बात सुनने के मूड में नहीं थे। उन्होंने हमारी जीप की चाबियाँ निकाल लीं और अनुचित ढंग से हमें मारने के लिए पत्थर उठा लिए। इससे पहले कि परिस्थितयाँ हमारे नियंत्रण से बाहर होती, हमने उस जगह को छोड़ने का निर्णय लिया। जब तक हम उस क्षेत्र से पूरी तरह बाहर नहीं निकल गए, वे हमारा पीछा करते रहे। उनके लिए ज्यादा महत्वपूर्ण यह था कि हम रुककर और तस्वीरें न खींच सकें।

इस विकास को देखकर तो मैं पूरी तरह से चकरा गई। गोवा, जो समुद्र के रेतीले किनारों, हरे-भरे पहाड़ों और यहाँ पर व्याप्त शांति तथा स्थिरता के लिए जाना जाता था। यही वह जगह भी है, जहाँ पर देम्पो, सालगाँवकर और टिम्बलोस जैसे खनिज तत्वों में रुचि रखने वाले उद्योगपतियों ने शिक्षा के प्रचार में योगदान दिया और कॉरपोरेट जगत में नैतिक मूल्यों को स्थान दिया।

क्यों वे प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण जलस्रोत के पास खदान बनाने की अनुमति दे रहे हैं? क्यों उन खदानों के बाहर या आसपास कहीं भी उनके मालिकों के नाम का साइनबोर्ड नहीं लगा है? प्रदेश पर अपना नियंत्रण रखने वाले ऐसा क्यों होने दे रहे हैं? इस स्वर्ग का क्या होगा, जब यहाँ पर हिंसा पर कोई लगाम नहीं होगी और वातावरण में तनाव व्याप्त हो जाएगा? मुझे इसका उत्तर जल्द ही मिल गया।

अगले गाँव कोलोंबा में मुझे दोबारा घेर लिया गया। खदान मालिकों के गुंडों द्वारा नहीं, बल्कि गाँव की औरतों के द्वारा। हम एक पहाड़ी के शिखर पर खड़े होकर नारियल और काजू के वृक्षों के बीच स्थित एक गाँव देख रहे थे। लेकिन जहाँ हम खड़े थे, वहाँ पर बुलडोजर, ट्रक और खुदाई की मशीनें बहुत तेजी से अपना काम कर रही थीं। वे पहाड़ों को तोड़ रहे थे, कीचड़ फेंक रहे थे, अपशिष्ट फेंककर लौह अयस्क निकाल रहे थे। उत्तेजित औरतों ने मुझे बताया कि खदान का काम अभी चालू ही हुआ है, लेकिन उनके झरने वैसे ही सूख रहे हैं। हरी जमीन पर लाल रंग के कीचड़ मिलकर निरा रंग-संयोजन बना रहे थे।

वे मुझे नीचे गाँव में ले गईं, जहाँ उन्होंने मुझे उनके खराब हो चुके खेत दिखाए। उन्होंने दिखाया कि किस तरह से खदान से निकलने वाला कचरा और टनों लाल कीचड़ पानी के झरनों में मिलाया जा रहा है। वे मुझे एक घर में ले गईं, जिसकी दीवारें खदानों में होने वाले डाइनामाइट विस्फोटों की वजह से बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई थीं। उस घर की मालकिन देवकी कातु वेलीप ने मुझे बताया कि जब वह इस संबंध में शिकायत लेकर खदान मालिकों के पास पहुँची तो उनके सुपरवाइजर ने कहा कि यदि वह उनके खिलाफ दोबारा शिकायत करेगी तो वे लोग उसके घर को पूरी तरह से नष्ट कर देंगे।

समझने वाली बात है कि गाँव के लोगों की एक ही माँग है कि खदानों को बंद किया जाए। मैंने पूछा कि उनकी सहमति के बगैर ये अनुमति किसने दी। यह कंपनियाँ कौन हैं? और ये जमीन किसकी है, जिस पर खदानों का काम चल रहा है। मैंने जाना कि इस साक्षर प्रदेश में खदानों का काम छुपाकर गुप्त रूप से किया जा रहा है। ऐसा कल्पित रूप से मान लिया गया कि खदान मालिकों ने काम शुरू करने से पहले कंडीशनल इनवायरमेंट क्लीयरेंस ले लिया होगा, उस जमीन के लिए जो कि स्थानीय समुदाय के नियंत्रण में है तथा जिसे सिर्फ खेती के लिए लीज पर दिया जा सकता है। पहले पुर्तगाली और अब भारत सरकार द्वार दी गई रियायतों की वजह से इन प्रतिबंधों का पालन नहीं किया जाता या ये कोई मायने नहीं रखते है।
इन खदानों के स्वामित्व की स्थिति भी अस्पष्ट थी, गाँव वालों ने बताया कि किसी हीरालाल खोडीदास के पास जमीन की लीज है, लेकिन खदान का संचालन सोसिएदादे फारमेंटो, जो गोवा की सबसे बडी उत्खनन कंपनी है, अपने एजेंट रैसु नाइक के द्वारा कर रही है। उक्त एजेंट ने इस संबंध में गाँव के पूर्व सरपंच गुरुदास नाइक से अनुबंध कर रखा है। अब मैं समझ सकी कि खदानों के बाहर कंपनी के साइनबोर्ड क्यों नहीं लगे हैं। अपनी पहचान बताना उन्हें पसंद नहीं आ रहा है।
क्वानीमोल नामक दूसरे गाँव म्रें भी कमोबेश कुछ ऐसा ही दृश्य था। यहाँ पर भी खदान वाले झगड़ालू और गाँव वाले क्रोधित थे। केवल एक अंतर यह था कि यहाँ पर पहले मैगनीज के लिए खुदाई की जाती थी। अब लौह अयस्क के लिए की जा रही है। इससे अपशिष्ट अधिक पैदा होता था, जो खुले खेतों और जल स्रोतों को भर रहा था। यहाँ तनाव बड़ा स्पष्ट था। इस प्रकरण में खदान की लीज राजनीतिक चंद्रकांत नाइक के नाम पर थी, लेकिन किसी भंडारी के द्वारा संचालित की जा रही थी। इससे ज्यादा जानकारी मुझे कोई नहीं दे सका।

औरतों ने बताया कि वे लोग शिकायत कर चुके हैं, लेकिन कोई नहीं सुनता। उस गाँव की यात्रा के अगले दिन मुझे पता चला कि गाँव के लोगों ने एक समान ले जा रहें एक ट्रक को रोककर ड्राइवर के साथ मारपीट की। उन लोगों के खिलाफ एक प्रकरण दर्ज हो गया। पर क्या यह केवल उनकी गलती थी?

हम जिस गाँव से भी निकलते सबका यहीं दृश्य था। इस हृदय विदारक स्थिति को जिस तथ्य ने व्यंग्यात्मक बना दिया, वह यह कि यह गाँव गरीब नहीं थे, न ही वहाँ के लोगों में अपनी आजीविका और पैसों को लेकर किसी तरह की निराशा थी। ये सभी समृद्ध क्षेत्र हैं, जहाँ कृषि उत्पादकता आर्थिक समृद्धि का आधार है। यह उनकी खुशहाली है, जिसे धीरे-धीरे करके नष्ट किया जा है। मुझे लगा कि क्या यह चीन के अयस्क की माँग है, जिसकी वजह से खनिज तत्वों के दाम ऊँचाइयाँ छू रहे हैं और स्थानीय अर्थव्यवस्था की बानगी पर उसे पूरा किया जा रहा है।

यह विछून्दरम गाँव था, जिसका भविष्य मैं देख रही थी। यहाँ हमारी गाड़ी पहाड़ पर आगे नहीं बढ़ पाई। एक बडे़ गोलाकर पत्थर से रास्ता रोक दिया गया था। यह गाँव वालों द्वारा लगाया गया साधारण, लेकिन प्रभावशाली प्रतिरोध था। यह उनका अपना तरीका था, खदान वालों को उनके खेत के आसपास के सरकारी जंगलों और सिंचाई का पानी देने वाले झरने की पहुँच से बाहर रखने का। सूर्य की रोशनी में वहाँ के खेत हरे रंग की चमक से सराबोर थे।

मेरे दिमाग में वही छवि आ रही थी। जब मैं गाँव से शहर लौटी, मैंने टीवी पर पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम में सरकारी योजना के तहत जमीन अधिग्रहण करने पर भड़की हिंसा की तस्वीरें देखीं। तभी मैंने देखा कि नंदीग्राम की तरह हजारों गदर पनप रहे हैं। आश्चर्य होता है, हम कहाँ जा रहे हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi