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समान हक से रुकेगी भ्रूण हत्या

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- शाहिद ए. चौधर

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Devendra SharmaND
भारत सरकार जनसंख्या को नियंत्रित करना चाहती है। इसलिए उसका नारा है 'हम दो हमारे दो'। शोधकर्ताओं का कहना है कि पृथ्वी में मौजूदा जनसंख्या का 200,000 गुणा भार उठाने की क्षमता है। फिलहाल संसार की जनसंख्या 6.5 बिलियन है। यानी जमीन पर 13 लाख बिलियन लोग रह सकते हैं। इसलिए जनसंख्या विस्फोट कोई बड़ी समस्या नहीं है। समस्या यह है कि इस बढ़ती आबादी में औरत के लिए जगह नहीं है।

लिंगानुपात में इतना असंतुलन आता जा रहा है कि सरकार ने अब सड़कों पर यह बोर्ड लगाने शुरू कर दिए हैं- जब एक महिला के होंगे पति चार/ तब कहाँ मिलेगा पत्नी का प्यार। इसमें कोई दो राय नहीं है कि सुख, समृद्धि और बेहतर जीवन शैली के लिए छोटा परिवार होना चाहिए। लेकिन यह बात भी अपनी जगह सही है कि जनसंख्या वृद्धि को कुछ जरूरत से ज्यादा ही महत्वपूर्ण व चिंताजनक बना दिया गया है। खासकर इसलिए भी क्योंकि दुनिया भर में फर्टिलिटी में पतन हुआ है। जनसंख्या विकास दर में जबर्दस्त कमी आई है। दो दशक पहले संयुक्त राष्ट्र ने कहा था कि 2050 तक संसार की आबादी 11.16 बिलियन हो जाएगी। लेकिन अब फर्टिलिटी व विकास दर में कमी को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2050 तक दुनिया की जनसंख्या 9.37 बिलियन ही हो पाएगी और 11.5 बिलियन होने पर मानव आबादी में स्थिरता आ जाएगी।

दरअसल, जनसंख्या का भय हमें इसलिए सताता है क्योंकि हम भविष्य का आकलन आज की तकनीक व जीवनशैली के आधार पर करते हैं और ऐसा करते समय हम यह भूल जाते हैं कि अब से पचास बरस बाद जरूरत के हिसाब से तकनीक में भी विकास आ जाएगा। जबकि तकनीक का विकास विरोधाभास से खाली नहीं है। यह तकनीक की ही वजह है कि पिछले बीस वर्षों के दौरान अकेले भारत में एक करोड़ कन्या भ्रूणों का कोख में ही कत्ल कर दिया गया है। ऐसा 'लांसेट' में प्रकाशित एक शोधपत्र में कहा गया है।

यही कारण है कि आज भारत में प्रति हजार पुरुष पर 927 महिलाएँ हैं। कोख में कन्या भ्रूण की ये हत्याएँ अल्ट्रासोनोग्राफी तकनीक के कारण
लिंगानुपात में इतना असंतुलन आता जा रहा है कि सरकार ने अब सड़कों पर यह बोर्ड लगाने शुरू कर दिए हैं- जब एक महिला के होंगे पति चार/ तब कहाँ मिलेगा पत्नी का प्यार
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कराई जा रही हैं। हालाँकि सरकार ने 1994 में 'द प्री-कन्सेप्शन एंड पी-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक्स (प्रोहिबिशन ऑफ सेक्स सेलेक्शन) एक्ट' बनाया था जिसे 2002 में संशोधित करके जन्म से पहले बच्चे के सेक्स की जानकारी देना कानूनन अपराध बना दिया था। साथ ही जन्म से पहले सेक्स जानने वाले व्यक्ति पर पचास हजार रुपए जुर्माना और तीन साल की कैद का प्रावधान है और अजन्मे बच्चे का सेक्स बताने वाले डॉक्टर का प्रैक्टिस लायसेंस रद्द करने का आदेश है। लेकिन अभी तक इसके तहत किसी को सजा नहीं दी गई है। यह भी चिंताजनक बात है कि अजन्मे बच्चे का सेक्स जानकर कन्या भ्रूण की हत्या करने में वही पढ़े-लिखे लोग आगे हैं जो जनसंख्या वृद्धि का शोर मचाते हैं।

यह कानून और इस संदर्भ में कोशिशें इसलिए कामयाब नहीं हो रहीं क्योंकि अभी तक समाज में महिला को पुरुष के बराबर दर्जा ही नहीं मिला है। जब तक हमारी इज्जत और बेइज्जत का पैमाना औरत और उसकी वर्जिनिटी से जुड़ा रहेगा, तब तक औरत को बराबरी का मुकाम हासिल नहीं होगा।

जब तक समाज में लिंग बराबरी नहीं आएगी, तो लड़के की चाहत में आबादी भी बढ़ती रहेगी। इसलिए वाकया यह है कि लिंगानुपात में संतुलन और आबादी नियंत्रण के लिए ऐसी सामाजिक पहल की जाए जिससे औरत को मर्द के बराबर दर्जा हर सूरत और हर स्थिति में मिलता रहे। बराबरी पाकर महिला में अपने बच्चों की संख्या के संदर्भ में फैसला लेने का साहस भी।

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