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जरूरत है, वसंत को अपने भीतर उतार लेने की

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वसंत पंचमी वाग्देवी सरस्वती का जन्मदिन माना जाता है। इस दिन आराधक सरस्वती की पूजा करते हैं। प्रेम के पर्व पर ज्ञान की देवी की आराधना केवल संयोग नहीं है। ज्ञान और विवेक के अभाव में उत्साह निरंकुश हो जाता है। यह पर्व जोश में होश का संकेत देता है। सीमेंट कांक्रीट के जंगलों में तब्दील होते शहरों में वसंत का आना कोई सूचना नहीं। काम से लदी जिंदगी दिन-रात टारगेट में उलझी रहती है। उदास चेहरों और बुझे दिलों को न वसंत के आगमन का भान है और न प्रकृति से बतियाने की फुर्सत। 
 
प्रेमियों का वसंत भी व्हॉट्सएप की लघु भाषा का संकेत भर बन गया है। न वैसे गीत रचने वाले रहे न उनका रसपान करने वाले। हम भले ही अपनी प्रकृति भूल जाएँ। तरक्की के जूनून में अपना स्वभाव खो दें। मगर प्रकृति ने अपना ढंग नहीं छोड़ा है। आज भी कहीं न कहीं, कोयल वैसे ही कूक रही है और टेसू खिल रहे हैं। हम ही जो इनसे नाता तोड़ बैठे हैं, तनावों को न्योता दे चुके हैं। 
 
हमारे आसमान में भी चांद चमक सकता है, खुशियों का गेंदा खिल सकता है, उल्लास की कोयल कूक सकती है और मिलन के पर्व मन सकते हैं। जरूरत है, वसंत को अपने भीतर उतार लेने की। 
 
यह तभी संभव है जब हम प्राकृतिक संपदा के धनी शहरों में ऋतुओं का बदलाव भी साफ-साफ दिखाई दें। लहलहाते वृक्ष को कभी सूखने नहीं दें। वसंत के आगमन की सूचना शहर का पौर-पौर वसंत के आने का संदेश दे रहा है। किस्म-किस्म के फूल चहक-चहक कर वसंत के आने का संदेश दे रहे हैं।


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