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दीदा-ए-तर याद आया

ग़ालिब की ग़ज़ल और मतलब

हमें फॉलो करें दीदा-ए-तर याद आया
फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
दिल जिगर तिश्ना-ए-फ़रयाद आय

जिगर तिशना--मतलब बहुत बेचैन। आज मुझे अपने आँसू बहाने के दिन याद आ गए। और हमारा दिल बेचैन हो उठा और अश्क बहाने की फ़रयाद करने लगा क्योंके उसे आँसू बहाने में कुछ ज़्यादा ही लुत्फ़ आता है।

दम लिया था न क़यामत ने हनोज़
फिर तेरा वक़्त-ए-सफ़र याद आया
तेरे जाने के बाद जो क़यामत टूटी थी, अभी उससे राहत भी नहीं मिली थी के फिर वो वक़्त याद आ गया जब तू रुख़्सत हुआ था। इस तरह हमारी बेचैनी और बढ़ गई।

ज़िन्दगी यूँ भी गुज़र ही जाती
क्यों तेरा राहगुज़र याद आया

हमारी ज़िन्दगी जैसी भी गुज़र रही थी गुज़र जाती। हमें तेरा रास्ता याद आया हमने सोचा इस पर चलकर शायद कुछ राहत मिले। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। इसलिए तेरा राहगुज़र हमें याद ही न आता तो अच्छा था।

क्या ही रिज़वाँ से लड़ाई होगी
घर तेरा ख़ुल्द में गर याद आया

अगर हम जन्नत में आ गए और वहाँ रहते हुए अगर हमें तेरे घर की याद आई, तो हम वहाँ से निकलना चाहेंगे और वहाँ का दारोग़ा हमें निकलने नहीं देगा, तो ज़ाहिर है हमारी उस दारोग़ा से लड़ाई होगी।

फिर तेरे कूंचे को जाता है ख़्याल
दिल-ए-गुमगश्ता मगर याद आया

हमारा ख़्याल बार-बार तेरी गली की तरफ़ जा रहा है। अगर हमारा खोया हुआ दिल कहीं मिलेगा तो बस इसी गली में मिलेगा। तेर कूँचे की तरफ़ हमारे ख़्याल के जाने का मतलब है अपने खोए हुए दिल को वहाँ ढूँडना।

कोई वीरानी सी वीरानी है
दश्त को देख के घर याद आया

मैं घर की वीरानी से घबरा कर रेगिस्तान में रहने चला गया। लेकिन यहाँ की वीरानी तो बिल्कुल घर की वीरानी जैसी है। यहाँ की वीरानी देखकर मुझे अपने घर की याद आ रही है और ये भी एहसास हो रहा है के मेरा घर इतना वीरान है।

मैंने मजनूँ पे लड़कपन में असद
संग उठाया था के सर याद आया

लड़कपन के ज़माने में जब मजनूँ को पत्थर मारने का ख़्याल मेरे दिल आया तो मैं रुक गया। मुझे एहसास हुआ के मैं भी तो एक आशिक़ हूँ। अगर कहीं मेरी भी ऐसी हालत हो गई तो मुझ पर भी पत्थर बरसाए जाएँगे। संग तो मैंने मजनूँ के सर के लिए उठाया था लेकिन सर मुझे अपना याद आ गया।

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