Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

'सोहागन बेवा' : भाग-1

हमें फॉलो करें 'सोहागन बेवा' : भाग-1
शायर - जोश मलीहाबादी

नेक तुलसीदास गंगा के किनारे वक़्ते शाम
जा रहा था इक तरफ़ बश्शाश जपता हर का नाम

चर्ख़ की नैरंगियों से गुफ़्तगू करता हुआ
रंगे इरफ़ाँ रूह की तस्वीर में भरता हुआ

झाड़ियाँ थीं सब्ज़ दरिया के किनारे जाबजा
फूल कुम्हलाए हुए थे, सुस्त थी मौजे हवा

राह में जाले लगे थे, पत्तियोँ पर गर्द थी
लांबी-लांबी घास हिलती थी पितादर ज़र्द थी

जमअ थे इस तरहा पत्ते जाबजा सूखे हुए
जिस तरह शादी के ख़ेमे सुबहा को उलटे हुए

झाड़ियों से यूँ दबे पाँव गुज़रती थी हवा
बाँसुरी की दूर से जिस तरहा आती है सदा

यूँ पड़े थे ज़ेरे शाख़े गुल शगूफ़े चाक-चाक
जैसे गिरदे शम्मा वक़्ते सुबहा परवाने की ख़ाक

ख़ुदबख़ुद तारीक साहिल पर भरा आता था दिल
बढ़ रही थी तीरगी रह-रह के घबराता था दिल

कह रहा था रंग ग़म का अब्र छा जाने को है
सानेहा कोई क़यामत ख़ेज़ पेश आने को है

जाते-जाते एक गोशे की तरफ़ पहुँची नज़र
फ़रतेग़म से रह गया शायर कलेजा थाम कर

देखता क्या है कि दरिया की रवानी है उदास
जल रहा है इक जनाज़ा, रोशनी है आसपास

काँप-काँप उठती है जंगल की सियाही बार-बार
उठ रहे हैं लाश से शोले, फ़िज़ा है बेक़रार

कुन्दनी शोले हैं ग़लताँ, चम्पई रुख़सार में
दिल धड़कने से है जुम्बिश सी गले के हार में

एहतिमामे मर्ग में ये शायरी लबरेज़े यास
हात में मेंहदी रची है, बर में चोथी का लिबास

आह ये आलम के अब तक मस्त है मोजे नसीम
आ रही है जिस्म से शादी के फूलों की शमीम

कह रही थी क्या बताऊँ क्या तमन्ना दिल में है
शम्मा ये किसके जनाज़े की मेरी मेहफ़िल में है

ख़ाक से उठती है फिर करती है शोलों का तवाफ़
कहती है ऎ शर्म की देवी मुझे करना मुआफ़

मुड़के फिर मय्यत से कहती है इजाज़त दीजिए
अब तो इस ईंधन को भी जलने की रुख़सत दीजिए

आपको मौत आ गई आलम परेशाँ हो गया
घर अभी बसने न पाया था कि वीराँ हो गया

याद है हाँ मुझको शादी का तरन्नुम याद है
हाँ इन्हीं होंटों पे आया था तबस्सुम याद है

आपके सीने से शोले उठ रहे हैं बार-बार
जल रही है ये मेरी उजड़ी जवानी की बहार

पूछते उससे कि दुनिया क्या थी और क्या हो गई
जिसने घूँघट भी न उलटा था कि बेवा हो गई

फूँक गईं मेरी बहारें, जल गया मेरा सिंगार
तेरी बन्द आँखें हैं मेरी ज़ेबोज़ीनत का मज़ार

घर मेरे हमजोलियाँ मिलजुल के गाने आईं थीं
मालनें फूलों का गहना कल पहनाने आईं थीं

आज क़ुरबाँ गाहे इबरत पर चढ़ाने के लिए
मौत आई है मेरा ज़ेवर बढ़ाने के लिए

ज़िन्दगी जा दूर हो, दुनिया है आँखों में उजाड़
मौत! जलदी कर के टूटा है रंडापे का पहाड़
क्यों खड़ी है दूर यूँ डाले हुए तेवरी पे बल
मुझको भी खाले क़सम है तुझको ओ डाइन अजल

देखती है तू कि मैं हूँ किस क़दर जीने से सैर
ओ सियह रू मौत! ख़ूनी मौत, क्यों करती है देर
देख मेरे रुख़ पे अश्कों की फ़रावानी का सेल
अपने जबड़ों को हिला तारीक ग़ारों की चुड़ेल

रेंग नागिन रेंग मुझ बेवा को डसने के लिए
क्या यहाँ आई है मुँह अपना झुलसाने के लिए

क्यों खड़ी है यूँ अलग ठिटकी हुई सच-सच बता
मेरी बातों ने तुझे क्या मौत बरहम कर दिया
ये अगर है? तो झुका कर मैं तेरे क़दमों पे सर
माँगती हूँ दरगुज़र की भीक, मुझ पर रहम कर

क्रमश:

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi