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समाज और देश के निर्माण में शिक्षकों का अहम योगदान

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ब्रह्मानंद राजपूत

(5 सितंबर 2017 शिक्षक दिवस पर विशेष) 
 
शिक्षक समाज में उच्च आदर्श स्थापित करने वाला व्यक्तित्व होता है। किसी भी देश या  समाज के निर्माण में शिक्षा की अहम् भूमिका होती है। कहा जाए तो शिक्षक ही समाज का  आईना होता है।
 
हिन्दू धर्म में शिक्षक के लिए कहा गया है कि 'आचार्य देवो भव:' यानी कि शिक्षक या  आचार्य ईश्वर के समान होता है। यह दर्जा एक शिक्षक को उसके द्वारा समाज में दिए गए  योगदानों के बदले स्वरूप दिया जाता है। 
 
शिक्षक का दर्जा समाज में हमेशा से ही पूज्यनीय रहा है। कोई उसे 'गुरु' कहता है, कोई  'शिक्षक' कहता है, कोई 'आचार्य' कहता है, तो कोई 'अध्यापक' या 'टीचर' कहता है। ये सभी  शब्द एक ऐसे व्यक्ति को चित्रित करते हैं, जो सभी को ज्ञान देता है, सिखाता है और  जिसका योगदान किसी भी देश या राष्ट्र के भविष्य का निर्माण करना है। 
 
सही मायनों में कहा जाए तो एक शिक्षक ही अपने विद्यार्थी का जीवन गढ़ता है और  शिक्षक ही समाज की आधारशिला है। एक शिक्षक अपने जीवन के अंत तक मार्गदर्शक की  भूमिका अदा करता है और समाज को राह दिखाता रहता है, तभी शिक्षक को समाज में  उच्च दर्जा दिया जाता है।
 
माता-पिता बच्चे को जन्म देते हैं। उनका स्थान कोई नहीं ले सकता, उनका कर्ज हम किसी  भी रूप में नहीं उतार सकते, लेकिन एक शिक्षक ही है जिसे हमारी भारतीय संस्कृति में  माता-पिता के बराबर दर्जा दिया जाता है, क्योंकि शिक्षक ही हमें समाज में रहने योग्य  बनाता है इसलिए ही शिक्षक को 'समाज का शिल्पकार' कहा जाता है। 
 
गुरु या शिक्षक का संबंध केवल विद्यार्थी को शिक्षा देने से ही नहीं होता बल्कि वह अपने  विद्यार्थी को हर मोड़ पर राह दिखाता है और उसका हाथ थामने के लिए हमेशा तैयार  रहता है। विद्यार्थी के मन में उमड़े हर सवाल का जवाब देता है और विद्यार्थी को सही  सुझाव देता है और जीवन में आगे बढ़ने के लिए सदा प्रेरित करता है।
 
एक शिक्षक या गुरु द्वारा अपने विद्यार्थियों को स्कूल में जो सिखाया जाता है या जैसा वे  सीखते हैं, वे वैसा ही व्यवहार करते हैं। उनकी मानसिकता भी कुछ वैसी ही बन जाती है,  जैसा कि वे अपने आसपास होता देखते हैं इसलिए एक शिक्षक या गुरु ही अपने विद्यार्थी  को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। 
 
सफल जीवन के लिए शिक्षा बहुत उपयोगी है, जो हमें गुरु द्वारा प्रदान की जाती है। विश्व  में केवल भारत ही ऐसा देश है, जहां पर कि शिक्षक अपने शिक्षार्थी को ज्ञान देने के  साथ-साथ गुणवत्तायुक्त शिक्षा भी देते हैं, जो कि एक विद्यार्थी में उच्च मूल्य स्थापित  करने में बहुत उपयोगी है। 
 
जब अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश का राष्ट्रपति आता है तो वो भारत की गुणवत्तायुक्त  शिक्षा की तारीफ करता है। किसी भी राष्ट्र का आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास उस  देश की शिक्षा पर निर्भर करता है। अगर राष्ट्र की शिक्षा नीति अच्छी है तो उस देश को  आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता। अगर राष्ट्र की शिक्षा नीति अच्छी नहीं होगी तो वहां  की प्रतिभा दबकर रह जाएगी।
 
बेशक, किसी भी राष्ट्र की शिक्षा नीति बेकार हो, लेकिन एक शिक्षक बेकार शिक्षा नीति को  भी अच्छी शिक्षा नीति में तब्दील कर देता है। शिक्षा के अनेक आयाम हैं, जो किसी भी  देश के विकास में शिक्षा के महत्व को अधोरेखांकित करते हैं। वास्तविक रूप में ज्ञान ही  शिक्षा का आशय है, ज्ञान का आकांक्षी है- विद्यार्थी और इसे उपलब्ध कराता है शिक्षक।
 
एक शिक्षक द्वारा दी गई शिक्षा ही शिक्षार्थी के सर्वांगीण विकास का मूल आधार है।  प्राचीनकाल से आजपर्यंत शिक्षा की प्रासंगिकता एवं महत्ता का मानव जीवन में विशेष  महत्व है। शिक्षकों द्वारा प्रारंभ से ही पाठ्यक्रम के साथ ही साथ जीवन मूल्यों की शिक्षा  भी दी जाती है। शिक्षा हमें ज्ञान, विनम्रता, व्यवहारकुशलता और योग्यता प्रदान करती है।  शिक्षक को ईश्वरतुल्य माना जाता है। 
 
आज भी बहुत से शिक्षक, शिक्षकीय आदर्शों पर चलकर एक आदर्श मानव समाज की  स्थापना में अपनी महती भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। लेकिन इसके साथ-साथ ऐसे भी  शिक्षक हैं, जो शिक्षक और शिक्षा के नाम को कलंकित कर रहे हैं और ऐसे शिक्षकों ने  शिक्षा को व्यवसाय बना दिया है जिससे एक निर्धन शिक्षार्थी को शिक्षा से वंचित रहना  पड़ता है और धन के अभाव से अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ती है। 
 
आधुनिक युग में शिक्षक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। शिक्षक वह पथ-प्रदर्शक होता है,  जो हमें किताबी ज्ञान ही नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला सिखाता है। आज के समय में  शिक्षा का व्यवसायीकरण और बाजारीकरण हो गया है। शिक्षा का व्यवसायीकरण और  बाजारीकरण देश के समक्ष बड़ी चुनौती हैं। 
 
पुराने समय में भारत में शिक्षा कभी व्यवसाय या धंधा नहीं थी। इससे वर्तमान छात्रों को  बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। शिक्षक ही भारत देश को शिक्षा के  व्यवसायीकरण और बाजारीकरण से स्वतंत्र कर सकते हैं। देश के शिक्षक ही पथ-प्रदर्शक  बनकर भारत में शिक्षा जगत को नई बुलंदियों पर ले जा सकते हैं।
 
गुरु एवं शिक्षक ही वो हैं, जो एक शिक्षार्थी में उचित आदर्शों की स्थापना करते हैं और सही  मार्ग दिखाते हैं। एक शिक्षार्थी को अपने शिक्षक या गुरु के प्रति सदा आदर और कृतज्ञता  का भाव रखना चाहिए। 
 
किसी भी राष्ट्र का भविष्य निर्माता कहे जाने वाले शिक्षक का महत्व यहीं समाप्त नहीं  होता, क्योंकि वे न सिर्फ हमको सही आदर्श मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं बल्कि  प्रत्येक शिक्षार्थी के सफल जीवन की नींव भी उन्हीं के हाथों द्वारा रखी जाती है। किसी भी  देश या राष्ट्र के विकास में एक शिक्षक द्वारा अपने शिक्षार्थी को दी गई शिक्षा और शैक्षिक  विकास की भूमिका का अत्यंत महत्व है। 
 
आज (5 सितंबर 2017) शिक्षक दिवस है। आज का दिन गुरुओं और शिक्षकों को अपने  जीवन में उच्च आदर्श जीवन-मूल्यों को स्थापित कर आदर्श शिक्षक और एक आदर्श गुरु  बनने की प्रेरणा देता है।

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