Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

शेष यादें...

हमें फॉलो करें शेष यादें...

कमल शर्मा

webdunia
NDND
बचपन के वो बेफिक्र दिन, जहाँ न खाने की चिंता और न ही कमाने की। अपनी ही दुनिया होती है, जिसमें बड़ों के लिए रत्‍तीभर जगह नहीं होती। वैसी बेफिक्री चाहकर भी हम दुबारा हासिल नहीं कर सकते। आज जब उन दिनों को याद करती हूँ तो मन एक अनजाने बोझ से दबने लगता है। स्‍कूल छोड़े तो एक अरसा हो गया, लेकिन आज भी वो यादें जेहन में ताजा हैं, क्‍योंकि जिस बेफिक्री की मैं बात कर रही हूँ, वो मेरे हिस्‍से कभी नहीं आई।

आज भी वो शोर मेरे कानों में गूँजते हैं। मैं पढ़ाई में विशेष तो नहीं थी, लेकिन हाँ अपनी मेहनत से खुद को पिछड़ने भी नहीं देती थी। शिक्षक की लाडली होने के लिए यही पर्याप्‍त नहीं था। कक्षा में प्रथम आना ही उसकी पहली कसोटी थी। जो कमजोर थे, उन्‍हें गिनता ही कौन था। वो तो संख्‍या बढ़ाने वाले धरती के बोझ थे, उनकी क्‍या बिसात। परीक्षाएँ होती रहीं, और मैं कक्षा-दर-कक्षा पास होती रही, लेकिन इस दौरान मैं कभी खास नहीं बन पाई। आखिरकार स्‍कूल में हमारी विदाई का दिन भी आ गया, प्रथम आने वाली वो 'खास' शिष्‍याएँ, उन्‍हें खासतौर से भविष्‍य निर्माण की घुटि्टयाँ पिलाई जा रही थीं।

एक टीस....
मैं पढ़ाई में विशेष तो नहीं थी, लेकिन हाँ अपनी मेहनत से खुद को पिछड़ने भी नहीं देती थी। शिक्षक की लाडली होने के लिए यही पर्याप्‍त नहीं था। कक्षा में प्रथम आना ही उसकी पहली कसोटी थी। जो कमजोर थे, उन्‍हें गिनता ही कौन था।
webdunia
कॉलेज आते-आते सबने अपनी-अपनी राह चुन ली। कोई डॉक्‍टरी करने के सपने सँजोने लगी, तो किसी ने मास्‍टरी को ही अपना लक्ष्‍य मान लिया। मैं स्‍नातक करने मुंबई चली गई, कॉलेज में स्‍कॉरशिप मिली और ऑस्‍ट्रेलिया के एक विश्‍वविद्यालय में पढ़ने का मौका मिला।

अब पूरे परिवार के साथ कनाडा में हूँ, यहीं कॉलेज में मुझे लेक्‍चररशिप मिल गई। मेरी इच्‍छा हुई कि उन खास लोगों के बारे में कुछ जानकारी मिले, क्‍योंकि जीवन में उन्‍हें खास ही मिला होगा। लेकिन यह जानकर बड़ा आश्‍चर्य हुआ कि एक की शादी हो गई और उसने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी और एक उसी शहर में स्‍कूल टीचर हो गई है। यह जानकर थोड़ा सुकून भी हुआ, लेकिन स्‍कूल के दिनों की वो टीस आज भी ताजा हो उठती है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi