Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

क्या है श्राद्ध का अर्थ, परिचय, तिथियां और विधि

हमें फॉलो करें क्या है श्राद्ध का अर्थ, परिचय, तिथियां और विधि
webdunia

आचार्य राजेश कुमार

'श्राद्ध' का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितरों के लिए श्रद्धापूर्वक किए गए पदार्थ-दान (हविष्यान्न, तिल, कुश, जल के दान) का नाम ही श्राद्ध है। श्राद्ध कर्म पितृऋण चुकाने का सरल व सहज मार्ग है। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितरगण वर्षभर प्रसन्न रहते हैं। श्राद्ध कर्म से व्यक्ति केवल अपने सगे-संबंधियों को ही नहीं, बल्कि ब्रह्मा से लेकर तृणपर्यंत सभी प्राणियों व जगत को तृप्त करता है। पितरों की पूजा को साक्षात विष्णु पूजा ही माना गया है।
 
श्राद्ध परिचय-
 
प्रतिवर्ष भाद्रपद, शुक्ल पक्ष पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष कहते हैं। इस वर्ष श्राद्ध सोमवार, 24 सितंबर से प्रारंभ होंगे व सोमवार, 8 अक्टूबर 2018 को आखिरी श्राद्ध होगा।
 
शास्त्रों में मनुष्य के लिए कुल 3 ऋण बतलाए गए हैं-
 
1. देव ऋण, 2. ऋषि ऋण और 3. पितृ ऋण।
 
ये तीन प्रकार के ऋण बतलाए गए हैं। इनमें श्राद्ध द्वारा पितृ ऋण उतारना आवश्यक माना जाता है, क्योंकि जिन माता-पिता ने हमारी आयु, आरोग्य और सुख-सौभाग्यादि की वृद्धि के अनेक यत्न या प्रयास किए, उनके ऋण से मुक्त न होने पर मनुष्य जन्म ग्रहण करना निरर्थक माना जाता है। श्राद्ध से तात्पर्य हमारे मृत पूर्वजों व संबंधियों के प्रति श्रद्धा व सम्मान प्रकट करना है।
 
दिवंगत व्यक्तियों की मृत्यु तिथियों के अनुसार इस पक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन तिथियों में हमारे पितृगण इस पृथ्वी पर अपने-अपने परिवार के बीच आते हैं। श्राद्ध करने से हमारे पितृगण प्रसन्न होते हैं और हमारा सौभाग्य बढ़ता है।
 
श्राद्ध के 2 भेद माने गए हैं-
 
1. पार्वण और 2. एकोद्दिष्ट
 
पार्वण श्राद्ध अपराह्न व्यापिनी (सूर्योदय के बाद 10वें मुहूर्त से लेकर 12वें मुहूर्त तक का काल अपराह्न काल होता है।) मृत्यु तिथि के दिन किया जाता है, जबकि एकोद्दिष्ट श्राद्ध मध्याह्न व्यापिनी (सूर्योदय के बाद 7वें मुहूर्त से लेकर 9वें मुहूर्त तक का काल मध्याह्न काल कहलाता है।) मृत्यु तिथि में किया जाता है।
 
पार्वण श्राद्ध में पिता, दादा, पड़दादा, नाना, पड़नाना तथा इनकी पत्नियों का श्राद्ध किया जाता है। गुरु, ससुर, चाचा, मामा, भाई, बहनोई, भतीजा, शिष्य, फूफा, पुत्र, मित्र व इन सभी की पत्नियों श्राद्ध एकोद्दिष्ट श्राद्ध में किया जाता है।
 
मृत संबंधी व उनसे जुड़ी श्राद्ध तिथि-
 
पितृ पक्ष श्राद्ध की तिथियां-
 
24 सितंबर 2018 पूर्णिमा श्राद्ध
25 सितंबर 2018 प्रतिपदा श्राद्ध
26 सितंबर 2018 द्वितीया श्राद्ध
27 सितंबर 2018 तृतीया श्राद्ध
28 सितंबर 2018 चतुर्थी श्राद्ध
29 सितंबर 2018 पंचमी श्राद्ध
30 सितंबर 2018 षष्ठी श्राद्ध
1 अक्टूबर 2018 सप्तमी श्राद्ध
2 अक्टूबर 2018 अष्टमी श्राद्ध
3 अक्टूबर 2018 नवमी श्राद्ध
4 अक्टूबर 2018 दशमी श्राद्ध
5 अक्टूबर 2018 एकादशी श्राद्ध
6 अक्टूबर 2018 द्वादशी श्राद्ध
7 अक्टूबर 2018 त्रयोदशी श्राद्ध, चतुर्दशी श्राद्ध
8 अक्टूबर 2018 सर्वपितृ अमावस्या
 
जिस संबंधी की मृत्यु जिस चन्द्र तिथि को हुई हो उसका श्राद्ध आश्विन कृष्ण पक्ष की उसी तिथि के दुबारा आने पर किया जाता है। सौभाग्यवती स्त्रियों का श्राद्ध नवमी तिथि को किया जाता है। संन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी तिथि को किया जाता है। विमान दुर्घटना, सर्प के काटने, जहर, शस्त्र प्रहार आदि से मृत्यु को प्राप्त हुए संबंधियों का श्राद्ध चतुर्दशी को करना चाहिए। जिन संबंधियों की मृत्यु तिथि पता न हो, उनका श्राद्ध आश्विन अमावस्या को किया जाता है। जिन लोगों की मृत्यु तिथि पूर्णिमा हो, उनका श्राद्ध भाद्रपद पूर्णिमा अथवा आश्विन अमावस्या को किया जाता है। नाना, नानी का श्राद्ध आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को किया जाता है।
 
श्राद्ध करने की विधि-
 
श्राद्ध तिथि के दिन प्रात:काल उठकर किसी पवित्र नदी अथवा घर में ही स्नान करके पितरों के नाम से तिल, चावल (अक्षत) और कुशा घास हाथ में लेकर पितरों को जलांजलि अर्पित करें।

इसके उपरांत मध्याह्न काल में श्राद्ध कर्म करें और ब्राह्मणों को भोजन करवाकर स्वयं भोजन करें।

शास्त्रानुसार जिस स्त्री के कोई पुत्र न हों, वह स्वयं अपने पति का श्राद्ध कर सकती है।

इस दिन गया तीर्थ में पितरों के निमित्त श्राद्ध करने के विशेष माहात्म्य माना जाता है। प्राय: परिवार का मुखिया या सबसे बड़ा पुरुष ही श्राद्ध कार्य करता है।
 
उपरोक्त विधि से जिस परिवार में श्राद्ध किया जाता है, वहां यशस्वी लोग उत्पन्न होते हैं।

ऐसा विश्वास है कि श्राद्ध से प्रसन्न होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को आयु, धन, विद्या, सुख-संपत्ति आदि प्रदान करते हैं। पितरों के पूजन से मनुष्य को आयु, पुत्र, यश-कीर्ति, लक्ष्मी आदि की प्राप्ति सहज ही हो जाती है।

 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

24 सितंबर 2018 का राशिफल और उपाय...