Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

परिक्रमा क्या है जानिए महत्वपूर्ण जानकारी...

हमें फॉलो करें परिक्रमा क्या है जानिए महत्वपूर्ण जानकारी...

अनिरुद्ध जोशी

सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं और सभी ग्रहों को साथ लेकर यह सूर्य महासूर्य की परिक्रमा कर रहा है। संपूर्ण ब्रह्माण में चक्र और परिक्रमा का बड़ा महत्व है। भारतीय धर्मों (हिन्दू, जैन, बौद्ध आदि) में पवित्र स्थलों के चारो ओर श्रद्धाभाव से चलना 'परिक्रमा' या 'प्रदक्षिणा' कहलाता है।
 
तीर्थ यात्रा के लिए शास्त्रीय निर्देश यह है कि उसे पद यात्रा के रूप में ही किया जाए। यह परंपरा कई जगह निभती दिखाई देती है। पहले धर्म परायण व्यक्ति छोटी-बड़ी मंडलियां बनाकर तीर्थ यात्रा पर निकलते थे। यात्रा के मार्ग और पड़ाव निश्चित थे। मार्ग में जो गांव, बस्तियां, झोंपड़े नगले पुरबे आदि मिलते थे, उनमें रुकते, ठहरते, किसी उपयुक्त स्थान पर रात्रि विश्राम करते थे। जहां रुकना वहां धर्म चर्चा करना-लोगों को कथा सुनाना, यह क्रम प्रातः से सायंकाल तक चलता था। रात्रि पड़ाव में भी कथा कीर्तन, सत्संग का क्रम बनता था। अक्सर यह यात्राएं नवंबर माह के मध्य में प्रारंभ होती है।
 
 
हिन्दू धर्म में परिक्रमा का बड़ा महत्त्व है। परिक्रमा से अभिप्राय है कि सामान्य स्थान या किसी व्यक्ति के चारों ओर उसकी बाहिनी तरफ से घूमना। इसको 'प्रदक्षिणा करना' भी कहते हैं, जो षोडशोपचार पूजा का एक अंग है। प्रदक्षिणा की प्रथा अतिप्राचीन है। वैदिक काल से ही इससे व्यक्ति, देवमूर्ति, पवित्र स्थानों को प्रभावित करने या सम्मान प्रदर्शन का कार्य समझा जाता रहा है। दुनिया के सभी धर्मों में परिक्रमा का प्रचलन हिन्दू धर्म की देन है। काबा में भी परिक्रमा की जाती है तो बोधगया में भी। आपको पता होगा कि भगवान गणेश और कार्तिकेय ने भी परिक्रमा की थी। यह प्रचलन वहीं से शुरू हुआ है। 
 
परिक्रमा मार्ग और दिशा : 'प्रगतं दक्षिणमिति प्रदक्षिणं' के अनुसार अपने दक्षिण भाग की ओर गति करना प्रदक्षिणा कहलाता है। प्रदक्षिणा में व्यक्ति का दाहिना अंग देवता की ओर होता है। इसे परिक्रमा के नाम से प्राय: जाना जाता है। 'शब्दकल्पद्रुम' में कहा गया है कि देवता को उद्देश्य करके दक्षिणावर्त भ्रमण करना ही प्रदक्षिणा है।
 
प्रदक्षिणा का प्राथमिक कारण सूर्यदेव की दैनिक चाल से संबंधित है। जिस तरह से सूर्य प्रात: पूर्व में निकलता है, दक्षिण के मार्ग से चलकर पश्चिम में अस्त हो जाता है, उसी प्रकार वैदिक विचारकों के अनुसार अपने धार्मिक कृत्यों को बाधा विध्नविहीन भाव से सम्पादनार्थ प्रदक्षिणा करने का विधान किया गया। शतपथ ब्राह्मण में प्रदक्षिणा मंत्र स्वरूप कहा भी गया है, सूर्य के समान यह हमारा पवित्र कार्य पूर्ण हो।
 
 
दार्शनिक महत्व : इसका एक दार्शनिक महत्व यह भी है कि संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रत्येक ग्रह-नक्ष‍त्र किसी न किसी तारे की परिक्रमा कर रहा है। यह परिक्रमा ही जीवन का सत्य है। व्यक्ति का संपूर्ण जीवन ही एक चक्र है। इस चक्र को समझने के लिए ही परिक्रमा जैसे प्रतीक को निर्मित किया गया। भगवान में ही सारी सृष्टि समाई है, उनसे ही सब उत्पन्न हुए हैं, हम उनकी परिक्रमा लगाकर यह मान सकते हैं कि हमने सारी सृष्टि की परिक्रमा कर ली है। परिक्रमा का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी है।
 
 
ये हैं प्रमुख परिक्रमाएं:-
1.देवमंदिर और मूर्ति परिक्रमा:- जैसे देव मंदिर में जगन्नाथ पुरी परिक्रमा, रामेश्वरम, तिरुवन्नमल, तिरुवनन्तपुरम परिक्रमा और देवमूर्ति में शिव, दुर्गा, गणेश, विष्णु, हनुमान, कार्तिकेय आदि देवमूर्तियों की परिक्रमा करना।
2.नदी परिक्रमा:- जैसे नर्मदा, गंगा, सरयु, क्षिप्रा, गोदावरी, कावेरी परिक्रमा आदि।
2.पर्वत परिक्रमा:- जैसे गोवर्धन परिक्रमा, गिरनार, कामदगिरि, तिरुमलै परिक्रमा आदि।
3.वृक्ष परिक्रमा:- जैसे पीपल और बरगद की परिक्रमा करना।
3.तीर्थ परिक्रमा:- जैसे चौरासी कोस परिक्रमा, अयोध्या, उज्जैन या प्रयाग पंचकोशी यात्रा, राजिम परिक्रमा आदि।
4.चार धाम परिक्रमा:- जैसे छोटा चार धाम परिक्रमा या बड़ा चार धाम यात्रा।
5. भरत खण्ड परिक्रमा:- अर्थात संपूर्ण भारत की परिक्रमा करना। परिवाज्रक संत और साधु ये यात्राएं करते हैं। इस यात्रा के पहले क्रम में सिंधु की यात्रा, दूसरे में गंगा की यात्रा, तीसरे में ब्रह्मपु‍त्र की यात्रा, चौथे में नर्मदा, पांचवें में महानदी, छठे में गोदावरी, सातवें में कावेरा, आठवें में कृष्णा और अंत में कन्याकुमारी में इस यात्रा का अंत होता है। हालांकि प्रत्येक साधु समाज में इस यात्रा का अलग अलग विधान और नियम है।
6. विवाह परिक्रम:- मनु स्मृति में विवाह के समक्ष वधू को अग्नि के चारों ओर तीन बार प्रदक्षिणा करने का विधान बतलाया गया है जबकि दोनों मिलकर 7 बार प्रदक्षिणा करते हैं तो विवाह संपन्न माना जाता है।
 
 
किस देव की कितनी बार परिक्रमा?
1.भगवान शिव की आधी परिक्रमा की जाती है।
2.माता दुर्गा की एक परिक्रमा की जाती है।
3.हनुमानजी और गणेशजी की तीन परिक्रमा की जाती है।
4.भगवान विष्णु की चार परिक्रमा की जाती है।
5.सूर्यदेव की चार परिक्रमा की जाती है।
6. पीपल वृक्ष की 108 परिक्रमाएं करना चाहिए।
7. जिन देवताओं की प्रदक्षिणा का विधान नही प्राप्त होता है, उनकी तीन प्रदक्षिणा की जा सकती है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

बस यह 6 छोटे-छोटे काम करें जल्दी, आश्चर्यजनक रूप से धन में होगी वृद्धि