Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

पूजा मंदिर में करें या घर में?

हमें फॉलो करें पूजा मंदिर में करें या घर में?

अनिरुद्ध जोशी

* प्राचीनकाल में हिंदू पूजा-आरती नहीं, संध्यावंदन करता था। 8 प्रहर की संधि में उषाकाल और सायंकाल में संध्यावंदन की जाती है। 8 प्रहर के नाम:- पूर्वाह्न, मध्याह्न, अपराह्न, सायंकाल, प्रदोष, निशिथ, त्रियामा एवं उषा।
 
* प्राचीन मंदिर ध्यान या प्रार्थना के लिए होते थे। उन मंदिरों के स्तंभों या दीवारों पर ही मूर्तियां आवेष्टित की जाती थीं। मात्र शिवलिंग की पूजा का ही प्रचलन था। बौद्धकाल में जब से मूर्तिपूजा का अधिक प्रचलन शुरू हुआ तो लोग मंदिर में पूजा-आरती करने लगे।
 
* संध्यावंदन के समय वेदज्ञ लोग प्रार्थना, ज्ञानीजन ध्‍यान, भक्तजन कीर्तन करते हैं जबकि पुराणिक लोग देवमूर्ति के समक्ष पूजा-आरती करते हैं। तब सिद्ध हुआ कि हिन्दू प्रार्थना के 4 प्रकार हैं- 1.प्रार्थना-स्तुति, 2.ध्यान-साधना, 3.कीर्तन-भजन और 4.पूजा-आरती।
 
 
* कुछ विद्वान मानते हैं कि घर में पूजा का प्रचलन मध्यकाल में शुरू हुआ, जबकि हिन्दुओं को मंदिरों में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और उनके अधिकतर मंदिर तोड़ दिए गए थे। इसी कारण उस काल में बनाए गए मंदिर घर जैसे होते थे जिसमें गुंबद नहीं होता था।
 
* वर्तमान में घर में पूजा नित्य-प्रतिदिन की जाती है और मंदिर में पूजा या आरती में शामिल होने के विशेष दिन नियुक्त हैं, उसमें भी प्रति गुरुवार को मंदिर की पूजा में शामिल जरूर होना चाहिए।
* घर में पूजा करते वक्त कोई पुजारी नहीं होता जबकि मंदिर में पुजारी होता है, जो विधिवत पूजा और आरती करता है। कितने लोग हैं तो घर में नियमित पूजा करते हैं?
 
 
* मंदिर में पूजा के सभी विधान और नियमों का पालन किया जाता है, जबकि घर में व्यक्ति अपनी भक्ति और आत्मसंतुष्टि के लिए पूजा करता है।
 
* घर में मूर्तियों की संख्या सीमित होती है और घर की पूजा व्यक्तिगत मामला होता है, जबकि मंदिर में ऐसा नहीं है। घर में 2 शिवलिंग, 3 गणेश, 2 शंख, 2 सूर्य, 3 दुर्गा मूर्ति, 2 गोमती चक्र और 2 शालिग्राम की पूजा करने से गृहस्थ मनुष्य को अशांति होती है।
 
 
* घर में किसी एक ही देवी या देवता की पूजा करना चाहिए जिसे आप अपना ईष्ट मानते हैं। वैसे सवाल यह है कि घर में पूजा करें या कि मंदिर में पूजा करें। घर में पूजा करते हैं या नहीं? 
 
* लाल किताब के अनुसार कुंडली के दसवें भाव में गुरु है तो घर में मंदिर या पूजाघर बनाना नुकसानदायक होता है। माना जाता है कि लाल किताब की कुंडली अनुसार यदि 10वें भाव में गुरु है तो ऐसे जातक को घर में मंदिर नहीं बनाना चाहिए। खासकर ऐसा मंदिर जिसमें गुंबद या जिसका शिखर हो। इसके अलावा उसे घर में बड़ी-बड़ी मूर्तियां भी नहीं रखनी चाहिए। हो सकता है कि यह मूर्तियां देवी देवता की ना हो बस सजावट हेतु ही हो। हालांकि किसी लाल किताब के विशेषज्ञ को अपनी कुंडली दिखाकर यह निर्णय लें तो बेहतर होगा।
 
 
* घर और मंदिर का वातावरण अलग-अलग होता है। घर में सांसार होता है और मंदिर में अध्यात्म। मंदिर में आध्यात्मिक वातावरण के बीच पूजा, आरती या जप करने का उचित लाभ मिलता है।
 
* प्राचीन समय में घर में नहीं, घर के बाहर मंदिर या पूजाघर के लिए अलग स्थान होते थे जहां लोग एकत्रित होकर पूजा, आरती, यज्ञ या कोई मांगलिक कार्य करके उत्सव मनाते थे। मंदिर निजी और सार्वजनिक दोनों ही प्रकार के होते हैं।
 
 
* वर्तमान में घर में पूजा के प्रचलन के चलते लोग मंदिर कम ही जाते हैं। अत: उचित होगा कि सप्ताह में एक बार मंदिर में जरूर पूजा-अर्चना करें और हो सके तो मंगल या गुरुवार के दिन ही करें।

*घर में मंदिर नहीं रखने का मुख्‍य कारण है घर में घर-गृहस्थी का होना। घर-गृहस्थी भोग का विषय है और मंदिर योग या संन्यास का। क्या आप अपनी घर-गृहस्थी को मंदिर में रख सकते हैं। क्या आप मंदिर में अपनी रसोई बना सकते हैं? शयनकक्ष बना सकते हैं?

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

शनि ग्रह से बचने के 7 उपाय