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इन महत्वपूर्ण दिन और समय में पवित्र बने रहेंगे तो कभी संकट नहीं आएगा

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अनिरुद्ध जोशी

वर्ष, वर्ष, माह और दिन में कुछ माह, दिन और समय बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं। इन दिनों में यदि आप पवित्र बने रहें तो बहुत सारे संकटों से बच जाएंगे। लेकिन यदि आप इन दिनों की परवाह नहीं करते हैं तो फिर आपको बचाने वाला भी कोई नहीं होगा। तो आओ जानते हैं कि वे कौन-कौन से समय, दिन और वर्ष के माह या नक्षत्र हैं?
 
 
निषेध : पवित्र बने रहने का अर्थ यह है कि इन दिनों में आप शराब, मांस और सहवास जैसे कार्यों से दूर रहें। इस वक्त भोजन, पानी, संभोग, यात्रा, बहस, नृत्य, गान और हर तरह का वार्तालाप करने की मनाही है।
 
 
हिन्दू धर्म के अनुसार दिन और रात में जो संधिकाल होता है उस वक्त व्यक्ति को सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि वह समय सबसे संवेदनशील होता है। संधिकाल अर्थात जहां दिन और रात मिलते हैं या रात और दिन मिलते हैं। ऐसे 8 वक्त होते हैं जबकि काल बदलता है, लेकिन सुबह और शाम की संधि सबसे महत्वपूर्ण होती है।
 
 
क्या करें : ऐसे में यह वक्त ईश्वर भक्ति का वक्त है। इस काल में संध्यावंदन या भगवत पूजन आदि करना चाहिए।
 
दिन में सतर्क रहें इस समय से : शाम की संधि तो सबसे ही महत्वपूर्ण होती है। पुराणों में उल्लेखित है कि सूर्योदय से दिनास्त तक का समय भगवान ‍'शिव' का समय होता है जबकि वे अपने तीसरे नेत्र से त्रिलोक्य (तीनों लोकों) को देख रहे होते हैं और वे अपने नंदीगणों के साथ भ्रमण कर रहे होते हैं। इस काल में भूतों के स्वामी भगवान रुद्र का जो अपराधी होता है, वह कठोर दंड पाता है। इस काल को धरधरी का काल कहते हैं जबकि राक्षसादि प्रेत योनि की आत्माएं सक्रिय रहती हैं। इस समय जो पिशाचों जैसा आचरण करते हैं, वे नरकगामी होते हैं। इस काल को ज्योतिष में राहुकाल कहते हैं। इसी तरह रात के समाप्त होने और दिन की शुरुआत के उषाकाल के समय का भी ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि यह देवी और देवताओं के विचरण करने का समय होता है।
 
 
माह में सतर्क रहें इन दिनों से : हिन्दू धर्म में माह के 2 हिस्से हैं- पहला शुक्ल और दूसरा कृष्ण पक्ष। दोनों में ही तेरस और चौदस आती है। कृष्ण पक्ष में अमावस्या तो शुक्ल पक्ष के अंत में पूर्णिमा होती है। इसमें एकादशी को भी शामिल किया जाना चाहिए। उक्त दिनों में व्यक्ति को उपरोक्त निषेध बताएं अनुसार ही पवित्र रहना चाहिए।
 
 
वर्ष में सतर्क रहें : वर्ष में 4 गुप्त नवरात्रियां होती हैं। माताजी के ये पवित्र दिन साधना हेतु होते हैं। इन दिनों हर तरह का संयम और नियम रखना जरूरी है। वर्ष के प्रथम महीने अर्थात चैत्र में प्रथम नवरात्रि होती है। चौथे माह आषाढ़ में दूसरी नवरात्रि होती है। इसके बाद अश्विन मास में तीसरी और प्रमुख नवरात्रि होती है। इसी प्रकार वर्ष के 11वें महीने अर्थात माघ में चौथी नवरात्रि का महोत्सव मनाने का उल्लेख एवं विधान देवी भागवत तथा अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।
 
 
इसके अलावा रामनवमी, जन्माष्टमी, दीपावली, शिवरात्रि, हनुमान जयंती, मकर संक्रांति, गणेशोत्सव, ओणम और कुंभ के दौरान तथा इसके अलावा संपूर्ण श्रावण और कार्तिक माह में भी पवित्र बने रहें, क्योंकि हिन्दू धर्म में ये 2 माह बहुत ही पवित्र माने जाते हैं।

 कुछ ऐसे नक्षत्र भी होते हैं जिनमें पवित्र बने रहने की बहुत जरूरत है अन्यथा आप संकट में पड़ सकते हैं। संकट आपकी देह, मन, धन और परिवार पर हो सकता है। यदि आप उपरोक्त बताए समय, दिन और माह में पवित्र बने रहेंगे तो आपको कभी भी किसी भी प्रकार का संकट नहीं आएगा।
 

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