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शरीर से बाहर निकलने की अचूक विधि जानकर चौंक जाएंगे...

हमें फॉलो करें शरीर से बाहर निकलने की अचूक विधि जानकर चौंक जाएंगे...
, शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017 (00:02 IST)
क्या आप चाहते हैं अपने शरीर से बाहर निकलकर उड़ते हुए देश-दुनिया में घूमना? ध्वनि की गति से भी तेज गति से उड़कर आप अमेरिका या अमेरिका से भारत आ सकते हैं। निश्चित ही सुनने में यह आपको कठिन, अजीब या हास्यापद लगे, लेकिन यह बहुत ही आसान है। आप इसे आजमाएंगे तो निश्चित ही सफल हो जाएंगे। आप सूक्ष्म शरीर से बाहर निकलकर पुन: अपने शरीर में लौट सकते हैं।
 
जिन्होंने उपनिषदों और ध्यान की सभी विधियों का अध्ययन किया है संभवत: वे जानते हैं कि यह कैसे संभव होगा। दरअस्ल अब तो यह वैज्ञानिकों के द्वारा भी सिद्ध हो चुका है कि व्यक्ति के भीतर एक और शरीर होता है जो नाभि और मस्तिष्क के केंद्र से जुड़ा होता है। इसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं।
 
वैज्ञानि रिसर्च को जानने के लिए आगे क्लिक करें... 
मरने के बाद शरीर से आत्मा ऐसे निकलती है, देखिए तस्वीर
 
जब हम सो जाते हैं तो हमारा सूक्ष्म शरीर सक्रिय हो जाता है। यह शरीर ही स्वप्न देखता है और यही शरीर जागृत अवस्था में कल्पना करने की शमता रखता है। इसी से हमारे मन और बुद्धि जुड़ी हुई है; जिसका केंद्र है हमारे स्थूल मस्तिष्क के बीच स्थित पीनियल ग्रंथि। नाभि में उर्जा का मुख्‍य केंद्र होता है जबकि मस्तिष्क में चेतना का।

चित्र सौजन्य यूट्यूब
यह कंटेंट कॉपीराइट है।
 
अगले पन्ने पर कैसे होगा यह संभव...

किस तरह होगा यह संभव :
पहली स्टेप : साक्षी भाव या जागरण क्या है इसे अच्छी तरह समझकर यदि आप लगातार तीन माह तक ध्यान करते हैं तो यह सूक्ष्म शरीर और ज्यादा सक्रिय होकर आपके शरीर से बाहर निकलने के लिए तैयार हो जाता है। चलते, फिरते, देखते, सुनते, सोते, जागते आदि किसी भी कार्य को करते वक्त आप साक्षी भाव में रहे। अर्थात अपनी हर हरकत को देखने वाले बनें उसमें इनवाल्व होने वाले नहीं। जैसे कुछ लोग फिल्म देखते वक्त उसमें इतने इनवाल्व हो जाते हैं कि हंसने, रोने या भावुक होने लगते हैं। इसे भी बेहोशी से भरा मनुष्य कहते हैं।
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इसके लिए आपको पहले साक्षी भाव क्या होता है। कैसे इसे साधा जाए। कैसे ध्यान करें। इस संबंध में संतों की किताबों का गहन अध्ययन करना चाहिए। खुद को देखने की प्रक्रिया को समझना चाहिए। यंत्रवत जीवन को छोड़कर जागृत जीवन शैली को अपनाना चाहिए। दो विचारों के बीच जो खाली स्थान होना है उसी पर ध्यान देना चाहिए। दो श्वासों के बीच तो रिक्त स्थान है वही धर्म का रहस्य है, इससे गंभीरता से समझना चाहिए।

दूसरी स्टेप : अदि आपका साक्षी भाव गहराने लगे तब आप नींद में भी अपनी नींद और स्वप्न के भी साक्षी होने लगेंगे। आप अपनी नींद पर प्रयोग करें। सोना महत्वपूर्ण है, लेकिन सोते हुए नींद में ही जागकर स्वप्न देखना सबसे महत्वपूर्ण है। नींद से जागना और नींद में ही जाग जाना दोनों के फर्क को समझना जरूरी है। जब ऐसा होने लगेगा तो फिर स्वप्न पर आपका अधिकार हो जाएगा। लगातर ध्यान जारी रखने से फिर आपको स्वप्न तो नहीं आएंगे लेकिन आप नींद के भीतर जागे हुए मनुष्य बन जाएंगे। इसे बौद्ध धर्म में असुत्ता मुनि कहते हैं।
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जब व्यक्ति नींद में ही जाग जाता है तो वह चल रहे सपने को साक्षी भाव बनकर देखता रहता है और उसे यह भी महसूस होता है कि उसका शरीर गहरी नींद में सो रहा है। ऐसे व्यक्ति की स्थूल आंखें बंद रहती है लेकिन सूक्ष्म शरीर की आंखे खुल जाती है जिसके चलते वह सब कुछ देख सकता है।
 
सावधानी : नींद और जागरण में संतुलन बना रहे इसका विशेष ध्यान रखना जरूरी है। इसके लिए दिन में कसरत करना और उत्तम प्रकार का भोजन करना और व्रत रखना भी जरूरी है। यदि मसालेदार तामसिक, रासजी भोजन या नशा आदि का सेवन करते हैं तो इससे शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में आपकी संपूर्ण ध्यान या साक्षीभाव असफल हो जाता है। नींद और जागरण में भी बदलाव आ जाता है। तो भोजन और कसरत का विशेष आयोजन करें अच्‍छी नींद और जागरण के लिए।

तीसरी स्टेप : जब आप नींद और स्वप्न पर अधिकार कर लें तब आप आपको अपने सूक्ष्म शरीर में होने का अहसास होगा। अब आप धीरे धीरे शरीर से बाहर निकलने का प्रयास करें। पहले आप उठकर बैठ जाएंगे। आपको बिल्कुल हल्कापन लगने लगेगा। जैसे अंतरिक्ष में कोई वैज्ञानिक चहलकदमी करता है ठीक उसी तरह आपका यह सूक्ष्म शरीर में गुरुत्वाकर्षण की शक्ति से परे होकर हवा में तैरने लगेगा। इसीलिए आप धीरे धीरे उठने का प्रयास करने के बाद सर्वप्रथम खड़े हो जाएं।
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इस प्रक्रिया में जला भी जल्दबाजी न करें। कुछ दिन तक उठकर बैठने, बैठकर खड़े होने और फिर खड़े होकर फिर बैठने और फिर पुन: लेट जाने का ही अभ्यास करें। अब आप अपने सूक्ष्म शरीर से बाहर निकलने के लिए स्वतंत्र हैं।
 
सावधानी और चेतावनी : यदि आप अपने सूक्ष्म शरीर से निकलने में सक्षम हो गए हैं तो अब आप अपने स्थूल शरीर की रक्षा और उसकी उचित देखभाल का भी प्रबंध करें। यह स्थूल शरीर इस अवस्था में गहरी नींद में होता है। यदि आप कहीं बाहर विचरण कर रहे हैं और ऐसे में किसी व्यक्ति ने आपको जगाने का प्रयास किया तो इसके क्या परिणाम होंगे यह कहा नहीं जा सकता। हो सकता है कि आप एक क्षण में ही अपने शरीर में लौटकर जाग जाएं और यह भी हो सकता है कि ऐसे में नाभि से जुड़े आपके सूक्ष्म शरीर का स्थूल शरीर से संपर्क ही टूट जाए। संपर्क टूटने का अर्थ है मृत्यु। तो उपरोक्त साहसी कार्य करने से पहले उचित गुरू की सलाह जरूर लें।

दूसरे के शरीर में प्रवेश करना : यदि आप अपने स्थूल शरीर से बाहर निकलना सीख गए हैं तो अब आप किसी दूसरे के शरीर में भी प्रवेश कर सकते हैं। क्या होगा दूसरे के शरीर में प्रवेश करने से? आदि शंकराचार्य यह विधि जानते थे, और भी बहुत से साधक इस तकनीक से अवगत थे, लेकिन आम जनता के लिए तो यह बहुत ही कठिन जान पड़ता है। क्यों?
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योग में कहा गया है कि मनुष्य की सबसे बड़ी समस्या है 'चित्त की वृत्तियां'। इसीलिए योग सूत्र का पहला सूत्र है- योगस्य चित्तवृत्ति निरोध:। इस चित्त में हजारों जन्मों की आसक्ति, अहंकार काम, काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि से उपजे कर्म संग्रहित रहते हैं, जिसे संचित कर्म कहते हैं।
 
यह संचित कर्म ही हमारा प्रारब्ध भी होते हैं और इसी से आगे की दिशा भी तय होती है। इस चित्त की पांच अवस्थाएं होती है जिसे समझ कर ही हम सूक्ष्म शरीर को सक्रिय कर सकते हैं। सूक्ष्म शरीर से बाहर निकल कर ही हम दूसरे के शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।
 
इस चित्त या मानसिक अवस्था के पांच रूप हैं:- (1)क्षिप्त (2) मूढ़ (3)विक्षिप्त (4)एकाग्र और (5)निरुद्व। प्रत्येक अवस्था में कुछ न कुछ मानसिक वृत्तियों का निरोध होता है।
 
(1)क्षिप्त : क्षिप्त अवस्था में चित्त एक विषय से दूसरे विषय पर लगातार दौड़ता रहता है। ऐसे व्यक्ति में विचारों, कल्पनाओं की भरमार रहती है।
(2)मूढ़ : मूढ़ अवस्था में निद्रा, आलस्य, उदासी, निरुत्साह आदि प्रवृत्तियों या आदतों का बोलबाला रहता है।
(3)विक्षिप्त : विक्षिप्तावस्था में मन थोड़ी देर के लिए एक विषय में लगता है पर क्षण में ही दूसरे विषय की ओर चला जाता है। पल प्रति‍पल मानसिक अवस्था बदलती रहती है। 
(4)एकाग्र : एकाग्र अवस्था में चित्त देर तक एक विषय पर लगा रहता है। यह अवस्था स्थितप्रज्ञ होने की दिशा में उठाया गया पहला कदम है।
(5)निरुद्व : निरुद्व अवस्था में चित्त की सभी वृत्तियों का लोप हो जाता है और चित्त अपनी स्वाभाविक स्थिर, शान्त अवस्था में आ जाता है। अर्थात व्यक्ति को स्वयं के होने का पूर्ण अहसास होता है। उसके उपर से मन, मस्तिष्क में घुमड़ रहे बादल छट जाते हैं और वह पूर्ण जाग्रत रहकर दृष्टा बन जाता है। यह योग की पहली समाधि अवस्था भी कही गई है।
 
*ध्यान योग का सहारा : निरुद्व अवस्था को समझें यह व्यक्ति को आत्मबल प्रदान करती है। यही व्यक्ति का असली स्वरूप है। इस अवस्था को प्राप्त करने के लिए सांसार की व्यर्थ की बातों, क्रियाकलापों आदि से ध्यान हटाकर संयमित भोजन का सेवन करते हुए प्रतिदिन ध्यान करना आवश्यक है। इस दौरान कम से कम बोलना और लोगों से कम ही व्यवहार रखना भी जरूरी है।
 
*ज्ञान योग का सहारा : चित्त की वृत्तियों और संचित कर्म के नाश के लिए योग में ज्ञानयोग का वर्णन मिलता है। ज्ञानयोग का पहला सूत्र है कि स्वयं को शरीर मानना छोड़कर आत्मा मानों। आत्मा का ज्ञान होना सूक्ष्म शरीर के होने का आभास दिलाएगा।
 
कैसे होगा यह संभव : चित्त जब वृत्ति शून्य (निरुद्व अवस्था) होता है तब बंधन के शिथिल हो जाने पर और संयम द्वारा चित्त की प्रवेश निर्गम मार्ग नाड़ी के ज्ञान से चित्त दूसरे के शरीर में प्रवेश करने की सिद्धि प्राप्त कर लेता है। यह बहुत आसान है, चित्त की स्थिरता से सूक्ष्म शरीर में होने का अहसास बढ़ता है। सूक्ष्म शरीर के निरंतर अहसास से स्थूल शरीर से बाहर निकलने की इच्‍छा बलवान होती है।
 
*योग निंद्रा विधि : जब ध्यान की अवस्था गहराने लगे तब निंद्रा काल में जाग्रत होकर शरीर से बाहर निकला जा सकता है। इस दौरान यह अहसास होता रहेगा की स्थूल शरीर सो रहा है। शरीर को अपने सुरक्षित स्थान पर सोने दें और आप हवा में उड़ने का मजा लें। ध्यान रखें किसी दूसरे के शरीर में उसकी इजाजत के बगैर प्रवेश करना अपराध है।

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