Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

रामसेतु में इस्तेमाल हुआ था ये तैरने वाला पत्थर, देखिये

हमें फॉलो करें रामसेतु में इस्तेमाल हुआ था ये तैरने वाला पत्थर, देखिये
, शुक्रवार, 20 जनवरी 2017 (14:56 IST)
आपने तैरने वाला पत्थर देखा होगा। नहीं देखा होगा तो सुना होगा। कहते हैं कि इसी पत्थर से रामसेतु बनाया गया था। रामसेतु का असली नाम नल-नील सेतु है। भारत के दक्षिणी भाग के अलावा श्रीलंका, जापान सहित अनेक स्थानों में ऐसे पत्थर मिलते हैं। ये सामान्यतः द्वीपों, समुद्र तट, ज्वालामुखी के नजदीकी क्षेत्रों पर काफी मात्रा में मिलते हैं।
नल और नील के सान्निध्य में वानर सेना ने 5 दिन में 30 किलोमीटर लंबा और 3 किलोमीटर चौड़ा पूल तैयार किया था। शोधकर्ताओं के अनुसार इसके लिए एक विशेष प्रकार के पत्‍थर का इस्तेमाल किया गया था जिसे विज्ञान की भाषा में 'प्यूमाइस स्टोन' कहते हैं। यह पत्थर पानी में नहीं डूबता है। रामेश्वरम में आई सुनामी के दौरान समुद्र किनारे इस पत्थर को देखा गया था। आज भी भारत के कई साधु-संतों के पास इस तरह के पत्थर हैं।
 
तैरने वाला यह पत्थर ज्वालामुखी के लावा से आकार लेते हुए अपने आप बनता है। ज्वालामुखी से बाहर आता हुआ लावा जब वातावरण से मिलता है तो उसके साथ ठंडी या उससे कम तापमान की हवा मिल जाती है। यह गर्म और ठंडे का मिलाप ही इस पत्थर में कई तरह से छेद कर देता है, जो अंत में इसे एक स्पांजी, जिसे हम आम भाषा में खंखरा कहते हैं, इस प्रकार का आकार देता है।
 
webdunia
प्यूमाइस पत्थर के छेदों में हवा भरी रहती है, जो इसे पानी से हल्का बनाती है जिस कारण यह डूबता नहीं है। लेकिन जैसे ही धीरे-धीरे इन छिद्रों में पानी भरता है तो यह पत्थर भी पानी में डूबना शुरू हो जाता है। यही कारण है कि रामसेतु पुल कुछ समय बाद डूब गया था और बाद में इस पर अन्य तरह के पत्थर जमा हो गए।

माना जाता है कि रामसेतु के लिए प्रारंभ में डूबने वाले पत्थरों को डालकर एक बस बनाया गया होगा और फिर तैरने वाले पत्थरों को इकट्ठे करके उन्हें आपस में रस्सी से अच्‍छी तरह बांधा गया होगा। माना जाता है कि आज भी समुद्र के निचले भाग पर रामसेतु मौजूद है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

जब शिव जी ने माता पार्वती को बताया श्रीराम जन्म का कारण