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कौन-सी सिद्धि का उपयोग हनुमानजी ने किया था कब?

हमें फॉलो करें कौन-सी सिद्धि का उपयोग हनुमानजी ने किया था कब?
यह तो सभी जानते हैं कि हनुमानजी प्रमुख अष्ट सिद्धियों के ज्ञाता हैं। हालांकि हनुमानजी को इन अष्ट सिद्धियों के अलावा भी कई अन्य प्रकार की सिद्धियां प्राप्त हैं, जैसे- अनूर्मिमत्वम्, दूरश्रवण, दूरदर्शनम्, मनोजवः, कामरूपम्, परकायाप्रवेशनम्, स्वच्छंद मृत्युः, देवानां सह क्रीड़ा अनुदर्शनम्, यथासंकल्पसंसिद्धिः और आज्ञा अप्रतिहता गतिः।
अष्ट सिद्धियों के नाम : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व। उक्त 8 सिद्धियों को हनुमानजी ने रामायण काल में कब और कहां उपयोग किया था? अगले पन्ने पर जानिए उक्त घटनाक्रम को...
 
अगले पन्ने पर पहली सिद्धि अणिमा...
 

1. अणिमा : 'अणिमा' का अर्थ होता है अपने शरीर को अणु से भी छोटा कर लेना। इस सिद्धि के बल पर हनुमानजी कभी भी अति सूक्ष्म रूप धारण कर कहीं भी विचरण कर लेते थे और इसका किसी को भान भी नहीं होता था।
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एक बार जब श्रीराम के आदेश पर हनुमानजी को समुद्र पार कर लंका में प्रवेश करना था और चारों तरफ राक्षसों का पहरा था, ऐसे में उन्होंने अति सूक्ष्म रूप धारण कर संपूर्ण लंका का निरीक्षण किया था। अति सूक्ष्म होने के कारण हनुमानजी को न तो राक्षस देख पाए और न ही लंका के लोग।
 
इस सिद्धि का उपयोग हालांकि उन्होंने समुद्र पार करते वक्त सुरसा नामक राक्षसी द्वारा रास्ता रोकने के दौरान भी किया था। वे उसके मुंह में जाकर पुन: बाहर निकल आए थे।
 
अगले पन्ने पर दूसरी सिद्धि...
 

2. महिमा : 'महिमा' का अर्थ अपने शरीर को असीमित रूप में बड़ा कर लेना। जब हनुमानजी समुद्र पार करके लंका जा रहे थे, तब बीच रास्ते में सुरसा नामक राक्षसी ने उनका रास्ता रोक लिया। उस समय सुरसा को परास्त करने के लिए हनुमानजी ने स्वयं का रूप विशालकाय कर 100 योजन तक बड़ा कर लिया था। इस विशालता के कारण सुरसा डर गई थी।
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हालांकि हनुमानजी ने अपना यह विशाल रूप कई बार दिखाया। अशोक वाटिका में माता सीता को श्रीराम की वानर सेना के शक्तिशाली होने का विश्वास दिलाने के लिए भी उन्होंने इस सिद्धि का प्रयोग करने माता सीता को चमत्कृत कर दिया था।
 
अगले पन्ने पर तीसरी सिद्धि...
 

3. गरिमा : 'गरिमा' का अर्थ है असीमित रूप से भारी हो जाना। इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी स्वयं का भार किसी विशाल पर्वत के समान कर लेते थे। हालांकि रामायण काल में तो उन्हें इसकी कभी आवश्यकता पड़ी हो या नहीं, लेकिन महाभारत काल में जरूर पड़ी थी।
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गरिमा सिद्धि का उपयोग हनुमानजी ने महाभारत काल में भीम के समक्ष किया था। एक समय भीम को अपनी शक्ति पर घमंड हो गया था। उस समय भीम का घमंड तोड़ने के लिए हनुमानजी एक वृद्ध वानर का रूप धारण करके रास्ते में अपनी पूंछ फैलाकर बैठे हुए थे। भीम ने देखा कि एक वानर की लंबी पूंछ मार्ग में पड़ी हुई है, वृद्ध वानर ने संपूर्ण रास्ता रोककर रखा है। तब भीम ने वृद्ध वानर से कहा कि वे अपनी पूंछ तुरंत ही रास्ते से हटाएं।
 
भीम के ये वचन सुनकर वृद्ध वानर ने कहा कि मैं वृद्धावस्था के कारण अपनी पूंछ हटा नहीं सकता, आप स्वयं हटा दीजिए। इसके बाद भीम वानर की पूंछ हटाने लगे, लेकिन पूंछ टस से मस नहीं हुई। भीम ने पूरी शक्ति का उपयोग किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। अंतत: भीम को समझ में आ गई कि यह कोई साधारण वानर नहीं है। भीम को अपनी शक्ति का घमंड जाता रहा।
 
अगले पन्ने पर चौथी सिद्धि...
 

4.  लघिमा : 'लघिमा' का अर्थ है लगभग भाररहित हो जाना। इस सिद्धि से हनुमानजी स्वयं का भार बिलकुल हवा जैसा हल्का कर सकते हैं और पलभर में वे कहीं भी आ-जा सकते हैं और भारहीन किसी भी स्थान पर बैठ सकते हैं।
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जब हनुमानजी अशोक वाटिका में पहुंचे, तब वे अणिमा और लघिमा सिद्धि के बल पर सूक्ष्म रूप धारण करके अशोक वृक्ष के पत्तों पर बैठ गए थे। इन पत्तों पर बैठे-बैठे ही सीता माता को अपना परिचय दिया था।
 
अगले पन्ने पर पांचवीं सिद्धि...
 

5. प्राप्ति : 'प्राप्ति' का अर्थ है सभी स्थानों पर पहुंच जाना। सभी वस्तुओं को प्राप्त कर लेना। इस सिद्धि के बल पर व्यक्ति संसार की किसी भी वस्तु को तुरंत ही प्राप्त कर लेते हैं, पशु-पक्षियों की भाषा को समझ लेते हैं, आने वाले समय को देख सकते हैं।
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कहते हैं कि रामायण में इस सिद्धि के उपयोग से हनुमानजी ने माता सीता की खोज करते समय कई पशु-पक्षियों से चर्चा करके माता सीता को अशोक वाटिका में खोज लिया था।
 
अगले पन्ने पर छठी चमत्कारिक सिद्धि...
 

6. प्राकाम्य : 'प्राकाम्य' का अर्थ है जो भी इच्छा हो, उसे प्राप्त कर लेना। इसी सिद्धि के बल पर पृथ्वी की गहराइयों में पाताल तक जाया जा सकता है और आकाश में कितनी ही ऊंचाइयों पर उड़ा जा सकता है। यही नहीं, मनचाहे समय तक पानी में भी जीवित रहा जा सकता है।
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इसी सिद्धि के ही बल पर हनुमानजी चिरकाल तक युवा ही बने रहेंगे। साथ ही, वे चाहे तो अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी देह को धारण कर सकते हैं। इस सिद्धि से वे किसी भी वस्तु को चिरकाल तक प्राप्त कर सकते हैं। इसी के बल पर वे श्रीराम के भक्त हैं और अभी भी जीवित हैं।
 
अगले पन्ने पर सातवीं सिद्धि...
 

7. ईशीत्व : 'ईशीत्व' का अर्थ है ईश्वरस्वरूप हो जाना। 'ईशीत्व' अर्थात ईश्वरीय या दैवीय। इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी को दैवीय शक्तियां प्राप्त हुई हैं।
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इस सिद्धि से हनुमानजी किसी भी मृत प्राणी को फिर से जीवित कर सकते हैं। इसी सिद्धि के बल पर उन्होंने पूरी वानर सेना का कुशल नेतृत्व कर सभी वानरों पर नियंत्रण रखा था।
 
अगले पन्ने पर आठवीं सिद्धि...
 
 
 

8. वशीत्व : 'वशीत्व' का अर्थ है सभी को वश में कर लेने की शक्ति। इस सिद्धि के प्रभाव से ही हनुमानजी जितेंद्रिय हैं और मन पर नियंत्रण रखते हैं। इसी के कारण वे अतुलित बल धामा हैं।
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'वशीत्व' के कारण हनुमानजी किसी भी प्राणी को तुरंत ही अपने वश में कर लेते हैं। हनुमानजी के वश में आने के बाद प्राणी उनकी इच्छा के अनुसार ही कार्य करता है।

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