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जल्द दूर नहीं होंगी भारतीय गणतंत्र की मुसीबतें

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-इंदर मल्होत्रा
कोई भी ऐसा व्यक्ति जो वंश परंपरा की चापलूस फौज से नहीं आता हो, शायद ही इस बात से असहमत होगा कि अपनी 61वीं वर्षगाँठ पर भारतीय गणराज्य अत्यंत दुखद स्थिति में है। भारत को दुनिया के भ्रष्टाचारों में से एक बनाने वाले घोटालों के झंझावात और खाद्यान्नों की आकाश छूती कीमतों ने एक अरब से अधिक आबादी वाले देश के अधिसंख्य लोगों को हताशा के भंवर में धकेल दिया है। मंत्रिमंडल के इस निराश करने वाले फेरबदल से तो यही बात सामने आती है कि कांग्रेस के दबदबे वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार खुद को विश्वसनीयता के उस संकट से बाहर निकालने की कुछ खास इच्छा नहीं रखती, जिससे वह इन दिनों जूझ रही है।

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इन अकाट्य तर्कों पर नजर डालिए : मंत्रिमंडल में बहुचर्चित फेरबदल से पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बीच कम से कम छः बैठकें हुईं। लेकिन, किसी मंत्री को न तो भ्रष्टाचार और न ही अक्षमता के चलते पद से हटाया गया। इसका साफ मतलब है कि जवाबदेही जैसी कोई चीज वहाँ मौजूद नहीं है। ज्यादा समय नहीं हुआ जब सर्वोच्च न्यायालय ने विलासराव देशमुख पर अतीत में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने का अभियोग लगाया।

देशमुख पर विदर्भ के गरीब किसानों को कर्ज के जाल में फँसाने के आरोपी निजी ऋणदाताओं का बचाव करने का आरोप है। एक अन्य कैबिनेट मंत्री वीरभद्र सिंह पर हिमाचलप्रदेश उच्च न्यायालय में भ्रष्टाचार के मामले चल रहे हैं। ये दोनों मंत्रिमंडल में अपनी-अपनी सीट पर बने हुए हैं। उनके विभागों में दिखावे के लिए किए गए बदलाव का कोई अर्थ नहीं है।

विभिन्न कुख्यात मंत्रियों को एक आकर्षक मंत्रालय से हटाकर दूसरे में स्थानांतरित कर दिया गया। यह अत्यंत खेदजनक है कि सरकार बेशर्मी से उन लोगों का संरक्षण कर रही है, जिन्होंने विदेशों में स्थित गुप्त बैंक खातों में काली कमाई का भंडार इकट्ठा कर रखा है। मंत्रिमंडल में फेरबदल की घोषणा के दो ही दिन पहले मनमोहन सिंह सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा था कि वह उन 26 लोगों के नाम नहीं बताएगी जो योरप के एक छोटे से राज्य लिएक्टेंस्टाइन के बैंक में गुप्त खाते रखते हुए पकड़े गए हैं।

इससे शर्मनाक घटना उस दिन हुई जिस दिन सर्वोच्च न्यायालय ने विदेशों में जमा काले धन के बारे में कहा कि यह खुली लूट और दिमाग को हिला देने वाला अपराध है। उसने सरकार से कहा कि वह जनहित में इस मामले में सार्वजनिक जाँच शुरू कर इसकी रोकथाम करे।

सबसे दुखद बात यह थी कि प्रधानमंत्री ने खुद सार्वजनिक रूप से कहा कि कुछ संधियों के दायित्वों से बँधे होने के कारण वे इस मामले के दोषियों के नाम सामने नहीं ला सकते। आगे उन्होंने यह भी कहा कि काले धन को वापस लाने के लिए कोई तात्कालिक हल मौजूद नहीं है। सरकार ने केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के पद पर पीजे थॉमस की नियुक्ति का सर्वोच्च न्यायालय में जिस तरह बचाव किया वह बेहद असम्मानजनक था। यह ऐसी नियुक्ति थी जो कभी होनी ही नहीं चाहिए थी।

इन परिस्थितियों में अगर देश के लोग यह सोचते हैं कि देश को लूटने वालों की सूची को येन-केन-प्रकारेण सुरक्षित रखा जा रहा है तो उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता। ऐसा इसलिए है, क्योंकि इसमें कुछ ऊँचे रुतबे के राजनेताओं के साथ-साथ कारोबारियों और भ्रष्ट नौकरशाहों के नाम शामिल हैं। ऐसे में सोनिया गाँधी के पाँच सूत्री भ्रष्टाचार निरोधी योजना की भला क्या विश्वसनीयता है! यह त्रासदी ही है कि देश के मौजूदा शासक परिस्थितियों को बहुत छिछले दर्जे तक ले आए हैं।

बेहद मजबूती से और तमाम सद्भावना के साथ सत्ता में वापसी करने के महज 19 महीनों के भीतर ही सरकार पटरी से उतर गई दिखती है। ये गड़बड़ियाँ बहुत गहरे तक और बहुत दूर तक फैली हुई हैं। उदाहरण के लिए न्यायपालिका की ओर देखते हैं। कोलकाता उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने अपने खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया को खुद निमंत्रित किया। सर्वोच्च न्यायालय ने महसूस किया कि देश के सबसे बड़े उच्च न्यायालय यानी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कुछ तो गड़बड़ है।

देश के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने खुद को कीचड़ में सना पाया। इसी तरह सशस्त्र सेनाओं के मौजूदा और सेवानिवृत्त अधिकारियों को जमीन अथवा फ्लैट के मामलों में उलझा पाया गया। इनमें सेना प्रमुख और नौसेना के एडमिरल रैंक के अधिकारी भी शामिल थे। मुख्य विपक्षी दल भाजपा का रिकॉर्ड भी बहुत बेहतर नहीं है। हालाँकि, वर्तमान में उसने भ्रष्टाचार के खिलाफ झंडा बुलंद कर रखा है, लेकिन उसे याद दिलाए जाने की जरूरत है कि 2जी स्पेक्ट्रम लूट के लिए कांग्रेस की जिस सहयोगी यानी द्रमुक को दोष दिया जा रहा है वह राष्ट्र्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार के जमाने में उसकी सहयोगी पार्टी थी।

यहाँ तक कि आज भी भ्रष्टाचार के मामले पर भाजपा के दोहरे मानदंड हैं। वह दिल्ली में तो इसके खिलाफ नारा बुलंद करती है, लेकिन बेंगलुरू में महाभ्रष्टों को बचाती है। भाजपा अध्यक्ष ने यह खोज की है जो अनैतिक होता है वह अवैध नहीं होता! हमें इस दमघोंटू माहौल से बाहर निकलने के लिए क्या करना चाहिए? दुख है कि इसका तुरंत इलाज नहीं है।

कुछ आडंबरपूर्ण सुझाव हैं जैसे कि मौजूदा व्यवस्था को राष्ट्रपति शासन में बदलना, न्यायपालिका में सुधार, पुलिस, जाँच एजेंसियाँ और भी ढेर सारे सुधारों के सुझाव। किया यह जाना चाहिए कि सभ्य समाज को खड़े होकर जो कुछ हो रहा है उसका विरोध करना चाहिए और मौजूदा परिस्थितियों के लिए जिम्मेदार अपराधियों तथा धोखेबाजों के लिए मतदान करने से इनकार कर देना चाहिए। सत्ता और लालच के मद में चूर सत्तारुढ़ वर्ग ने शायद ट्यूनीसिया में हुए लोकप्रिय विद्रोह की ताकत को नहीं समझा होगा। लोगों को इसका अहसास कराना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

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