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गणतंत्र की देन है खुशहाल समाज

गणतंत्र दिवस विशेष

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आलोक मेहता

NDND
गणतंत्र की जयकार कश्मीर से नगालैंड तक गूँज रही है। भारत के साथ राजनीतिक क्रांतियाँ करने वाले कई देशों में पिछले छः दशकों के दौरान पूरी व्यवस्था बदल गई। संविधान बदल गए। विचारधाराएँ बदल गईं। राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों के तख्तापलट हिंसक क्रांति से हुए। जनता के लिए प्राथमिकताएँ बदलीं। दोस्त और दुश्मन भी बहुत बदले। इस दृष्टि से सारी कमजोरियों और समस्याओं के बावजूद भारतीय गणतंत्र की चमक और शक्ति बरकरार रहने पर हमें प्रसन्नता और गौरव का अनुभव क्यों नहीं होना चाहिए?

समय की आवश्यकता और नई चुनौतियों को ध्यान में रखकर भारतीय संविधान में अनेक संशोधन हुए, लेकिन मूलभूत विचारधारा, सिद्धांतों, आदर्शों और प्राथमिकताओं में कोई बदलाव नहीं आया। बाहरी हमलों, प्राकृतिक विपदाओं, आतंकवादी हमलों, प्रधानमंत्री और उनके उत्तराधिकारी की नृशंस हत्याओं, इमरजेंसी और कुछ क्षेत्रों में भयावह सांप्रदायिक नरसंहार के बावजूद लोकतंत्र की जड़ें नहीं हिलीं। लोकतांत्रिक आस्थाओं के कारण ही भारतीय समाज हर तूफान को झेलने के बाद अधिक दृढ़ता से आगे बढ़ता दिखाई दिया।

भारतीय राजनीति की बदबू से विचलित हम सब होते हैं, लेकिन उसी राजनीति से दूरदर्शी, समर्पित, निष्ठावान, विश्व के विभिन्न देशों के नेताओं से कई गुना बेहतर और ईमानदार प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपति भारत को मिले हैं। अमेरिकी लोकतंत्र का इतिहास ३०० वर्ष पुराना है और इस जनवरी में पहला अश्वेत राष्ट्रपति पद पर पहुँचा है और किसी महिला को तो यह पद अब तक नहीं मिला, जबकि पिछले ६० वर्षों में भारत ने अल्पसंख्यक-मुस्लिम, सिख, दलित और महिला राष्ट्रपति बनाकर गौरव महसूस किया है। महिला प्रधानमंत्री तो बहुत पहले भारत को मिल गई थीं। इसलिए हर बार गणतंत्र दिवस पर जब भारतीय सेना के साथ समाज को प्रतिबिंबित करने वाली झाँकियाँ तथा नर्तक टोलियाँ राजपथ से लाल किले तक निकलती हैं तो पूरी दुनिया में विविधता में एकता, अखंडता तथा दृढ़ता का संदेश देती हैं।

भारतीय संसद में चेहरे बदले हैं। एकछत्र राज की स्थितियाँ भी बदली हैं। गठबंधन सरकारों ने सफलता पाई है। अशोभनीय दृश्यों पर हाहाकार हुआ है, लेकिन संसद और चुनी हुई सरकारों से भारत के हर हिस्से को बहुत कुछ मिला है। ब्रिटेन जैसे देश में मतदान का प्रतिशत घटता गया है। दूसरी तरफ आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित हुए भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य में 70 प्रतिशत से अधिक लोगों ने हाल ही में चुनाव के जरिए अपनी सरकार चुनी है। इसी तरह छत्तीसगढ़ के गरीबों, पिछड़ों, आदिवासियों ने हिंसक नक्सलियों के गढ़ में 'सलवा जुडूम' अभियान का समर्थन करते हुए उग्रवादियों की राजनीतिक नाक काटते हुए पसंदीदा सरकार चुनी है। मणिपुर, मिजोरम और नगालैंड में अपने गणनायक चुनने के लिए दिखने वाला उत्साह अमेरिकी ओबामा के चुनाव से कम नहीं होता। भ्रष्टाचार और लालफीताशाही का अजगर जहर उगलता है, लेकिन उसी व्यवस्था और समाज में ईमानदार प्रधानमंत्री, भारत के प्रति समर्पित सेनानायकों, न्यूनतम सुविधाओं और आमदनी रहते आदर्श न्यायाधीशों का गौरवपूर्ण अध्याय जुड़ता है।


असल में बहुत कुछ इस बात पर निर्भर है कि आप गंगा, यमुना, नर्मदा, कावेरी, सतलज के किस हिस्से के पानी का रंग देखते हैं। आप पहाड़ से निकले स्वच्छ जल का आनंद लेना चाहते हैं या दूसरे किनारे के कीचड़ की गहराई में धँसने की कोशिश करते हैं। भारतीय लोकतंत्र पर रुदन करने वाले भूल जाते हैं कि संसदीय व्यवस्था के बजाय राष्ट्रपति प्रणाली वाले अथवा सैनिक तानाशाहों के जंगी हाथों से संचालित देशों में स्थितियाँ हमसे कई गुना बदतर हैं। हमारे हजारों गाँवों में अभी लोकतांत्रिक व्यवस्था की पूरी रोशनी नहीं पहुँची है, लेकिन लोगों ने आशा नहीं छोड़ी है। आर्थिक विकास, परमाणु ऊर्जा, शैक्षणिक प्रगति, चंद्रयान की सफलता, विश्व के श्रेष्ठतम चिकित्सकों के ऑपरेशन, कम्प्यूटर-सॉफ्टवेयर कौशल के चमत्कार इसी लोकतंत्र की देन हैं।

  असल में बहुत कुछ इस बात पर निर्भर है कि आप गंगा, यमुना, नर्मदा, कावेरी, सतलज के किस हिस्से के पानी का रंग देखते हैं। आप पहाड़ से निकले स्वच्छ जल का आनंद लेना चाहते हैं या दूसरे किनारे के कीचड़ की गहराई में धँसने की कोशिश करते हैं।      
जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी, अटलबिहारी वाजपेयी और सोनिया गाँधी ने जनता के सपनों को पूरा करने के लिए व्यापक हितों वाले अनेकानेक कार्यक्रमों को क्रियान्वित करवाया। मनमोहनसिंह प्रशासक हैं और जनता की नब्ज समझने के लिए उन्हें पार्टी नेतृत्व की नजर का इस्तेमाल करना होता है। निश्चित रूप से ब्रिटिश और अमेरिकी शैली वाली नौकरशाही आज भी भारत की जमीनी वास्तविकताओं को नहीं समझ पाती है, इसलिए जागरूक राजनीतिक तंत्र और मीडिया का विशेष महत्व है। इसी उद्देश्य से नईदुनिया ने इस गणतंत्र दिवस से कुछ सप्ताह पहले महत्वपूर्ण शोधपरक पहल की है। इसके तहत दो तरीकों से देश की वर्तमान तस्वीर को जानने का प्रयास किया गया। इसे संयोग या सौभाग्य कहा जाए कि नईदुनिया की जन्मभूमि मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले का करौंदी सही अर्थों में संपूर्ण भारत के बीचोंबीच है।

हमारे जबलपुर के स्थानीय संपादक आनंद पांडे के प्रस्ताव पर संपादकीय तथा प्रबंधन की सहमति से जबलपुर के ही चार संवाददाता भारत के चार कोने में भेजे गए ताकि देश के हर कोने में गणतंत्र की सफलता तथा चुनौतियों का सही लेखा-जोखा अपने पाठकों के सामने प्रस्तुत किया जा सके। उत्तर में श्रीनगर, दक्षिण में कन्याकुमारी, पश्चिम में ओखा तथा पूर्वोत्तर के तिनसुखिया से विभिन्न राज्यों का भ्रमण करते हुए नईदुनिया संवाददाता वापस करौंदी पहुँचे। निश्चित रूप से हमारे युवा पत्रकारों ने गणतंत्र की सफलताओं, उपलब्धियों के साथ कमियों की छानबीन की है। इसी के साथ नईदुनिया के आंचलिक पत्रकारों ने इस बात की पड़ताल की कि गणतंत्र के ५९ वर्षों में ग्राम्य जीवन में क्या बदलाव हुआ है।

परिवर्तन की यह कहानी गहरे तक सोचने पर विवश करती है। हर समुद्र मंथन में विष और अमृत, मोती और पत्थर निकलते हैं। पारंपरिक रूप से नईदुनिया की आस्था लोकतांत्रिक तरीके से समाज और राष्ट्र को समृद्ध तथा सशक्त करने की रही है। विश्वास है कि गणतंत्र दिवस का यह अभिवन प्रयास लाखों पाठकों के मन में लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करेगा। शुभकामनाओं सहित।

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