Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

गणतंत्र या परतंत्र?

भारतीय गणतंत्र के 58 वर्ष

हमें फॉलो करें गणतंत्र या परतंत्र?

प्रियंका पांडेय

NDND
भारतीय गणतंत्र के 58 वर्ष पूरे होने वाले हैं। विश्व का सबसे बड़ा गणतंत्र राष्ट्र कहलाने वाले हमारे इस देश की स्वतंत्रता व गणतंत्रता, स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले महानायकों का स्वप्न था, जिसे उन्होंने हमारे लिए यथार्थ में परिवर्तित कर दिया। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले महानायकों में से एक नायक सुभाषचंद्र बोस ने कभी कहा था कि ‘‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा’’। खून भी बहा और आजादी भी मिली। आज हम आजाद हैं, एक पूर्ण गणतांत्रिक ढाँचे में स्वतंत्रता की साँस ले रहे हैं।

चाहे वैधानिक स्वतंत्रता हो या फिर वैचारिक स्वतंत्रता, या फिर हो सामाजिक और धार्मिक स्वतंत्रता, आज हम हर तरह से स्वतंत्र हैं। पर क्या सचमुच हम स्वतंत्र हैं? क्या हमारी गणतंत्रता हमें गणतंत्र राष्ट्र का स्वतंत्र नागरिक कहलाने के लिए काफी है? ये सवाल कई बार मेरे जेहन में आता है। मेरे क्या, मेरे जैसे हर शख्स के जेहन में एक बार तो यह सवाल गूँजता ही होगा।

कभी-कभी लगता है कि हम आज भी गुलाम हैं। बस पराधीनता का स्वरूप बदल गया है। हजारों साल पुरानी हमारी इस सभ्यता को कई बार गुलाम बनाया गया और कई वंशों और सभ्यताओं ने हम पर शासन किया। पर कभी-कभी ऐसा लगता है कि आज भी कोई हम पर शासन कर रहा है। शायद हमारी अपनी ही बनाई व्यवस्था के अधीन कभी-कभी हम अपने आप को जकड़ा हुआ महसूस करते हैं।

देश को परिपूर्ण गणतंत्र राष्ट्र के रूप में आज 58 वर्ष हो गए हैं। हम भी निरंतर विकास की ओर ही अग्रसर हो रहे हैं। होना भी चाहिए। फिर भी ऐसी बहुत-सी बातें हैं, जो हमारे विकास के मार्ग में गड्ढे की तरह दिखाई पड़ती हैं। कई बार हम इन गड्ढों में गिर पड़ते हैं और कई बार इन्हें पार करके आगे निकल जाते हैं।
  एशियाई महाद्वीप की दूसरी उभरती शक्ति के रूप में उभरकर आने वाले देश में जहाँ दिनोदिन आईटी, व्यापार, अंतरराष्ट्रीय संबंध और विज्ञान जैसे क्षेत्रों में हमने सफलता के नए आयाम छुए हैं, वहीं आज भी हम पलटकर देखें तो कई क्षेत्रों में हमारी स्थिति चिंतनीय है.      


विकास के पथ पर हम आज बहुत आगे निकल चुके हैं। एशियाई महाद्वीप की दूसरी उभरती शक्ति के रूप में उभरकर आने वाले देश में जहाँ दिनोदिन आईटी, व्यापार, अंतरराष्ट्रीय संबंध और विज्ञान जैसे क्षेत्रों में हमने सफलता के नए आयाम छुए हैं, वहीं आज भी हम पलटकर देखें तो कई क्षेत्रों में हमारी स्थिति चिंतनीय है।

2005 में ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेश्नल’ द्वारा करवाए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में करीब आधी से अधिक जनसंख्या जो सार्वजनिक सेवाओं में कार्यरत है, घूस या सिफारिश से नौकरी पाती है। जहाँ हम दिन-रात विकास की मुख्यधारा से जुड़ने के लिए प्रयासरत हैं और अपने समाज को अपेक्षाकृत अधिक अच्छी जीवनशैली देने के लिए जुटे हुए हैं, वहीं कहीं न कहीं हमारे नैतिक मूल्य और आदर्श प्रतियोगिता की इस चक्की में पिसते जा रहे हैं। कितनी अजीब बात है कि 80.5 प्रतिशत हिंदू,13.4 प्रतिशत मुस्लिम, 2.3 प्रतिशत ईसाई, 1.9 प्रतिशत सिक्ख,1.8 प्रतिशत अन्य धर्म के अनुयायियों वाले इस देश में, जो अपने आप को भाईचारे और सद्‍भावना का दूत मानता है, आज भी गोधरा और बाबरी मस्जिद जैसी घटनाएँ होती हैं।

webdunia
NDND
सबसे अधिक युवाशक्ति वाला हमारा यह देश आज भी आरक्षण के ताने-बाने में उलझा रहता है और युवाओं को अभी तक वह परिवेश नहीं मिल सका है, जिसकी इस देश को वास्तविक रूप से आवश्यकता है। यहाँ तक कि रोजगार की संभावनाओं का केवल 16.59 फीसदी हिस्सा ही अभी तक महिलाओं को मिल सका है।

धर्मान्धता के चलते इस गणतंत्र की आत्मा पर कई बार कभी ‘भागलपुर नरसंहार’, मेरठ के साम्प्रदायिक दंगे, इन्दिरा गाँधी की मौत पर भड़के दंगों, तो कहीं ‘गुजरात दंगों’ के इतने गहरे घाव लगे हैं कि डर लगता है कहीं यह नासूर ना बन जाए। शिकार हर वर्ग, हर धर्म के लोग रहे, पर घायल भारतीय गणतंत्र हुआ है।

webdunia
NDND
जहाँ हमारे देश के दक्षिण भाग ने सूचना प्रौद्योगिकी व आर्थिक विकास की नई रूपरेखा बनाई है, वहीं हमारे देश का पूर्वोत्तर हिस्सा आज भी जीवन-यापन की मूलभूत समस्याओं से जूझते हुए औद्योगीकरण से अछूता है। बात करें विकास की, तो आईटी राजधानी माना जाने वाले बेंगलुरू में करीब 200 से भी अधिक आईटी कंपनियाँ पाँव पसार चुकी हैं, परंतु वहीं दूसरी ओर इन पूर्वोत्तर राज्यों के कई ऐसे राज्य हैं, जहाँ रेल परिवहन को तो छोड़िए, सड़कों का भी अता-पता नहीं है।

ये राज्य हमारी केंद्रीय व्यवस्था के पटल से इतने अलग-थलग हो चुके हैं, कि आज यहाँ पर लोग खुद को राष्ट्र का हिस्सा भी नहीं मानना चाहते हैं। अशिक्षा, बेरोजगारी, अव्यवस्था, असुरक्षा, क्षेत्रीय पक्षपात जैसी कितनी ही बीमारियों से ग्रसित कई पिछड़े राज्यों जैसे कि बिहार, मध्प्रदेश, झारखंड व प. बंगाल में अशिक्षित और बेरोजगार युवा वर्ग नक्सलवादी विचारधारा की ओर विमुख हो चुका है।

हम गणतंत्र देश के निवासी हैं। लोकतांत्रिक चुनावी प्रक्रिया ही हमारे देश का भविष्य लिखती है। पर कभी हमने सोचा है कि इस चुनावी प्रक्रिया की नींव क्या है? अखंड माने जाने वाले इस लोकतांत्रिक राज्य की मूल राजनीति तो क्षेत्रवादी कीड़े से ग्रसित है। राजनीति तो राजनीति, आम जीवन में ही इस कीड़े ने हमारे शरीर पर इतने घाव बना दिए हैं कि हमारा स्वरूप वीभत्स दिखने लगा है।

आज स्थिति यह है कि लोग अब अपने क्षेत्र व जाति के नेता को चुनने से लगाकर टीवी पर आने वाले रिएलिटी और टैलेंट शो तक में प्रतिभाओं का चयन अपने इसी क्षेत्रीयतावादी विचारधारा से ग्रसित होकर करते हैं। हर कोई अपने प्रदेश का व्यक्ति जीतता हुआ देखना चाहता है।
  ऐसा नहीं है कि हम आगे नहीं बढ़ रहे हैं, हम विकास की ओर अग्रसर हैं, पर विकास की गति क्या है, इस पर भी गौर करना पड़ेगा। कहीं हम खरगोश की चाल से दौड़ रहे हैं और कुछ क्षेत्रों में हमारी चाल कछुए से भी मंथर नजर आती है...      


हम नारी उत्थान की बात करते हैं और जब संसद में महिला आरक्षण विधेयक प्रस्तुत करते हैं, तो हर जगह इस विषय को लेकर सन्नाटा छा जाता है। हम विकास की बात करते हैं और आज भी अपने देश में दहेज प्रथा, बाल श्रम, कुपोषण, गरीबी, आतंकवाद, अशिक्षा, भ्रष्टाचार जैसे कई विषयों पर मूकदर्शक बने बैठे रहते हैं।

ऐसा नहीं है कि हम आगे नहीं बढ़ रहे हैं, हम विकास की ओर अग्रसर हैं, पर विकास की गति क्या है, इस पर भी गौर करना पड़ेगा। कहीं हम खरगोश की चाल से दौड़ रहे हैं और कुछ क्षेत्रों में हमारी चाल कछुए से भी मंथर नजर आती है। क्या यही है बापू के सपनों का गणतंत्र आज भारत एक गणतंत्र जरूर है, पर क्या यह भारतवासियों के लिए उनके लिए वास्तविक रूप से गणतंत्र है, यह प्रश्न हमें स्वयं से ही करना चाहिए।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi