Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

शरद पूर्णिमा 5 अक्टूबर को, पढ़ें पौराणिक और प्रामाणिक कथा

हमें फॉलो करें शरद पूर्णिमा 5 अक्टूबर को, पढ़ें पौराणिक और प्रामाणिक कथा
आश्चिन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा के रूप में मनाई जाती है। शरद पूर्णिमा को कोजागिरी पूर्णिमा व्रत और रास पूर्णिमा भी कहा जाता है तथा कुछ क्षेत्रों में इस व्रत को कौमुदी व्रत भी कहा जाता है।
 
शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा व भगवान विष्णु का पूजन कर, व्रत कथा पढ़ी जाती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी दिन चन्द्र अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होते हैं। इस मौके पर आइए जानते हैं पौराणिक एवं प्रचलित कथा... 
 
क्या है पौराणिक एवं प्रचलित कथा -
 
एक कथा के अनुसार एक साहुकार को दो पुत्रियां थीं। दोनो पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी। इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी।
 
उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी, जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है। 
 
पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है।
 
उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ। जो कुछ दिनों बाद ही फिर से मर गया। उसने लड़के को एक पाटे (पीढ़ा) पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया। फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दिया। बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी जो उसका लहंगा बच्चे का छू गया।
 
बच्चा लहंगा छूते ही रोने लगा। तब बड़ी बहन ने कहा कि तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता। तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है।
 
उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।

ALSO READ: शरद पूर्णिमा की रात प्रसन्न करें इन 5 देवों को, पढ़ें विशेष मंत्र



Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

शरद पूर्णिमा की रात प्रसन्न करें इन 5 देवों को, पढ़ें विशेष मंत्र