Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

रथ सप्तमी की पौराणिक कथा

हमें फॉलो करें रथ सप्तमी की पौराणिक कथा

WD Feature Desk

Ratha Saptami : इस बार रथ सप्तमी पर्व 16 फरवरी को मनाया जा रहा है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार रथ सप्तमी का त्योहार सूर्य जयंती के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन सूर्यदेव सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर प्रकट हुए थे। इसीलिए इस सप्तमी तिथि को रथ सप्तमी के नाम से जाना जाता है।

पुराणों में सूर्य को आरोग्यदायक कहा गया है तथा सूर्य की उपासना से रोग मुक्ति का मार्ग भी बताया गया है। इस व्रत को करने से शरीर की कमजोरी, हड्डियों की कमजोरी, जोड़ों का दर्द आदि रोगों से मुक्ति मिलती है। इतना ही नहीं भगवान सूर्य की ओर अपना मुख करके सूर्य स्तुति करने से चर्म रोग जैसे गंभीर रोग भी नष्ट हो जाते हैं। 
 
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार यदि विधि-विधान से यह व्रत किया जाए तो संपूर्ण माघ मास के स्नान का पुण्य मिलता है। रथ सप्तमी यानी माघ शुक्ल सप्तमी से संबंधित कथा का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। 
 
आइए यहां जानते हैं भगवान श्रीकृष्ण और उनके पुत्र शाम्ब/सांब की कथा के बारे में...
 
रथ या अचला सप्तमी की पौराणिक व्रत कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के पुत्र सांब को अपने शारीरिक बल पर बहुत अभिमान हो गया था। एक बार दुर्वासा ऋषि भगवान श्री कृष्ण से मिलने आए।

वे बहुत अधिक दिनों तक तप करके आए थे और इस कारण उनका शरीर बहुत दुर्बल हो गया था। सांब उनकी दुर्बलता को देखकर जोर-जोर से हंसने लगा और अपने अभिमान के चलते उनका अपमान कर दिया। 
 
तब दुर्वासा ऋषि अत्यंत क्रोधित हो गए और सांब/शाम्ब की धृष्ठता को देखकर उसे कुष्ठ होने का श्राप दे दिया। सांब की यह स्थिति देखकर श्री कृष्ण ने उसे भगवान सूर्य की उपासना करने को कहा।

पिता की आज्ञा मानकर सांब ने भगवान सूर्यदेव की आराधना करना प्रारंभ किया, जिसके फलस्वरूप कुछ ही समय पश्चात उसे कुष्ठ रोग से मुक्ति प्राप्त हो गई। और सूर्य व्रत करने और सूर्य के प्रति अटूट भक्ति के फलस्वरूप सांब एक बार फिर अपनी सुंदर और आकर्षक काया को प्राप्त किया। अत: जो श्रद्धालु सप्तमी के दिन भगवान सूर्य की आराधना विधिवत तरीके से करते हैं, उन्हें आरोग्य, पुत्र और धन की प्राप्ति होती है।
 
अन्य कथा : 
 
रथ/ माघी सप्तमी की एक अन्य कथा के अनुसार एक गणिका नाम की महिला ने अपने पूरे जीवन में कभी कोई दान-पुण्य का कार्य नहीं किया था। जब उस महिला का अंतकाल आया तो वह वशिष्ठ मुनि के पास गई। 
 
महिला ने मुनि से कहा कि मैंने कभी भी कोई दान-पुण्य नहीं किया है तो मुझे मुक्ति कैसे मिलेगी? 
 
तब मुनि ने कहा कि, माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को अचला सप्तमी है। इस दिन किसी अन्य दिन की अपेक्षा किया गया दान-पुण्य का हजार गुना प्राप्त होता है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान कर भगवान सूर्य को जल दें और दीप दान करें तथा दिन में एक बार बिना नमक के भोजन करें। ऐसा करने से महान पुण्य की प्राप्ति होती है। 
 
गणिका ने वशिष्ठ मुनि द्वारा बताई हर बात का सप्तमी के दिन व्रत और विधिपूर्वक कार्य किया। कुछ दिन बाद गणिका ने शरीर त्याग दिया और उसे स्वर्ग के राजा इंद्र की अप्सराओं का प्रधान बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
 
अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित  वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत  या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

होलाष्टक कब से हो रहा है प्रारंभ?