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judaism vs zoroastrianism : यहूदी और पारसी क्यों लड़ रहे हैं अपने अस्तित्व की लड़ाई?

हमें फॉलो करें judaism vs zoroastrianism : यहूदी और पारसी क्यों लड़ रहे हैं अपने अस्तित्व की लड़ाई?
, शुक्रवार, 13 अक्टूबर 2023 (16:48 IST)
Jewish and Parsi: ऐसा कहा जाता है कि इस्लाम की उत्पत्ति के पहले से ही ईरान की इजरायल से दुश्मनी चली आ रही है। प्राचीन काल में इजरायल में जहां जुडाइज्म यानी यहूदी धर्म था वहीं ईरान में जोरास्ट्रियन यानी पारसी धर्म धर्म था। अरब दुनिया में ये दो बड़े धर्म थे और तीसरा धर्म इनके बीच पैंगन धर्म था। ऐसा कहते हैं कि यहूदी और पारसियों में जहां आपसी जुड़ाव था वहीं उनमें कुछ बातों को लेकर मतभेद भी था।
 
  • आज पारसियों के पास अपना खुद का कोई देश नहीं है। 
  • एक वक्त था जब यहूदियों के पास भी खुद का अपना कोई देश नहीं था। 
  • दोनों ही धर्म के अनुयायियों को उनकी ही भूमि पर से खदेड़ दिया गया। 
  • मुश्किलों के बाद यहूदियों ने अपनी खोई भूमि इजरायल पुन: हासिल कर ली।
  • पारसी अभी भी अपनी भूमि से बेदखल है।
  • कहते हैं कि एक ऐसा दौर था जबकि दोनों ही पश्‍चिम और मध्य एशिया में अपनी ताकत रखते थे।
 
पारसी धर्म :-
  1. उत्पत्ति : पारसी धर्म की उत्पत्ति ईरान (पारस्यदेश) में हुई थी।
  2. संस्थापक : इस धर्म के संस्थापक जरथुस्त्र थे। इतिहासकारों का मत है कि जरथुस्त्र 1700-1500 ईपू के बीच हुए थे।
  3. प्राचीनता : यह धर्म करीब 3500 वर्ष पुराना धर्म है। हालांकि पारसियों के वंश परंपरा जरथुस्त्र से भी पुरानी है।
  4. ईश्वर : इस धर्म के लोग एकेश्वरवादी लोग हैं जो अपने ईश्वर को 'आहुरा माज्दा' कहते हैं। हालांकि अन्य देवी और देवता भी हैं इस धर्म में। 
  5. उपासक : पारसी धर्म के लोग एकेश्वरवादी होते हैं लेकिन ये आग्नि के उपासक भी हैं। वे भी दिन में 5 बार प्रार्थना करते हैं।
  6. मंदिर : इनके मंदिरों को अग्नि मंदिर भी कहते हैं। मूल नाम आतिशी बेहराम है। इसके अलावा दार-ए मेहर (फ़ारसी) या अगियारी (गुजराती) भी कहते हैं।
  7. आतिशी बेहराम : खाजेह पर्वत, हमुन झील, सिस्तान प्रांत, ईरान में इनका सबसे प्राचीन मंदिर है जो आतिश बेहराम नाम से जाना जाता है।
  8. धर्म ग्रंथ : पारसियों का धर्मग्रंथ 'जेंद अवेस्ता' है, जो ऋग्वैदिक संस्कृत की ही एक पुरातन शाखा अवेस्ता भाषा में लिखा गया है।
  9. त्योहार : पारसी लोग अपने नववर्ष का उत्सव मनाते हैं जिसे नवरोज को ईरान में ऐदे-नवरोज कहते हैं। असल में पारसियों का केवल एक पंथ-फासली-ही नववर्ष मानता है
  10. मरने के बाद का जीवन : स्वर्ग या नर्क में शाश्वत जीवन जीना।
  11. उद्देश्य : दूसरों के प्रति अच्छे कर्मों द्वारा ईश्वर की सेवा करना। दैवीय गुणों को प्राप्त करना और विकसित करना, विशेष रूप से 'सकारात्मक मस्तिष्क और धार्मिकता बनाए रखकर ईश्वर के साथ सामंजस्य स्थापित करना और अपने भीतर ईश्वर की मार्गदर्शक आवाज को सुनना।
 
साम्राज्य : जरथुस्त्र के करोड़ों अनुयायी रोम से लेकर सिंधु नदी तक फैले थे। पारसियों ने 3 महाद्वीपों और 20 राष्ट्रों पर लंबे समय तक शासन किया। पारसी लोगों कई अन्य देश और कबीलों से लड़ा करते थे। कवयानी वंश में जाल, रुस्तम आदि वीर हुए, जो तुरानियों से लड़कर फिरदौसी के शाहनामे में अपना यश अमर कर गए हैं। इसी वंश में करीब 1300 ईपू के लगभग गुश्तास्प हुआ जिसके समय में ईशदूत जरथुस्त्र का उदय हुआ। सन् 576 ईसा पूर्व नए साम्राज्य की स्थापना करने वाला था 'साइरस महान' (फारसी : कुरोश), जो 'हक्कामानिस' वंश का था। इसी वंश के सम्राट 'दारयवउश' प्रथम, जिसे 'दारा' या 'डेरियस' भी कहा जाता है, के शासनकाल (522-486 ईसापूर्व) को पारसीक साम्राज्य का चरमोत्कर्ष काल कहा जाता है। सन् 224 ईस्वी में जोरोस्त्रियन धर्मावलंबी 'अर्देशीर' (अर्तकशिरा) प्रथम के द्वारा एक और वंश 'ससैनियन' की स्थापना हुई और इस वंश का शासन लगभग 7वीं सदी तक बना रहा। 7वीं सदी में खलीफाओं के नेतृत्व में इस्लामिक क्रांति होने के बाद यहां पर शियाओं का धर्म स्थापित हो गया। अधिकतर पारसी इस्लाम में कन्वर्ट हो गए और जो नहीं होने चाहते थे वे अपना देश छोड़कर भारत में बस गए।
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यहूदी धर्म :-
  1. उत्पत्ति : यहूदी धर्म की उत्पत्ति लेवंट यानी शाम में हुई थी जबकि उस वक्त यरूशलेम इस क्षेत्र में होता था। यही उत्पत्ति का मुख्य स्थान है।
  2. संस्थापक : ईशदूत इब्राहीम, नूह, इसहाक, याकूब, यहूदा और मूसा। हालांकि हजरत मूसा ही यहूदी जाति के प्रमुख व्यवस्थाकार हैं।
  3. प्राचीनता : हजरत इब्राहिम ईसा से 2000 वर्ष पूर्व हुए थे। यानी करीब 4000 वर्ष पुराना। 
  4. ईश्‍वर : इस धर्म के लोग एकेश्वरवादी लोग हैं जो अपने ईश्वर को याहवेह या यहोवा कहते हैं। ये शब्द ईसाईयों और यहूदियों के धर्म ग्रंथ बाइबिल के पुराने नियम में कई बार आता है।
  5. उपासक : प्रतिदिन 3 बार प्रार्थना, चौथी प्रार्थना शाबात और छुट्टियों पर जोड़ी जाती है। सुबह शचरित प्रार्थना, दोपहर में मिनचा, रात में अरविट; मुसाफ़ एक अतिरिक्त शबात सेवा है।
  6. मंदिर : सिनेगॉग कहते हैं। प्राचीन मंदिर की अब यरुशलेम में 'वेस्टर्न वॉल' की बची है।
  7. धर्म ग्रंथ : यहूदियों की धर्मभाषा 'इब्रानी' (हिब्रू) और यहूदी धर्मग्रंथ का नाम 'तनख' है, जो इब्रानी भाषा में लिखा गया है। इसे 'तालमुद' या 'तोरा' भी कहते हैं। तनख का रचनाकाल ई.पू. 444 से लेकर ई.पू. 100 के बीच का माना जाता है।
  8. त्योहार : हनुका को 'यहूदियों का क्रिसमस' भी कहा जाता है। इसके अलावा योम किपूर, पासोवर, रोश हशाना, होलोकॉस्ट डे, यरुशलम दिवस, निष्क्रमण आदि कई त्योहार मनाते हैं।
  9. मरने के बाद का जीवन : मरने के बाद ईश्वर में एकाकार होने या न्याय को लेकर अलग अलग मान्यताएं हैं।
  10. उद्देश्य : जीवन जन्म मनाने के लिए है। ईश्वर के आदेश और उनके साथ किए वादे को पूरा करने के लिए अच्छे काम करें। ईश्वर से प्रेम करें और समाज को सुधारने का कार्य करें। मूसा ने इसराइल में इजराइलियों को ईश्वर द्वारा मिले 'दस आदेश' दिए जो आज भी यहूदी धर्म के प्रमुख सैद्धांतिक है।
 
साम्राज्य : यहूदा के काल से लेकर सम्राट सोलेमन तक यहूदी साम्राज्य का विस्तार होता रहा। जिसमें साउल, इशबाल, डेविड और सोलोमन जैसे प्रसिद्ध राजा हुए जिन्होंने किंगडम ऑफ जुडा को बनाए रखा। सोलोमन के बाद इस राज्य का पतन होने लगा। संयुक्त इजरायल दो हिस्सों में बंटकर इजरायल और जुडा के बीच में बंट गया। 
 
करीब 700 ईसा पूर्व में असीरियाई साम्राज्य ने जेरूसलम पर हमला करके यहूदियों के 10 कबीलों को तितर-बितर कर दिया और यहां पर अपना शासन स्थापित कर दिया। इसके बाद 72 ईसा पूर्व रोमन साम्राज्य के हमले के बाद यहूदी शक्ति कमजोर हो गए और रोमना का इस क्षेत्र पर अधिकार हो गया। रोमनों के हमले में पवित्र मंदिर टूट गया, जो टेम्पल ऑफ माउंट के नाम से जाना जाता था। इसे किंग डेविड ने बनवाया था। इतिहास में इस घटना को एक्जोडस कहा जाता है।
 
ईसा मसीह को सूली पर लटकाने के बाद यहूदियों का सबसे बुरा दौर शुरू हुआ और फिर वे कभी एक देश के रूप में नहीं रह सके। बाद में यह संपूर्ण क्षेत्र अरब  के फिलिस्तीन मुस्लिमों के कब्जे में चला गया। 1948 में इसके दो हिस्से हुए जिसमें से पुन: इजरायल का निर्माण हुआ।

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