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धर्म के 10 नियमों का कॉन्सेप्ट कहां से आया?

हमें फॉलो करें Ten Commandments

WD Feature Desk

, सोमवार, 4 मार्च 2024 (18:37 IST)
The Ten Commandments: जब हम सभी धर्मों का इतिहास, दर्शन और मान्यताओं का अध्ययन करते हैं तो हमें यह पता चलता है कि कई परंपरा, नियम या सिद्धांत सभी धर्मों में एक जैसे पाए जाते हैं। आम धारणा यह है कि जिसने सबसे पहले इन्हें ईजाद किया यह कॉन्सेप्ट या नियम उसी का होना चाहिए। इसी तरह हम यह जानने का प्रयास कर सकते हैं कि पश्चिमी धर्म खासकर यहूदी धर्म में प्रचलित 'परमेश्वर की 10 आज्ञा' का मूल क्या है? जिसे बाद के धर्मों ने अपनाया है।
 
दुनिया की सबसे प्राचीन धार्मिक पांडुलिपि : इतिहासकारों के अनुसार दुनिया की सबसे प्राचीन पुस्तक ऋग्वेद और दूसरी अवेस्ता ए ज़ेंद है। इन दोनों की ही पांडुलिपियां सबसे पुरानी पाई गई है। ऋग्वेद संस्कृत का ग्रंथ है अवेस्ता प्राचीन फारसी भाषा का ग्रंथ है। आज की फारसी भाषा से भिन्न एक भाषा, जिसे अवस्ताई कहा जाता था। दोनों ही ग्रंथों में पाए गए सैकड़ों शब्दों में समानता का कारण यह माना जाता है कि दोनों ही आर्य भाषा है।
 
ऋग्वेद : हिंदू धर्म ग्रंथ ऋग्वेद मूल रूप से एक मौखिक पाठ था, लिखित पांडुलिपियों में यह बहुत बाद में अस्तित्व में आया। ऋग्वेद की सबसे पुरानी पांडुलिपि नेपाल में खोजी गई थी। इसे लगभग 1040 ईसा पूर्व यानी 3063 वर्ष पूर्व में बनाया गया था। भारत की 28 हजार पांडुलिपियाँ भारत में पुणे के 'भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट' में रखी हुई हैं। इनमें से ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियाँ बहुत ही महत्वपूर्ण हैं जिन्हें यूनेस्को ने विरासत सूची में शामिल किया है। यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है। उल्लेखनीय है कि यूनेस्को की 158 सूची में भारत की महत्वपूर्ण पांडुलिपियों की सूची 38 है।
 
अवेस्ता : अवेस्ता भी मूल रूप से मौखिक पाठ था, लेकिन इसे 6ठी ईसा पूर्व में कंप्लीट कर लिया गया था। प्राचीन ईरानी तथा आधुनिक पारसी लेखकों के अनुसार प्रॉफेट जरस्थु ने 21 'नस्क' अथवा ग्रंथ लिखे थे। ऐसा कहा जाता है कि सम्राट विश्तास्प ने दो यथातथ्य अनुलेख इन ग्रंथों का कराकर दो पुस्तकालयों में संग्रहीत किया था।
 
प्रॉफेट जरथुस्त्र : इतिहासकारों का मत है कि पारसियों के प्रॉफेट जरथुस्त्र 1500 से 1200 बी.सी के बीच में इनका जन्म हुआ था। उनके द्वारा स्थापित पारसी धर्म का धर्मग्रंथ अवेस्ता है। 1990 में तुर्कमेनिस्तान में मिले एक पारसी टेंपल की कार्बन डेटिंग के आधार पर आधुनिक इतिहासकार इस धर्म को करीब 4 हजार वर्ष पुराना मानते हैं। ग्रीक इतिहासकार इसे 6 हजार ईसा पूर्व से प्रचलित धर्म मानते हैं यानी 8 हजार वर्ष पुराना। इसे दुनिया का पहला एकेश्वरवादी धर्म माना जाता है। ये ईश्वर को 'आहुरा माज्दा' कहते हैं। जरथुस्त्र को ऋग्वेद के अंगिरा, बृहस्पति आदि ऋषियों का समकालीन माना जाता है। वे ईरानी आर्यों के स्पीतमा कुटुम्ब के पौरुषहस्प के पुत्र थे। उनकी माता का नाम दुधधोवा (दोग्दों) था, जो कुंवारी थी। 30 वर्ष की आयु में जरथुस्त्र को ज्ञान प्राप्त हुआ। उनकी मृत्यु 77 वर्ष 11 दिन की आयु में हुई। 
 
30 वर्ष की उम्र में एक नदी के किनारे इन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। और उन्होंने कहा कि ईश्वर एक ही है और उसका नाम अहुरमाज्मा है। अंग्रामेन्यू एक शैतान है। इसके बाद जरथुस्त्र 42 वर्ष के हुए तो बैक्ट्रिया के किंग विश्तास्प (vishtaspa) को इन्होंने अपने धर्म में दीक्षित कर दिया। विश्तास्प ने इस धर्म को सबसे पहले अपना राजधर्म बनाया। इसके बाद सायरस नाम के एक महान राजा हुए जिनके काल में यह धर्म मध्य एशिया का सबसे बड़ा धर्म बन गया था। उनके काल में पारस का कंट्रोल बेबीलोनिया, जुडाया किंगडम और मिश्र एवं यूरोप के कई क्षेत्रों हो गया था जहां पर पारसी धर्म का विस्तार हुआ। जरथुस्त्र के करोड़ों अनुयायी रोम से लेकर सिंधु नदी तक फैले थे। पारसियों ने 3 महाद्वीपों और 20 राष्ट्रों पर लंबे समय तक शासन किया।
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यहूदी तनख : यहूदियों की धर्मभाषा 'इब्रानी' (हिब्रू) और यहूदी धर्मग्रंथ का नाम 'तनख' है, जो इब्रानी भाषा में लिखा गया है। इसे 'तालमुद' या 'तोरा' भी कहते हैं। इतिहासकारों के अनुसार तनख का रचनाकाल ई.पू. 444 से लेकर ई.पू. 100 के बीच का माना जाता है। यहूदी धर्म को पारसी धर्म के बाद का स्थापित धर्म माना गया है। 
 
हिंदू धर्म के 10 यम-नियम:
10 यम और नियम 
1. सत्य (झूठ नहीं बोलना)
2. अहिंसा (हिंसा नहीं करना, किसी की हत्या नहीं करना)
3. अस्तेय (चोरी न करना) 
4. ब्रह्मचर्य (पराई स्त्री के बारे में नहीं सोचना और ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करना)
5. अपरिग्रह (लोभ आसक्ति)
6. शौच (हर तरह की साफ सफाई रखना, धर्माचरण करना, शरीर और मन शुद्ध रखना) 
7. संतोष (आवश्यकता से अधिक की इच्छा नहीं करना)
8. तप (किसी उद्देश्य विशेष की प्राप्ति अथवा आत्मिक और शारीरिक अनुशासन के लिए उठाए जाने वाले दैहिक कष्ट कष्ट)
9. स्वाध्याय (धर्मग्रंथों और स्वयं का अध्ययन करना, विषय का अनुशीलन या अध्ययन)
10. ईश्वर- प्रणिधान (ईश्वर के प्रति भक्तिपूर्ण सब कर्मों का समर्पण करना)
 
पारसी धर्म के 10 नियम:-
जरथुस्त्र ने अपने प्रवचन में कहा था कि व्यक्ति को तीन सिद्धांत पर कायम रहना चाहिए तो ही उसे स्वर्ग में जगह मिलेगी। पहले बुरा नहीं बोलना, दूसरा बुरा नहीं करना और तीसरा बुरा नहीं सोचना। इन तीन मुख्य नियमों के अलावा 10 प्रमुख नियमों को बनाया गया था।
 
1. ईश्वर एक है, जिसका नाम अहुरा मज़्दा जो सभी अच्छी और न्यायपूर्ण चीज़ों का निर्माता है। उसे 'बुद्धिमान ईश्वर' या 'प्रकाश का परमेश्‍वर' कहा जाता है।
 
2. ईशदूत या मसीहा ही शाश्वत मुक्ति के लिए लोगों के एक समूह को मुक्त करेगा या बचाएगा।
 
3. मृत्यु के बाद स्वर्ग या नरक में  जाने के लिए अहुरा मज़्दा द्वारा आत्मा का न्याय किया जाएगा।
 
4. प्रत्येक व्यक्ति के पास कार्रवाई के विभिन्न संभावित तरीकों के बीच चयन करने की क्षमता होती है इसलिए वह अच्छा कर्म करें।
 
5. अहुरा मज़्दा का विरोध अराजकता, अंधकार और बुराई की आत्मा अंगरा मेन्यू द्वारा किया जाता है। अच्छाई और बुराई के बीच संघर्ष चलता रहता है।
 
6. ब्रह्मांड आशा (सत्य) द्वारा शासित है, जो ब्रह्मांड का दिव्य क्रम है। आशा के मार्ग पर चलकर, व्यक्ति स्वयं को अच्छाई की शक्तियों के साथ जोड़ लेता है और आंग्रा मेन्यू पर अहुरा मज़्दा की जीत में योगदान देता है।
 
7. आशा का मार्ग तीन गुना पथ में सन्निहित है, जिसमें शामिल हैं: अच्छे विचार, अच्छे कर्म, अच्छे शब्द। 
 
8. पारसी लोग आत्मा के पुनरुत्थान और अंगरा मेन्यू और अंधेरे की ताकतों के अंततः विनाश में विश्वास करते हैं। अंत में, अहुरा मज़्दा और आशा की जीत होगी, और ब्रह्मांड पूर्ण सामंजस्य की स्थिति में बहाल हो जाएगा।
 
9.  जिन लोगों ने आशा के मार्ग का अनुसरण किया है, उन्हें एक आनंदमय जीवन के साथ पुरस्कृत किया जाएगा, जबकि जिन्होंने द्रुज को चुना है, उन्हें दंडित किया जाएगा।
 
10. पारसी धर्म स्वतंत्र इच्छा के महत्व पर जोर देता है। मनुष्य में आशा के मार्ग और द्रुज (धोखे) के मार्ग के बीच चयन करने की क्षमता है, जो अंधकार और बुराई की ओर ले जाता है।
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पारसी धर्म की मान्यता: फारस और मिस्र का धर्म करीब 5000 हजार साल पुराना है। मिश्र वालों ने सबसे अपने अंडरवर्ल्ड में सल्फर वाली आग की नदी की कल्पना की। यही आग की नदी अब्राहमिक धर्मों में भी पाई जाती है। मिश्र वाले मानते थे कि सभी आत्माओं का अंत में न्याय होगा और जो अच्छे होंगे वे पुन: जीवित हो जाएंगे। करीब 1000 ईसा पूर्व जरथुस्त्र ने कहा था कि मैं परमेश्वर अहुरमज्दा के पास खड़े होकर अपने अनुयायियों की पैरवी करूंगा।
 
अहुरमज्दा ने पहले आसमान बनाया, फिर पानी, जमीन, पेड़ पौधे और पशु पक्षी बनाए और अंत में उसने फिर मश्याय और मशेनाग नाम का इंसान का जोड़ा बनाया। स्पेंता मेन्यू और अहुरमज्दा का एक शत्रु था आंग्रा मेन्यू जो बुरी ताकतों का लीडर था। उसने मश्याय और मशेनाग को गुमराह कर दिया। जिस वजह से मश्याय और मशेनाग को स्वर्ग से निकाल दिया गया।
 
पारसी धर्म के लोग एकेश्वरवादी है, लेकिन ये आग की पूजा भी करते हैं। हालांकि अन्य फरिश्ते और देवी और देवता भी हैं इस धर्म में। ये लोग दिन में 5 बार प्रार्थना करते हैं।
 
यहूदी धर्म की 10 ईश्वर आज्ञा:
 
1. तुम मेरे अलावा किसी अन्य ईश्वर को नहीं मानोगे।
2. तुम मेरी किसी तस्वीर या मूर्ति को नहीं पूजोगे।
3. तुम प्रभु, अपने ईश्वर का नाम अकारण नहीं लोगे।
4. सैबथ का दिन याद रखना, उसे पवित्र रखना।
5. अपने माता और पिता का आदर करो
6. तुम हत्या नहीं करोगे।
7. तुम किसी से नाजायज शारीरिक संबंध नहीं रखोगे।
8. तुम चोरी नहीं करोगे।
9. तुम झूठी गवाही नहीं दोगे।
10. तुम दूसरे की चीज़ें ईर्ष्या से नहीं देखोगे।

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