Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

विजयादशमी विशेष: मन रूपी रावण का दहन हो

हमें फॉलो करें विजयादशमी विशेष: मन रूपी रावण का दहन हो
webdunia

पं. हेमन्त रिछारिया

Ravan Dahan: विजयादशमी असत्य पर सत्य की; बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है। विजयादशमी के ही दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने रावण का वध किया था। इसी दिन को स्मरण करने लिए प्रतिवर्ष हम विजयादशमी का उत्सव मनाते हैं, जिसमें रावण के पुतले का दहन किया जाता है। 
 
रावण के पुतले के दहन के साथ हम यह कल्पना करते हैं कि आज सत्य की असत्य पर जीत हो गई और अच्छाई ने बुराई को समाप्त कर दिया। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा हो पाता है! सनातन धर्म की यह परंपराएं केवल आंख मूंद कर इनकी पुनुरुक्ति करने के लिए नहीं हैं। बल्कि यह परंपराएं तो हमें इनके पीछे छिपे गूढ़ उद्देश्यों को स्मरण रखने एवं उनका अनुपालन करने के लिए बनाई गई हैं। 
 
आज हम ऐसी अनेक सनातनधर्मी परंपराओं का पालन तो करते हैं, किंतु उनके पीछे छिपी देशना एवं शिक्षा को विस्मृत कर देते हैं। हमारे द्वारा इन सनातनी परंपराओं का अनुपालन बिल्कुल यंत्रवत् होता है। विजयादशमी भी ऐसी एक परंपरा है। जिसमें रावण का पुतला दहन किया जाता है। रावण प्रतीक है अहंकार का; रावण प्रतीक है अनैतिकता का; रावण प्रतीक है सामर्थ्य के दुरुपयोग का एवं इन सबसे कहीं अधिक रावण प्रतीक है- ईश्वर से विमुख होने का।
 
रावण के दस सिर प्रतीक हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर आदि अवगुणों का। रावण इन सारे अवगुणों के मिश्रित स्वरूप का नाम है। रावण के बारे में कहा जाता है कि वह प्रकांड विद्वान था किंतु उसकी यह विद्वत्ता भी उसके स्वयं के अं‍दर स्थित अवगुण रूपी रावण का वध नहीं कर पाई। तब वह ईश्वर अर्थात् प्रभु श्रीराम के सम्मुख आया। 
 
मानसकार ने ईश्वर के बारे में कहा है- 'सन्मुख होय जीव मोहि जबहिं। जनम कोटि अघ नासहिं तबहिं॥' 
 
इसका आशय है जब जीव मेरे अर्थात् ईश्वर के सम्मुख हो जाता है तब मैं उसके जन्मों-जन्मों के पापों का नाश कर देता हूं। हम मनुष्यों में और रावण में बहुत अधिक समानता है। यह बात स्वीकारने में असहज लगती है, किंतु है यह पूर्ण सत्य।
 
हमारी इस पंचमहाभूतों से निर्मित देह में मन रूपी रावण विराजमान है। इस मन रूपी रावण के काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, वासना, भ्रष्टाचार, अनैतिकता इत्यादि दस सिर हैं। यह मन रूपी रावण भी ईश्वर से विमुख है। जब इस मन रूपी रावण का एक सिर कटता है तो तत्काल उसके स्थान पर दूसरा सिर निर्मित हो जाता है। 
 
ठीक इसी प्रकार हमारी भी एक वासना समाप्त होते ही तत्क्षण दूसरी वासना तैयार हो जाती है। हमारे मन रूपी रावण के वध हेतु हमें भी राम अर्थात् ईश्वर की शरण में जाना ही होगा। जब हम ईश्वर के सम्मुख होंगे तभी हमारे इस मन रूपी रूपी रावण का वध होगा। विजयादशमी हमें इसी संकल्प के स्मरण कराने का दिन है। 
 
आइए हम प्रार्थना करें कि प्रभु श्रीराम हमारे मन स्थित रावण का वध कर हमें अपने श्री चरणों में स्थान दें। जिस दिन यह होगा उसी दिन हमारे लिए विजयादशमी का पर्व सार्थक होगा। 
 
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Shardiya Navratri 2023: शारदीय नवरात्रि नवमी कब है, यहां जानें पूजा के शुभ मुहूर्त