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संकट में छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री रामसेवक पैकरा

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रवि भोई

आय से अधिक संपत्ति और स्वेच्छा अनुदान देने के मामले में  छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री रामसेवक पैकरा उलझ गए हैं। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मामले की जांच राज्य के लोक आयोग से कराने के निर्देश के बाद उन पर संकट के बदल मंडराने लगे हैं। फैसला मुख्यमंत्री रमनसिंह को लेना है। फिलहाल हाईकोर्ट की फैक्ट फाइल को मुख्यमंत्री सचिवालय को भेजा गया है। विपक्ष के नेता टीएस सिंह देव गृहमंत्री को कैबिनेट से बाहर करने के लिए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है।
 
छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री रामसेवक पैकरा ने मंत्री बनते ही दोनों हाथों से स्वेच्छानुदान की सरकारी रकम को बांटा, लेकिन जरूरतमंदों को नहीं, बल्कि अपने ही खासमखास लोगों को राशि दी गई। मामले की शिकायत हुई। बाकायदा उन लोगों को ये रकम दी गई जो कहीं से भी दूर-दूर तक इसके पात्र नहीं थे। गृहमंत्री ने 2014 में 161 लोगों को स्वेच्छानुदान मद से साढ़े 17 लाख रुपए बांटे थे।
 
आरटीआई से मिली जानकारी से खुलासा हुआ था कि राशि प्राप्त करने वालों में अधिकांश समृद्ध लोग थे। उन्होंने इस राशि का क्या उपयोग किया, इसकी भी कोई जानकारी दर्ज नहीं थी, जबकि नियमानुसार स्वेच्छानुदान मद से बीपीएल या जरुरतमंदों को राशि दी जाती है।
 
इस मामले में गृहमंत्री की शिकायत भी हुई, लेकिन उनके प्रभाव के चलते जांच नहीं हुई। नतीजतन शिकायतकर्ता दिनेश्वर प्रसाद सोनी ने जनहित याचिका के जरिए इस मामले को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के संज्ञान में लाया गया। उन्होंने आरटीआई से मिले तमाम दस्तावेज भी अदालत को सौंपे। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने इसी 11 अप्रैल को मामले की सुनवाई के बाद प्रकरण को लोक आयोग को ट्रांसफर कर दिया है। सरकारी दस्तावेजों की प्रामाणिकता के बाद लोक आयोग फैसला देगा, लेकिन फैसला आने से पहले मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस समेत कई संगठनों ने रामसेवक पैकरा के इस्तीफे के लिए सरकार पर दबाव बढ़ा दिया है।
 
नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंह देव ने मुख्यमंत्री रमनसिंह से गृहमंत्री को कैबिनेट से हटाने की मांग की है। उनके मुताबिक गृहमंत्री पैकरा के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला पहले से ही हाईकोर्ट में चल रहा है, इसमें याचिकाकर्ता ने कोर्ट को 24 ऐसी संपत्तियों का ब्योरा दिया है, जिनकी कीमत करोड़ों-अरबों में है।  
 
प्रदेश कांग्रेस के नेता प्रभात मेघावाले ने भी कहा है कि एक ही दिन में काटे गए 161 स्वेच्छानुदान के चेक किसी गरीब या जरूरतमंद नहीं बल्कि भाजपा के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को दिए गए हैं। उनके मुताबिक, उच्च न्यायलय की प्रथम दृष्टि में ही गड़बड़ी की पुष्टि हुई है। इसलिए मामले को तकनीकी आधार पर लोक आयोग भेजा गया है।
 
फिलहाल मामले को लोक आयोग में भेजे जाने के बाद राजनीति गरमाई हुई है। चूंकि भ्रष्टाचार को लेकर मुख्यमंत्री रमनसिंह जीरो टॉलरेंस नीति का पालन कर रहे हैं। लिहाजा रामसेवक पैकरा पर इस्तीफे की तलवार लटक रही है। कहा जा रहा है कि उनके पद पर बने रहने से जांच अधिकारी और गवाह दोनों प्रभावित हो सकते हैं। इसलिए जब तक जांच चल रही है, तब तक मुख्यमंत्री रमनसिंह ने उन्हें खुद नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने की सलाह दी है।
 
हालांकि इस मामले को लेकर रामसेवक पैकरा ने सफाई दी है। उन्होंने कहा है कि उन्हें भी व्हाट्सएप से ही मामले की जानकारी मिली है। उनके मुताबिक, स्वेच्छानुदान के आवेदकों में से तो ये खुलासा नहीं किया जा सकता है कि कौन गरीब है और कौन संपन्न है, जबकि ये अनुदान गरीबों के लिए है। उन्होंने ये भी कहा कि इसका सीधे भुगतान वो नहीं करते बल्कि कलेक्टर के जरिए राशि दी जाती है। शिकायतकर्ता दिनेश्वर प्रसाद सोनी का कहना है कि लोक आयोग 9 माह के भीतर जांच कर रिपोर्ट नहीं देगा तो वे फिर हाईकोर्ट जाएंगे। 

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