Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

मेरे भैया

हमें फॉलो करें मेरे भैया
SubratoND
-नूपुर दीक्षित
मेरे घर में हम सात बहनें थीं। हमारा कोई भाई नहीं था। बचपन में चचेरे और मौसेरे भाई और कभी-कभी अड़ोस-पड़ोस के लड़के भी हमारे घर में राखी बँधवाने आ जाते थे।

इस तरह से केवल राखी के दिन यूँ उनका हमारे घर में आ जाना, मुझे ऐसा लगता मानो कि हमारा भाई नहीं है, इसलिए ये हमसे सहानुभूति दिखाने आ रहे हैं। न जाने ये मेरी गलतफहमी थी या कुछ और, मगर मैं इस तरह साल में एक बार राखी के दिन प्रकट होने वाले भाइयों को नजरअंदाज कर देती थी।

मुझे कभी मेरी इस आदत पर कोई पछतावा नहीं हुआ। राखत्‍योहामेरलिमायननहीरखतथा। सबकुछ ऐसे ही चलता रहा और मैं शादी कर अपने ससुराल पहुँच गई। ससुराल में जब पहली बार राखी का त्‍योहार आया तो आसपास की सारी औरतें और मेरी हमउम्र सहेलियाँ अपने मायके जाने की तैयारियाँ कर रही थीं। मेरा कोई भाई नहीं था, इसलिए मैं मायके नहीं जा रही थी। जिंदगी में पहली बार मुझे अपने जीवन में भाई की कमी का एहसास हुआ।

राखी के एक दिन पहले वहाँ की रौनक देखने लायक थी। कोई खरीदारी में व्‍यस्‍त था तो कोई मेंहदी लगवाने में। किसी की पैकिंग चल रही थी तो कोई हाथ से राखियाँ बना रही थीं। एक बस मैं ही थी, जो राखी की तैयारियों में व्‍यस्‍त नहीं थी।

राखी की सुबह पड़ोस वाली भाभी मुझे दोपहर में घर आकर राखी बाँधने का न्‍यौता दे गईं। मैंने घर में साफ-साफ मना कर दिया कि मैं ऐसे सहानुभूति वाले रिश्‍तों में विश्‍वास नहीं रखती और मैं राखी बाँधने नहीं जाऊँगी। फिर मेरे पति ने भाईसाहब का दिल रखने के लिए मुझे राखी बाँधने भेज दिया। उनके घर जाकर मुझे बहुत अच्‍छा लगा, मैंने बहुत अच्‍छे मन से उनकी कलाई पर राखी बाँधी और रस्‍में पूरी कर वापस लौट आई।

हमारे बीच रिश्‍ता धीरे-धीरे प्रगाढ़ होने लगा। चार सालों तक यह घनिष्‍ठता कायम रही। हर राखी पर मैं उनके घर और भाईदूज पर वो मेरे घर आने लगे। चार साल के बाद अचानक उनका ट्रांसफर मद्रास हो गया। पहले भाईसाहब वहाँ गए और बच्‍चों की परीक्षाएँ होने के बाद उनका पूरा परिवार ही वहाँ चला गया। जाते-जाते वो अपने घर का पता मुझे इस आग्रह के साथ देकर गए कि हर रक्षाबंधन पर मैं तुम्‍हारी राखी का इंतजार करूँगा।

webdunia
SubratoND
इस बीच मैं भी अपने पति के पास कानपुर चली गई। उनके जाने के बाद जब पहली बार रक्षाबंधन आया तो मैंने उन्‍हें राखी नहीं भेजी।
राखी के बाद दीवाली पर जब मैं अपने ससुराल पहुँची तो सासू माँ ने एक लिफाफा और एक सौ एक रुपए का शगुन थमा दिया। मैं झट से लिफाफा खोलकर पत्र पढ़ने लगी।

भैया ने लिखा था, ‘प्‍यारी बहना, राखी के पहले से ही तुम्‍हारी राखी का इंतजार कर रहा था पर वह अब तक नहीं मिली। आजकल डाक-विभाग में बहुत गड़बड़ होती है। इनकी भूल ने मुझे अपनी बहन के प्‍यार से महरूम दिया। मैं तुम्‍हें यह शगुन अपने आशीर्वाद के साथ भेज रहा हूँ। मुझे भरोसा है कि मेरा प्‍यार तुम तक जरूर पहुँचेगा।
तुम्‍हारा भैया
पुरुषोत्‍तम’

उनका पत्र पढ़कर मेरी पलकें भीग गईं और मुझे अपनी भूल का एहसास हुआ। अगले ही दिन, भाईसाहब का एक मनीऑर्डर और पत्र मेरे ससुराल पहुँचा। भाईसाहब ने राखी की तरह ही भाईदूज का शगुन भी अपने आशीर्वाद और प्‍यार भरे खत के साथ भेजा था। इस बार तो मुझे रोना ही आ गया। भगवान ने मुझे इतना प्‍यार करने वाला भाई दिया और मैं हूँ कि उसे पूछती ही नहीं।

इसके बाद हर राखी और हर भाई-दूज पर हम एक-दूसरे को शगुन और खत भेजते रहे। हर खुशी और गम में एक-दूसरे का साथ देते रहे। भाईसाहब मद्रास से बंगलौर, बंगलौर से हैदराबाद, हैदराबाद से जापान और जापान से मुंबई चले गए। जब कभी मुझ पर कोई मुसीबत आती, मेरे कहने से पहले भाईसाहब दुनिया के किसी भी कोने से मेरे पास पहुँच जाते।

अपने पति की नौकरी के चलते मैं कानपुर से पूना, पूना से औरंगाबाद और औरंगाबाद से भोपाल आ गई। हम दोनों ने कई बार घर और पते बदले, फोन नंबर बदले, लेकिन हर बार सही समय पर सही पते पर मेरी राखी जाती रही और भैया का शगुन आता रहा।

पिछले 24 सालों से यह सिलसिला ऐसे ही चल रहा हैं। मैं नई दुल्‍हन से सास बन गई और भैया सख्‍त अधिकारी से नर्म दिल बुजुर्ग में तब्‍दील हो गए। पर एक बात जो नहीं बदली वो थी - राखी।

आज भी मैं राखी के त्‍योहार के बीस दिन पहले ही अपने भैया को राखी भेज देती हूँ।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi