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एम. करुणानिधि

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मुथूवेल करुणानिधि का जन्म 3 जून 1924 को तिरुवरूर के तिरुकुवालाई में दक्षिणामूर्ति के नाम से हुआ था। पिता मुथूवेल तथा माता अंजुगम थीं। ईसाई वेलार समुदाय से हैं और उनके पूर्वज तिरुवरूर निवासी थे। करुणानिधि का 7 अगस्त 2018 को निधन हो गया। 
 
उनके 4 बेटे और 2 बेटियां हैं। बेटों के नाम एमके मुथू, जिन्हें पद्मावती ने जन्म दिया था, जबकि एमके अलागिरी, एमके स्टालिन, एमके तमिलरासू और बेटी सेल्वी दयालु अम्मल की संतानें हैं। दूसरी बेटी कनिमोझी तीसरी पत्नी रजति से हैं।  
 
करुणानिधि अपने जीते जी अपना मकान दान कर चुके थे। उनकी इच्छानुसार उनकी मौत के बाद इसे गरीबों के लिए एक अस्पताल में बदल दिया जाएगा। वे मांसाहार से शाकाहार की ओर आए थे।
 
एम. करुणानिधि भारत के वरिष्ठतम नेताओं में से एक थे और 5 बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रह चुके थे। राज्य की डीएमके के संस्थापक सीएन अन्नादुराई की मौत के बाद पार्टी प्रमुख बने। अपने अब तक के राजनीतिक जीवन में करुणानिधि ने कभी भी हार का मुंह नहीं देखा। 
 
मात्र 14 की आयु में करुणानिधि ने राजनीति में प्रवेश किया और हिन्दी विरोधी आंदोलनों में भाग लिया। उन्होंने द्रविड़ राजनीति का एक छात्र संगठन भी बनाया। अपने सहयोगियों के लिए उन्होंने 'मुरासोली' नाम के एक समाचार पत्र का प्रकाशन किया।
 
1957 में करुणानिधि पहली बार तमिलनाडु विधानसभा के विधायक बने और बाद में 1967 में वे सत्ता में आए और उन्हें लोक निर्माण मंत्री बनाया गया। 1969 में अन्ना दुराई के निधन के बाद वे राज्य के मुख्यमंत्री बने। 5 बार मुख्यमंत्री और 12 बार विधानसभा सदस्य रहने के साथ-साथ वे राज्य में अब समाप्त हो चुकी विधान परिषद के भी सदस्य रहे। 
 
अपने कार्यकाल में करुणानिधि ने पुलों और सड़कों के निर्माण कार्य में गहरी दिलचस्पी दिखाई और बहुत से लोकप्रिय कार्यक्रम भी शुरू किए। एक सफल राजनेता, मुख्यमंत्री, फिल्म लेखक, साहित्यकार होने के साथ ही करुणानिधि एक पत्रकार, प्रकाशक और कार्टूनिस्ट भी रहे।
 
2004 में लोकसभा चुनावों के दौरान करुणानिधि ने तमिलनाडु और पुडुचेरी में डीएमके के नेतृत्व वाली डीपीए का नेतृत्व किया था और दोनों राज्यों की सभी 40 लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब रहे थे। 
 
अगले चुनावों में उन्होंने 2009 में डीएमके के सांसदों की संख्या को 16 से बढ़ाकर 19 कर दिया था और यूपीए को तमिलनाडु तथा पुडुचेरी में 28 सीटें जितवाई थीं। करुणानिधि तमिल सिनेमा के नाटककार और पटकथा लेखक भी रहे थे। 
 
अपने समर्थकों के बीच वे कलईनार (कलाकार) के नाम से पुकारे जाते हैं। 1970 में पेरिस (फ्रांस) में हुए तृतीय विश्व तमिल सम्मेलन में उन्होंने उद्‍घाटन समारोह में एक विशेष भाषण दिया था। 1987 में कुआलालम्पुर (मलेशिया) में हुए 6ठे विश्व तमिल कॉन्फ्रेंस में भी उन्होंने उद्‍घाटन भाषण दिया था।
 
2010 में हुई विश्व क्लासिकल तमिल कॉन्फ्रेंस का अधिकृत थीम सांग एम. करुणानिधि ने ही लिखा था, जिसकी धुन एआर रहमान ने तैयार की थी। कई पुरस्कार और सम्मान उनके नाम हैं। इसके अलावा दो बार डॉक्टरेट की मानद उपाधि से भी नवाज़े गए।
 
सेतुसमुद्रम विवाद के जवाब में करूणानिधि ने हिन्दुओं के आराध्य भगवान श्रीराम के वजूद पर ही सवाल उठा दिए थे। उन्होंने कहा था कि 'लोग कहते हैं कि 17 लाख साल पहले कोई शख्स था, जिसका नाम राम था। कौन हैं वो राम ? वो किस इंजीनियरिंग कॉलेज से स्नातक थे ? क्या इस बात का कोई सबूत है ?' उनके इस सवाल और फिर टिप्पणी पर खासा बवाल हुआ था।
 
राजीव गांधी की हत्या की जांच करने वाले जस्टिस जैन कमीशन की अंतरिम रिपोर्ट में करुणानिधि पर लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया था। अंतरिम रिपोर्ट में इस बात की सिफारिश की थी कि राजीव गांधी के हत्यारों को बढ़ावा देने के लिए तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम.करुणानिधि और डीएमके पार्टी को जिम्मेदार माना जाए।
 
करुणानिधि के विरोधियों, उनकी पार्टी के कुछ सदस्यों और अन्य राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने करुणानिधि पर कुल पक्षपात को बढ़ावा देने और नेहरू-गांधी परिवार की तरह एक राजनीतिक वंश का आरंभ करने की कोशिश करने के आरोप भी लगाए थे। 
 
डीएमके को छोड़कर जाने वाले वाइको की आवाज़ विरोध में सबसे अधिक बुलंद थी। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि वाइको को एमके स्टालिन और परिवार के अन्य सदस्यों के लिए एक खतरे मानते हुए दरकिनार किया गया।
 
करुणानिधि ने अपने परिवार के सदस्यों को ग़लत देखा तो उनके खिलाफ कार्रवाई करने से भी गुरेज़ नहीं किया। हालांकि गलत कार्य करने का दोषी पाए जाने पर उन्होंने अपने अन्य दो बेटों एमके मुथु और एमके अलागिरी को निष्कासित कर दिया था। 
 
इसी तरह दयानिधि मारन को भी केन्द्रीय मंत्री के पद से हटा दिया था। करुणानिधि ने अपना करियर तमिल फिल्म उद्योग में एक पटकथा लेखक के तौर पर शुरू किया था, लेकिन बाद में अपनी तीक्ष्ण बुद्धि और भाषण कला के जरिए वे एक लोकप्रिय राजनीतिज्ञ बन गए। उन्होंने तमिल सिनेमा को शिवाजी गणेशन और एस.एस. राजेन्द्रन जैसे कलाकार दिए। उनके लेखन में द्रविड़ आंदोलन की विचारधारा का पुट रहता था। इसके चलते उनके विचारों का विरोध भी हुआ। परम्परावादी हिंदुओं ने उनकी फिल्मों का विरोध किया।
 
फिल्मों में लिखने के अलावा करुणानिधि ने तमिल साहित्य में भी अपना योगदान दिया। उन्होंने कविताएं, पत्र, पटकथाएं, उपन्यास, मंचीय नाटक, संवाद और गीत आदि भी लिखे। उन्होंने तमिल भाषा और कला को अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। 
 
करुणानिधि द्वारा लिखित पुस्तकों में रोमपुरी पांडियन, तेनपांडि सिंगम, वेल्लीकिलमई, नेंजुकू नीदि, इनियावई इरुपद, संग तमिल, कुरालोवियम, पोन्नर शंकर, तिरुक्कुरल उरई आदि शामिल हैं। गद्य और पद्य में लिखी उनकी पुस्तकों की संख्या 100 से भी अधिक है। 
 
उन्होंने मनिमागुडम, ओरे रदम, पालानीअप्पन, तुक्कु मेडइ, कागिदप्पू, नाने एरिवाली, वेल्लिक्किलमई, उद्यासूरियन और सिलप्पदिकारम नाटक लिखे। 20 वर्ष की आयु में करुणानिधि ने ज्यूपिटर पिक्चर्स के लिए पटकथा लेखक के रूप में कार्य शुरू किया। 
 
अपनी पहली ही फिल्म राजकुमारी से लोकप्रियता हासिल की। उनके द्वारा लिखी गई 75 पटकथाओं में राजकुमारी, अबिमन्यु, मंदिरी कुमारी, मरुद नाट्टू इलवरसी, मनामगन, देवकी, पराशक्ति, पनम, तिरुम्बिपार आदि शामिल हैं।

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