Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

कांशीराम : प्रोफाइल

हमें फॉलो करें कांशीराम : प्रोफाइल
राजनीतिज्ञ कांशीराम ने समाज के  दलित और पिछड़े वर्ग के लिए एक ऐसी जमीन तैयार की, जहां पर वे अपनी बात कह सकें और अपने हक के लिए लड़ सकें। आजीवन अविवाहित रहे कांशीराम ने पूरा जीवन पिछड़े वर्ग के लोगों की उन्नति के लिए और उन्हें एक मजबूत और संगठित आवाज देने के लिए समर्पित कर दिया। अछूतों और दलितों के उत्थान के लिए उन्होंने जीवनभर कार्य किया और बहुजन समाजवादी पार्टी जैसी राजनीतिक पार्टी की स्थापना की।
 
प्रारंभिक जीवन : पंजाब के रोरापुर में 15 मार्च 1934 को कांशीराम का जन्म रैदासी सिख परिवार में हुआ। रैदासी समाज ने अपना धर्म छोड़कर सिख धर्म अपना लिया था इसलिए इन्हें 'रैदासी सिख परिवार' कहा जाता है। कांशीराम के पिता ज्यादा-पढ़े लिखे नहीं थे, लेकिन उन्होंने अपने बच्चों को उच्च शिक्षा देने की ठानी। कांशीराम के 2 भाई और 4 बहनें थीं। सबसे बड़े होने के साथ भाई-बहनों में वे सबसे बड़े भी थे। ग्रेजुएशन करने के बाद वे डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ), पुणे में सहायक वैज्ञानिक के रूप में भर्ती हो गए। 
 
राजनीतिक जीवन : 1965 में कांशीराम ने डॉ. अम्बेडकर के जन्मदिन पर सार्वजनिक अवकाश रद्द करने के विरोध में संघर्ष किया। इसके बाद उन्होंने पीड़ितों और शोषितों के हक के लिए लड़ाई लड़ने का संकल्प ले लिया। उन्होंने संपूर्ण जातिवादी प्रथा और डॉ. बीआर अम्बेडकर के कार्यों का गहन अध्ययन किया और दलितों के उद्धार के लिए बहुत प्रयास किए। 1971 में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपने एक सहकर्मी के साथ मिलकर अनुसूचित जाति-जनजाति, अन्य पिछड़ी जाति और अल्पसंख्यक कर्मचारी कल्याण संस्था की स्थापना की।
 
यह संस्था पूना परोपकार अधिकारी कार्यालय में पंजीकृत की गई थी। हालांकि इस संस्था का गठन पीड़ित समाज के कर्मचारियों का शोषण रोकने हेतु और असरदार समाधान के लिए किया गया था, लेकिन इस संस्था का मुख्य उद्देश्य था लोगों को शिक्षित और जाति प्रथा के बारे में जागृत करना। धीरे-धीरे इस संस्था से अधिक से अधिक लोग जुड़ते गए जिससे यह काफी सफल रही। सन् 1973 में कांशीराम ने अपने सहकर्मियों के साथ मिलकर बीएएमसीईएफ (बैकवार्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एम्प्लॉई फेडरेशन) की स्थापना की।
 
इसका पहला क्रियाशील कार्यालय सन् 1976 में दिल्ली में शुरू किया गया। इस संस्था का आदर्श वाक्य था- एड्यूकेट ऑर्गनाइज एंड एजिटेट। इस संस्था ने अम्बेडकर के विचार और उनकी मान्यता को लोगों तक पहुंचाने का बुनियादी कार्य किया। इसके पश्चात कांशीराम ने अपना प्रसार तंत्र मजबूत किया और लोगों को जाति प्रथा, भारत में इसकी उपज और अम्बेडकर के विचारों के बारे में जागरूक किया। वे जहां-जहां गए, उन्होंने अपनी बात का प्रचार किया और उन्हें बड़ी संख्या में लोगों का समर्थन प्राप्त हुआ।
 
सन् 1980 में उन्होंने ‘अम्बेडकर मेला’ नाम से पद यात्रा शुरू की। इसमें अम्बेडकर के जीवन और उनके विचारों को चित्रों और कहानी के माध्यम से दर्शाया गया। 1984 में कांशी राम ने बीएएमसीईएफ के समानांतर दलित शोषित समाज संघर्ष समिति की स्थापना की। इस समिति की स्थापना उन कार्यकर्ताओं के बचाव के लिए की गई थी जिन पर जाति प्रथा के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए हमले होते थे। हालांकि यह संस्था पंजीकृत नहीं थी लेकिन यह एक राजनीतिक संगठन था। 1984 में कांशीराम ने 'बहुजन समाज पार्टी' के नाम से राजनीतिक दल का गठन किया।
 
1986 में उन्होंने यह कहते हुए कि अब वे बहुजन समाज पार्टी के अलावा किसी और संस्था के लिए काम नहीं करेंगे, अपने आपको सामाजिक कार्यकर्ता से एक राजनेता के रूप में परिवर्तित किया। पार्टी की बैठकों और अपने भाषणों के माध्यम से कांशीराम ने कहा कि अगर सरकारें कुछ करने का वादा करती हैं, तो उसे पूरा भी करना चाहिए अन्यथा ये स्वीकार कर लेना चाहिए कि उनमें वादे पूरे करने की क्षमता नहीं है। 1991 में पहली बार यूपी के इटावा से लोकसभा का चुनाव जीता। 1996 में दूसरी बार लोकसभा का चुनाव पंजाब के होशियारपुर से जीते। 2001 में सार्वजनिक तौर पर घोषणा कर कुमारी मायावती को उत्तराधिकारी बनाया। 
 
 
कांशीराम को मधुमेह और उच्च रक्तचाप की जैसी पीड़ा थी। 1994 में उन्हें दिल का दौरा भी पड़ चुका था। दिमाग की नस में खून का थक्का जमने से 2003 में उन्हें दिमाग का दौरा पड़ा। 2004 के बाद खराब सेहत के चलते उन्होंने सार्वजनिक जीवन छोड़ दिया। 9 अक्टूबर 2006 को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई। कांशीराम की अंतिम इच्छा के अनुसार उनका अंतिम संस्कार बौद्ध रीति-रिवाज से किया गया।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

रोटोमैक के चेयरमैन विक्रम कोठारी को झटका