Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

भारत की अस्मिता और गौरव की पहचान है गंगा नदी, पढ़ें ऐतिहासिक महत्व

हमें फॉलो करें भारत की अस्मिता और गौरव की पहचान है गंगा नदी, पढ़ें ऐतिहासिक महत्व
गंगा दशहरा 2018 : मां गंगा अवतरण दिवस 
 
 'ग अव्ययं गमयति इति गंगा' 
-जो स्वर्ग ले जाए, वह गंगा है। 
 
मां गंगा ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, तिथि दशमी, दिन मंगलवार, हस्त नक्षत्र में पृथ्वी पर अवतरित हुई। पृथ्वी पर आते ही सबको सुखी, समृद्व व शीतल कर दुखों से मुक्त करने के लिए सभी दिशाओं में विभक्त होकर सागर में जाकर पुनः जा मिलने को तत्पर एक विलक्षण अमृतप्रवाह। 
 
बिंदूसर के तट पर राजा भगीरथ का तप सफल हुआ। जो धारा अयोध्या के राजा सगर के शापित पुत्रों को पुनर्जीवित करने राजा दिलीप के पुत्र, अंशुमान के पौत्र और श्रुत के पिता राजा भगीरथ के पीछे चली, वह भागीरथी के नाम से प्रतिष्ठित हुई।
 
इतिहास गवाह है कि गंगा की स्मृति छाया में सिर्फ लहलहाते खेत या माल से लदे जहाज ही नहीं, बल्कि वाल्मीकि का काव्य, बुद्ध-महावीर के विहार, अशोक, हर्ष जैसे सम्राटों का पराक्रम तथा तुलसी, कबीर और नानक की गुरुवाणी। सभी के चित्र अंकित है।

 
गंगा किसी धर्म, जाति या वर्ग विशेष की न होकर, पूरे भारत की अस्मिता और गौरव की पहचान बनी रही है। इस अद्वितीय महत्ता के कारण ही भारत का समाज युगों-युगों से एक अद्वितीय तीर्थ के रूप में गंगा का गुणगान करता आया है- न माधव समो मासो, न कृतेन युगं समम्‌। न वेद सम शास्त्र, न तीर्थ गंगया समम्‌।
 
लेकिन लगता है कि मां गंगा ने अपनी कलियुगी संतानों के कुकृत्यों को पहले ही देख लिया था। इसीलिए मां गंगा ने अवतरण से इंकार करते हुए सवाल किया था- 'मैं इस कारण भी पृथ्वी पर नहीं जाऊंगी कि लोग मुझमें अपने पाप धोएंगे। फिर मैं उस पाप को धोने कहां जाऊंगी?

 
तब राजा भगीरथ ने उत्तर दिया था- 'माता! जिन्होंने लोक-परलोक, धन-सम्पत्ति और स्त्री-पुत्र की कामना से मुक्ति ले ली है, जो ब्रह्मनिष्ठ और लोकों को पवित्र करने वाले परोपकारी सज्जन हैं। वे आप द्वारा ग्रहण किए गए पाप को अपने अंग के स्पर्श और श्रमनिष्ठा से नष्ट कर देंगे।' संभवतः इसीलिए गंगा रक्षा सिद्धांतों ने ऐसे परोपकारी सज्जनों को ही गंगा स्नान का हक दिया था।
 
गंगा नहाने का मतलब ही है- संपूर्णता। उन्हे गंगा स्नान का कोई अधिकार नहीं, जो अपूर्ण है। लक्ष्य से भी और विचार से भी। इसलिए किसी भी अच्छे काम के संपन्न होने पर हमारे समाज ने कहा- 'हम तो गंगा नहा लिए।' किंतु आज तो गंगा आस्था के नाम पर हम सभी सिर्फ स्नान कर सिर्फ मैला ही बढ़ा रहे हैं।

 
गंगा में वह सभी कृत्य कर रहे हैं, जिन्हे गंगा रक्षा सूत्र ने पापकर्म बताकर प्रतिबंधित किया था- मल मूत्र त्याग, मुख धोना, दंतधावन, कुल्ला करना, निर्माल्य फेंकना, मल्ल संघर्षण या बदन को मलना, जलक्रीडा अर्थात् स्त्री-पुरुष द्वारा जल में रतिक्रीडा, पहने हुए वस्त्र को छोड़ना, जल पर आघात करना, तेल मलकर या मैले बदन गंगा में प्रवेश, गंगा किनारे मिथ्याभाषण- वृथा बकवाद, कुदृष्टि और भक्ति रहित कर्म करना साथ ही औरों द्वारा किए जाने को न रोकना।

 
माघ मेला से लेकर कुंभ तक कभी अपनी नदी प्रकृति व समाज की समृद्धि के चिंतन-मनन के मौके थे। हमने इन्हें दिखावा, मैला और गंगा मां का संकट बढ़ाने वाला बना दिया। भगवान विष्णु और तपस्वी जह्नु को छोड़कर और पूर्व में कोई प्रसंग नहीं मिलता, जब किसी ने गंगा को कैद करने का दुस्साहस किया हो। किंतु अंग्रेजों के जमाने से गंगा को बांधने की शुरू हुई कोशिश को आजाद भारत ने आगे ही बढ़ाया है। आज कम से कम अपनी मां गंगा की जन्मतिथि से ही सोचना शुरू कीजिए कि गंगा को बचाने के लिए आप क्या कर सकते है। 
 
खैर गंगा आज फिर सवाल कर रही है कि वह मानवप्रदत्त पाप से मुक्त होने कहां जाएं? याद रखें कि जिस देश, संस्कृति और सभ्यता ने अपनी अस्मिता के प्रतीकों को संजोकर नहीं रखा, वे देश संस्कृतियां और सभ्यताएं मिट गईं। क्या भारत इतने बड़े आघात के लिए तैयार हैं? 

- अरुण तिवारी

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

यात्रा में कोई अनिष्ट ना हो इसलिए घर से कर के निकलें यह 3 सरल उपाय