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देश के 15वें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी...

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भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को देश के 15वें मुख्‍यमंत्री पद की शपथ ली। उनका प्रधानमंत्री बनना महज संयोग नहीं बल्कि कठिन संघर्ष की महागाथा है। इसी संघर्ष ने उन्हें राजनीति का एक महायोद्धा बनाया और चायवाले से वे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री बने। गुजरात से निकला यह 'हीरा' अब पूरी दुनिया में अपनी ‍चमक बिखेरने के लिए तत्पर है। नरेन्द्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना इसलिए अहमियत रखता क्योंकि उन्होंने देश के हर छोटे और गरीब व्यक्ति में एक सपना बोया है, जो कठोर परिश्रम से किसी भी ऊंचाई पर पहुंच सकता है।
 

जननायक का जनाभिषेक (वर्ष 2014) : नरेन्द्र मोदी के देश के 15 वें प्रधानमंत्री बने। इसके लिए मोदी ने काफी पसीना बहाया और पहली बार भारत में गैर कांग्रेसी सरकार बनाई। अकेली भाजपा को इस चुनाव में 282 सीटें हासिल हुई हैं।


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अलविदा गुजरात (वर्ष 2014) : लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत के बाद मोदी ने गुजरात के मुख्‍यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और राज्य की कमान आनंदी बेन पटेल के हाथों सौंपी, जो राज्य की पहली महिला मुख्‍यमंत्री हैं।


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बड़े लक्ष्य की तैयारी (वर्ष 2013) : मोदी को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किया। ...और इसके बाद मोदी पूरी ताकत और रणनीति के साथ अपने लक्ष्य को पाने के लिए निकल पड़े और लक्ष्य पाने के बाद ही रुके। हालांकि अब कई नए लक्ष्य उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।


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तीसरी बड़ी जीत (दिसंबर 2013) : गुजरात राज्य विधानसभा चुनावों में तीसरी बार जीत दर्ज कराई। गुजरात में नहीं पूरे देश में मोदी और उनकी नीतियों का प्रभाव देखने को मिला, जबकि उन्होंने भाजपा को राज्य विधानसभा चुनावों में एक बार और जीत दिलाने का कारनामा किया। इस समय तक किसी को अंदाजा भी नहीं था कि मोदी जल्द ही देश की कमान संभालने लायक हो जाएंगे।


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गुजरात में फिर चला मोदी का जादू (दिसंबर 2007) : गुजरात राज्य के विधानसभा चुनावों में दूसरी बार जीत दर्ज कराई। राज्य में मोदी का जादू फिर एक बार लोगों के सिर चढ़कर बोला और इस समय पर उन्होंने राज्य में विकास योजनाओं को आगे बढ़ाने के अपने सभी प्रयासों को एक नई गति दी।


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पहली चुनावी जीत (दिसंबर 2002) : गुजरात राज्य विधानसभा के चुनावों में पहली बार भारी जीत कराई। यह वह समय था जब राजनीतिक जानकारों को आशंका थी कि उनकी नीतियों से गुजरात में सामाजिक समरसता का ताना-बाना बिखर सकता है, लेकिन उन्होंने अपनी नीतियों को किसी वर्ग विशेष की बजाय आम जनता तक केन्द्रित रखा। उल्लेखनीय है कि 2002 में हुए दंगे का दाग हमेशा मोदी से जुड़ा रहा, लेकिन समय के लोगों का भरोसा भी उनके प्रति मजबूत हुआ।


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...और मिली गुजरात की कमान (अक्टूबर 2001) : गुजरात में केशुभाई पटेल के स्थान पर मुख्यमंत्री बने। तत्कालीन मुख्यमंत्री के खिलाफ व्यापक असंतोष को देखते हुए मोदी को दिल्ली से अहमदाबाद बुलाया गया था और उन्हें राज्य की कमान सौंप दी गई। उन पर भूकम्प प्रभावित राज्य को फिर से सबल बनाने की जिम्मेदारी थी। वे लोगों की उम्मीदों पर खरे उतरे और भविष्य के लिए उनकी रानीतिक जमीन तैयार हुई। फिर कभी भी उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।


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संगठन को संवारा (वर्ष 1998) : भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री बनाए गए। पार्टी के संगठन में काम करते हुए मोदी ने अपनी संगठनात्मक कुशलता को साबित करते हुए पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने के प्रयासों को नई गति दी। उन्होंने इससे पहले पार्टी के दो बड़े नेताओं, लालकृष्ण आडवाणी और मुरलीमनोहर जोशी की रथयात्राओं का कुशल संचालन भी‍ किया था।


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यहां भी पूरी क्षमता दिखाई (वर्ष 1995) : पांच प्रमुख राज्यों में भाजपा के सेक्रेटरी बनाए गए। इन राज्यों में मोदी ने पार्टी के लिए जमीन तैयार करने की बहुत मेहनत की और अपनी क्षमताओं से लोगों का परिचय कराया। इससे पहले वे संघ में थे और इस संगठन की अपनी समूची क्षमताओं के साथ सेवा कर रहे थे।


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जब संघ से भाजपा में आए (वर्ष 1987) : संघ से भाजपा में शामिल किए गए। जब संघ ने अपने कुछ कार्यकर्ताओं को भाजपा में शामिल किया तो उनमें से एक नरेन्द्र मोदी भी एक थे। संघ की समर्पित भाव से सेवा करने के अपने गुण के कारण उन्हें भाजपा में काम करने का मौका दिया गया था। पार्टी में शामिल होने के बाद उन्होंने हर स्तर पर अपनी उपयोगिता सिद्ध की।


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राष्ट्रनायक बनने की दिशा में पहला कदम (वर्ष 1962) : राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ से जुड़ाव हुआ। करीब बारह वर्ष की उम्र में वे संघ की शाखाओं में जाने लगे थे। इस दौरान उनका परिचय संघ की विशेषताओं से हुआ और उन्होंने इन सभी विशेषताओं को आत्मसात कर लिया। किशोर नरेन्द्र के मन पर संघ के यह आदर्श हमेशा के लिए अंकित हो गए और इन्होंने उनके राष्ट्रनायक बनने की दिशा में पहला कदम रखा था।


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गरीबी में जन्म, पर नियति को कुछ और ही मंजूर (17 सितम्बर, 1950) : मेहसाणा जिले के वडनगर में जन्म। हीराबेन और दामोदर दास मोदी के दूसरे नंबर के पुत्र पांच भाई बहनों में से एक थे। उनका बचपन अभावों और परेशानियों में बीता और उन्होंने घर का खर्च चलाने के ‍ल‍िए माता-पिता की मदद की। पिता चाय बनाते थे और वे इसे स्टेशन पर आने वाली रेलगाड़ियों की सवारियों को बेचते थे तो अक्सर अपनी मां के साथ दूसरे के घरों में काम भी करते थे। मोदी ने कुछ समय हिमालय में भी बिताया, जहां वे संन्यास के उद्देश्य से गए थे, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। आज वे देश के सबसे ताकतवर व्यक्ति बन गए हैं यानी देश के प्रधानमंत्री बन गए हैं।


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