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भारत में तीन तलाक पर बवाल क्यों, इन मुस्लिम देशों में भी तो है प्रतिबंध...

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देश में तीन तलाक को लेकर केंद्र सरकार और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बीच विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। भारत में भले ही इसे खत्म करने पर बहस चल रही हो पर पड़ोसी पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और श्रीलंका समेत 22 देश इसे कब का खत्म कर चुके हैं। दूसरी ओर भारत में मुस्लिम संगठन शरीयत का हवाला देकर तीन तलाक को बनाए रखने के लिए हस्ताक्षर अभियान से लेकर अन्य जोड़तोड़ में लग गए हैं। आइए, जानते हैं किन-किन मुस्लिम देशों में महिलाओं को मिल चुकी है तीन तलाक से मुक्ति... 
 
मिस्र ने सबसे पहले 1929 में ही तीन तलाक पर प्रतिबंध लगा दिया था। यहां रहने वाले ज्यादातर सुन्नी मुसलमान हैं। यहां कानून के अनुसार तीन बार तलाक कहने पर भी उसे एक ही माना जाएगा। यहां तलाक को वापस लेने का भी प्रावधान है, जबकि शरीयत के मुताबिक एक बार तलाक होने के बाद महिला को हलाला यानी दूसरे मर्द के साथ निकाल कर उसके साथ हमबिस्तर होना पड़ता है। हलाला के बाद ही महिला का निकाह पूर्व पति से हो सकता है। 
 
मुस्लिम देश इंडोनेशिया में तलाक के लिए कोर्ट की अनुमति जरूरी है। यहां पर तलाक के लिए आवेदन मिलने के तीन महीने तक अदालत दोनों को फिर से मिलाने का प्रयास भी करती है। यहां महिलाओं को तलाक देने का अधिकार है। 
 
ईरान में 1986 में बने 12 धाराओं वाले तलाक कानून के अनुसार ही तलाक संभव है। 1992 में इस कानून में कुछ संशोधन किए गए इसके बाद कोर्ट की अनुमति से ही तलाक लिया जा सकता है। कट्‍टरपंथी समझे जाने वाले ईरान में भी महिलाओं को भी तलाक देने का अधिकार है। इराक में भी कोर्ट की अनुमति से ही तलाक लिया जा सकता है।
 
तुर्की ने 1926 में स्विस नागरिक संहिता अपनाकर तीन तलाक की परंपरा को त्याग दिया। इस संहिता के लागू होते ही शादी और तलाक से जुड़ा इस्लामी कानून अपने आप हाशिये पर चला गया। हालांकि 1990 के दशक में इसमें जरूर कुछ संशोधन हुए, लेकिन जबरदस्ती की धार्मिक छाप से यह तब भी बचे रहे। साइप्रस में भी तुर्की के कानून को मान्य किया गया है। अत: यहां भी तीन तलाक को मान्यता नहीं है। 
 
भारत के पड़ोसी पाकिस्तान में क्या है तलाक की व्यवस्था... पढ़ें अगले पेज पर....

भारत का पड़ोसी और दुनिया की दूसरी सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश पाकिस्तान में भी तीन बार तलाक बोलकर पत्नी से छुटकारा नहीं पाया जा सकता। सुन्नी बहुल इस देश में भी तलाक चाहने वाले व्यक्ति को पहले अपनी पत्नी के खिलाफ यूनियन बोर्ड के चेयरमैन को नोटिस देना होता है। इस मामले में पत्नी को भी जवाब देने का मौका दिया जाता है।
 
पाकिस्तान में 1955 में महिलाओं के आंदोलन के बाद यह व्यवस्था शुरू की गई। दरअसल, उस समय प्रधानमंत्री मोहम्मद अली बोगरा ने अपनी सेक्रेटरी के प्रेम में पड़कर पत्नी को तलाक दे दिया था, जिसका महिला संगठन ने काफी विरोध किया था। बांग्लादेश ने भी तलाक पर पाकिस्तान में बना नया कानून अपने यहां लागू कर तीन तलाक पर प्रतिबंध लगा दिया। इस देश में 89 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। 
 
तालिबान प्रभाव वाले मुस्लिम देश अफगानिस्तान में तलाक के लिए कानूनन रजिस्ट्रेशन जरूरी है। यहां 1977 में नागरिक कानून लागू किया गया था। इसके बाद से तीन तलाक की प्रथा समाप्त हो गई। भारत के ही एक अन्य पड़ोसी देश श्रीलंका में तीन तलाक वाले नियम को मान्यता नहीं है। हालांकि श्रीलंका मुस्लिम देश नहीं है, लेकिन यहां तलाक देने से पहले काजी को सूचना देनी होती है। 30 दिन में काजी पति-पत्नी में समझौते की कोशिश करता है। इसके बाद ही काजी और दो चश्मदीदों के सामने तलाक हो सकता है।
 
मलेशिया में कोर्ट के बाहर तलाक मान्य नहीं है। पुरुषों की तरह महिलाएं भी यहां तलाक के लिए आवेदन दे सकती हैं। लीबिया में महिला और पुरुष दोनों को ही तलाक लेने की अनुमति है, लेकिन यहां भी कोर्ट की अनुमति से ही तलाक लिया जा सकता है। 
 
कुछ और  देश जहां मान्य नहीं है तीन तलाक... पढ़ें अगले पेज पर....

सूडान में इस्लाम को मानने वालों की जनसंख्या सबसे ज्यादा है। यहां सूफी और सलाफी मुसलमान ज्यादा हैं, लेकिन यहां भी तीन तलाक को मान्यता नहीं है। 1935 से ही यहां तीन तलाक पर प्रतिबंध है। अल्जीरिया में भी अदालत में ही तलाक दिया जा सकता है। यहां जोड़े को फिर से मिलने के लिए 90 दिन का समय रखा गया है। 
 
सीरिया में करीब 74 प्रतिशत आबादी सुन्नी मुसलमानों की है। यहां 1953 से तीन तलाक पर प्रतिबंध है। संविधान के अनुच्छेद 3 (1) में यह प्रावधान है कि कोर्ट से तलाक लिया जा सकता है। महिला भी तलाक ले सकती है। यहां तलाक के बाद महिला को गुजारा भत्ता देना होता है। मोरक्को में 1957-58 से ही मोरक्कन कोड ऑफ पर्सनल स्टेटस लागू है। इसी के तहत तलाक लिया जा सकता है। तलाक का पंजीयन कराना जरूरी है। 
 
 
ट्‌यूनीशिया में 1956 में बने कानून के मुताबिक वहां अदालत के बाहर तलाक को मान्यता नहीं है। यहां पहले तलाक की वजहों की पड़ताल होती है और यदि दंपति के बीच सुलह की कोई गुंजाइश न दिखे तभी तलाक को मान्यता मिलती है। इसके अलावा संयुक्त अरब अमीरात, जॉर्डन, कतर, बहरीन और कुवैत में भी तीन तलाक पर प्रतिबंध है।


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