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पिता के हत्यारे से लेकर नोटबंदी तक, राहुल गांधी के भाषण की 11 बातें जिन पर हुआ बवाल...

हमें फॉलो करें पिता के हत्यारे से लेकर नोटबंदी तक, राहुल गांधी के भाषण की 11 बातें जिन पर हुआ बवाल...
, गुरुवार, 23 अगस्त 2018 (14:17 IST)
जर्मनी में बूसेरियस समर स्कूल (जहां राहुल गांधी पढ़े हैं), में बोलते हुए राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर तीखे हमले किए। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय पटल पर जिस तरह से मोदी सरकार को निशाने पर लिया उससे भाजपा और एनडीए के अन्य सहयोगी दलों में भारी गुस्सा है। आइए जानते हैं, आखिर क्या कहा राहुल गांधी ने जिस पर मचा है इतना बवाल-  
 
1. नोटबंदी पर प्रहार : राहुल गांधी ने कहा कि कुछ साल पहले प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था में नोटबंदी का फैसला किया और एमएसएमई के नकद प्रवाह को बर्बाद कर दिया। इससे अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लाखों लोग बेरोजगार हो गए। बड़ी संख्या में छोटे व्यवसायों में काम करने वाले लोगों को अपने गांव लौटने को मजबूर होना पड़ा। इससे लोग काफी नाराज हैं। मॉब लिंचिंग के बारे में जो कुछ भी हम सुनते हैं, वो इसी का परिणाम है।
 
2. अहिंसा : मैंने पीएम मोदी को गले लगाकर नफरत का जवाब प्यार से दिया। मेरे खिलाफ प्रधानमंत्री मोदी नफरत फैलाने वाली टिप्पणियां करते हैं। अहिंसा, भारत का दर्शन है और भारतीय होने का सार है। हालांकि मोदी को गले लगाने का कदम मेरी पार्टी के कुछ सदस्यों को पसंद नहीं आया।
 
3. करुणा : 1991 में मेरे पिता को आतंकवादियों ने मार डाला था। जब मैंने श्रीलंका में अपने पिता के हत्यारे को मृत पड़ा देखा, तो मुझे अच्छा नहीं लगा। मैंने उनमें उसके रोते हुए बच्चों को देखा।
4. पीड़ा : मैंने हिंसा को झेला है और मैं आपको बता सकता हूं कि इससे निकलने का एकमात्र तरीका है, माफ करना है और माफ करने के लिए आपको यह समझना होगा कि ये कहां से आ रही है?
 
5. प्रेम : अगर आप लोगों को गले नहीं लगाते, तो कोई और ऐसा करेगा। हो सकता है कि यह स्थिति आपके लिए अच्छी न हो। आपस में जुड़ी दुनिया में आपको सुनना होगा कि दूसरे क्या कह रहे हैं और वे कहां से आ रहे हैं। मैं किसी व्यक्ति से लड़ सकता हूं और उससे असहमत हो सकता हूं, लेकिन नफरत खतरनाक चीज है।
 
6. कॉर्पोरेट घरानों पर निशाना : रोजगार गारंटी योजना, भोजन का अधिकार, सूचना का अधिकार और बैंकों का राष्ट्रीयकरण ये कुछ ऐसे विचार थे, जो सभी सरकारें करना चाहती हैं, लेकिन अब ये विचार काफी हद तक नष्ट हो गए हैं। दलितों, अल्पसंख्यकों और आदिवासियों को अब सरकार से कोई फायदा नहीं मिलता है। उनको फायदा देने वाली सारी योजनाओं का पैसा चंद बड़े कॉर्पोरेट के पास जा रहा है।
 
7. व्यक्तिवाद : भारत में धीरे-धीरे बदलाव शुरू हुआ। ये बदलाव असहिष्णुता को बढ़ावा दे रहा है। साथ ही ‘एक व्यक्ति, एक मत’ के विचार को भी बढ़ावा दे रहा है।
 
8. चीन से तुलना : वैसे चीन और भारत के बीच कोई होड़ नहीं है। हो सकता है कि चीन भारत की तुलना में तेज़ी से बढ़ रहा हो, लेकिन यह मायने नहीं रखता है। वहीं, भारत में लोग जो चाहते हैं वह अभिव्यक्त कर सकते हैं और यही मायने रखता है।
 
9. अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर जोर : अमेरिका के साथ भारत के अहम सामरिक संबंध हैं और हम उनके साथ लोकतंत्र जैसे कुछ विचार साझा करते हैं। हालांकि भारत इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकता है कि चीन तेजी से आगे बढ़ रहा है और वह भविष्य में प्रभावी भूमिका निभाएगा। ऐसे में भारत को दोनों देशों के बीच संतुलन बनाना होगा। इसमें भारत के साथ यूरोप की भूमिका अहम होगी।
 
10. महिला प्रतिनिधित्व : जब मैं संसद और राजनीतिक दलों को देखता हूं, तो वहां महिला प्रतिनिधि काफी कम दिखाई देती हैं। हम महिला आरक्षण के लिए विधेयक लेकर आए हैं, लेकिन ये पूरी तरह से सामाजिक मुद्दा है। यदि हम महिलाओं को शामिल नहीं करते हैं, तो देश का निर्माण नहीं कर सकते। भारतीय पुरुषों को महिलाओं को अपने बराबर देखना होगा।
 
11. शरणार्थी समस्या : अगर भारत में हम सभी लोगों को रोजगार दे पाते हैं, तो जनसंख्या अपने आप में कोई समस्या नहीं है। शरणार्थियों के अपमान का कारण कामगारों के बीच नौकरियों की कमी होना है। इससे घृणा और टकराव पैदा हो रहा है।

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