Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

'धर्म की दुकान' राधे मां की विचित्र दुनिया

हमें फॉलो करें 'धर्म की दुकान' राधे मां की विचित्र दुनिया
, सोमवार, 30 अक्टूबर 2017 (19:33 IST)
-अतुल शर्मा

तरह-तरह के आरोपों और अपने पहनावे से विवादों में रहने वाली स्वयंभू साध्वी राधे मां उर्फ सुखविंदर कौर अपने अनुयायियों के संकट दूर करने का दावा करती हैं। वे अपने विचित्र तौर-तरीकों के कारण हमेशा सुर्खियों बनी रहती हैं। उनके समर्थक उन्हें देवी की तरह पूजते हैं। वे कभी अपने भक्तों को गुलाब के फूल देती हैं तो कभी उनकी बाहों में झूल जाती हैं। कोई उन्हें धर्म की दुकान चलाने वाली कहता है तो कोई उन्हें धर्म के नाम पर अश्लीलता फैलाने के आरोप भी लगाता है। 
 
हाल ही में उत्तर प्रदेश के संभल में उन्होंने लोगों का अंग्रेजी टेस्ट लेकर सबको चौंका दिया था। हालांकि जब टीवी चैनल पर लोगों ने उन्हें अंग्रेजी बोलते हुए देखा तो लोग अपनी हंसी नहीं रोक पाए थे। वे उस वीडियो के सामने आने के बाद भी काफी आलोचना का शिकार हुई थीं, जिसमें वे काफी कम कपड़ों में फिल्मी धुन पर थिरक रही थीं। 
 
सुखविंदर से राधे मां बनने का सफर : राधे मां का जन्म पंजाब के गुरदासपुर जिले के दोरांगला गांव में सन् 1964 में हुआ। सुखविंदर ने अपनी स्कूली शिक्षा भी पूर्ण नहीं की। वह केवल वह 10वी पास हैं। इनके परिवार में 2 भाई और 1 बहन भी हैं।
 
जब सुखविंदर 18 वर्ष की हुई तो उनकी शादी पंजाब में रहने वाले करमसिंह हलवाई के बेटे मोहनसिंह के साथ कर दी गई। शादी के बाद सुखविंदर ने 2 बच्चों को जन्म दिया। मोहनसिंह  ने कुछ समय मिठाई की दुकान पर काम किया और फिर वह विदेश चला गया। 
 
पति के विदेश जाने से सुखविंदर कौर का जीवन ही बदल गया। इस दौरान उन्होंने कपड़े भी सिले और जल्द ही वह अध्यात्म की दिशा में मुड़ गई। 23 साल की उम्र में सुखविंदर कौर महंत रामाधीन दास की शिष्या बन गईं। महंत ने उन्हें आध्यात्मिक दीक्षा दी और 'राधे मां' के  रूप में नया नाम भी दिया। इस नए नाम के साथ सुखविंदर सत्संग करने लगी और खानपुर में मां भगवती मंदिर को अपना ठिकाना बना लिया। कुछ लोगों का यह भी दावा है कि सत्संग के दौरान वह अपने भक्तों को आशीर्वाद देती थी, जिससे उनके संकट  दूर होते थे। 
 
ऐसा ही आशीर्वाद राधे मां ने मुंबई में रहने वाले एक भक्त को दिया और उसके इस वरदान से भक्त का मसला हल हो गया और वही भक्त राधे मां को मुंबई ले गया। इसके बाद वह  नियमित रूप से मुकेरियां आती रही। समय के साथ वह अपनी आध्यात्मिक बैठकों में व्यस्त हो गई और पति और दोनों बेटों के साथ मुंबई में ही रहना शुरू कर दिया। उसके बाद से राधे मां का मुकेरियां आना कम हो गया। 
 
हत्या का आरोप : खानपुर में राधे मां का आध्यात्मिक निवास मां भगवती मंदिर है। मंदिर में उनकी बहन अपने परिवार के साथ रहती है और उसकी देखरेख भी करती है। भक्त सुखविंदर को मां और उनके पति को पिता का दर्जा देते हैं। पति को डैडीजी कहते हैं तो उनकी बहन को रज्जी मासी और उनके पति को मौसाजी कहकर संबोधित करते हैं। राधे मां की भाभी बलविंदर कौर की हत्या के मामले में उनके भाई और पिता को सजा भी हो चुकी है।
 
बलविंदर कौर के भाई जगतारसिंह ने अपनी बहन की हत्या के मामले में राधे मां के भी शामिल होने का शक जताया था। हत्या के मामले में राधे मां के दोनों भाई और पिता को 10-10 साल  की सजा भी हुई थी। कहा जाता है कि एक बार राधे मां ने अपनी भाभी को ऐसा धमकाया था कि वे बेहोश  हो गई थीं।
 
महामंडलेश्वर की गद्दी : 2012 में राधे मां को महामंडलेश्वर भी बनाया गया, लेकिन विवादों के चलते जल्द ही यह गद्दी उनके हाथ से फिसल भी गई। 11 सदस्यीय जांच समिति ने राधे मां के जीवन से जुड़े सभी स्थानों पर जाकर जांच की, जिसमें वे दोषी पाईं गई और उन्हें महामंडलेश्वर से बेदखल कर दिया गया। द्वारिकापीठ के स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने तो राधे मां को नासिक कुंभ मेले में औपचारिक शाही स्नान करने से भी रोका था। 
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

रोजर फेडरर ने आठवीं बार जीता 'बासेल खिताब'