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हिमालय के लिए रवाना हुए बाबा केदार, 3 मई को खुलेंगे कपाट

हमें फॉलो करें हिमालय के लिए रवाना हुए बाबा केदार, 3 मई को खुलेंगे कपाट
, रविवार, 30 अप्रैल 2017 (20:21 IST)
रुद्रप्रयाग। उत्तराखंड में ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में सुबह पंचाग पूजन के तहत अनेक पूजाएं संपन्न की गईं और इसके बाद बाबा केदार की पंचमुखी मूर्ति को फूलमालाओं से सजी डोली में विराजमान कर हिमालय के लिए रवाना किया गया। 
        
इस दौरान हजारों की संख्या में मौजूद तीर्थयात्रियों एवं स्थानीय लोगों ने बाबा की डोली के दर्शन कर पुण्य अर्जित किया। इसके बाद केदार की डोली ने ओंकारेश्वर मंदिर की तीन परिक्रमाएं कीं और सवा नौ बजे बाबा की डोली केदारनाथ के लिए रवाना हुई। 
    
बाबा की डोली के रवानगी के अवसर पर स्थानीय महिलाओं में कई भावुक क्षण भी देखने को मिले। केदारनाथ रवाना होने के दौरान शीतकालीन गद्दीस्थल केदार बाबा के उद्‍घोषों से गुंजायमान हो उठा। श्रद्धालु जगह-जगह से बाबा की डोली पर पुष्पवर्षा करते रहे। 
      
नजारा कुछ ऐसा था कि मानो सारे देवता धरती पर उतर आए हों। भारी बारिश के बावजूद श्रद्धालु बाबा की भक्ति में डूबे रहे। आज पहले रात्रि प्रवास के लिए बाबा केदार की डोली फाटा पहुंचेगी। सोमवार को द्वितीय रात्रि प्रवास बाबा केदार की डोली गौरीकुंड में करेगी और 2 मई को केदार बाबा की डोली धाम में पहुंचेगी, जहां 3 मई को बाबा केदार के कपाट खोल दिए जाएंगे। 
      
भगवान केदार की डोली छ: माह तक शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में प्रवास करने के बाद ग्रीष्मकाल के छ: माह के लिए केदारधाम के लिए रवाना हुई। केदारनाथ रवाना होने पर शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर में देश-विदेश के साथ ही स्थानीय श्रद्धालुओं का भारी हुजूम उमड़ा।
     
पहली बार केदारनाथ से विधायक बने मनोज रावत ने डोली की अगुवाई की। श्रद्धालुओं की भीड़ इतनी थी कि मंदिर परिसर में पैर रखने की जगह नहीं थी। इसके साथ ही मंदिर परिसर के पैदल रास्ते एवं अन्य क्षेत्रों में श्रद्धालु बाबा केदार के दर्शनों के लिए खड़े थे।
 
रॉवल भीमा शंकर लिंग ने केदारनाथ के प्रधान पुजारी बागेश लिंग को पगडी और टोपी पहनाकर छः माह केदारनाथ धाम में विधिवत पूजा-अर्चना का संकल्प दिया। रावल द्वारा प्रधान पुजारी को दिए गए संकल्प के अनुसार केदारनाथ के प्रधान पुजारी को छः माह केदारपुरी में ही प्रवास करना होगा। छ: माह तक प्रधान पुजारी को नदी, नालों और पर्वतों की सीमा को पार करना भी वंचित माना गया है। (वार्ता)

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