Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

अटलजी की कविता : कहीं आजादी फिर से न खोएं...

हमें फॉलो करें अटलजी की कविता : कहीं आजादी फिर से न खोएं...
नई दिल्ली। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी एक महान राजनेता होने के साथ - साथ एक बेहतरीन कवि भी थे। आइए पढ़ते हैं अटलजी की कविता : कहीं आजादी फिर से न खोएं...
मासूम बच्चों,
बूढ़ी औरतों,
जवान मर्दों की लाशों के ढेर पर चढ़कर
जो सत्ता के सिंहासन तक पहुंचना चाहते हैं
उनसे मेरा एक सवाल है :
क्या मरने वालों के साथ
उनका कोई रिश्ता न था?
न सही धर्म का नाता,
क्या धरती का भी संबंध नहीं था?
पृथ्‍वी मां और हम उसके पुत्र हैं।
अथर्ववेद का यह मंत्र
क्या सिर्फ जपने के लिए है,
जीने के लिए नहीं?
 
 
आग में जले बच्चे,
वासना की शिकार औरतें,
राख में बदले घर
न सभ्यता का प्रमाण पत्र हैं,
न देशभक्ति का तमगा,
 
वे यदि घोषणा पत्र हैं तो पशुता का,
प्रमाश हैं तो पतितावस्था का,
ऐसे कपूतों से
मां का निपूती रहना ही अच्छा था,
निर्दोष रक्त से सनी राजगद्दी,
श्मशान की धूल से गिरी है,
सत्ता की अनियंत्रित भूख
रक्त-पिपासा से भी बुरी है।
 
पांच हजार साल की संस्कृति :
गर्व करें या रोएं?
स्वार्थ की दौड़ में
कहीं आजादी फिर से न खोएं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

शिक्षा और भाषा पर अटल बिहारी वाजपेयी के 6 विचार, बदल सकते हैं सोच...