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इसलिए छिना जेटली से सूचना प्रसारण मंत्रालय...

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नरेन्द्र मोदी के मंत्रिमंडल में फेरबदल के बाद स्मृति ईरानी का मंत्रालय बदलने की चर्चा तो खूब हुई, लेकिन इस बात की चर्चा बिलकुल नहीं हुई कि वित्तमंत्री अरुण जेटली से सूचना प्रसारण मंत्रालय क्यों ले लिया गया? क्या सिर्फ वित्त मंत्रालय पर ध्यान देने के लिए ऐसा किया गया या फिर कुछ और कारण हैं, जिनके चलते जेटली का कद घटाया गया। आइए नजर डालते हैं उन्हीं कारणों पर....
1. जेटली नंबर 2 नहीं : नरेन्द्र मोदी ने जेटली से सूचना प्रसारण मंत्रालय लेकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि मंत्रिमंडल में नंबर दो की हैसियत जेटली की नहीं है। दरअसल, मोदी पर इस तरह के आरोप लगते रहे हैं कि उन्होंने राजनाथ और सुषमा जैसे कद्दावर नेताओं को हाशिए पर कर दिया है और मोदी, शाह और जेटली ‍की तिकड़ी ही सरकार चला रही है। जेटली के पर कतरकर मोदी और शाह की जोड़ी ने परोक्ष रूप से यह भी बताने की कोशिश की है कि सत्ता और संगठन में चलेगी तो उन्हीं की। 
 
2. मीडिया घरानों में दखल : ऐसा कहा जाता है कि अरुण जेटली की मीडिया घरानों से ज्यादा निकटता के चलते भी सरकार को आलोचना झेलनी पड़ी थी। इसका उदाहरण उस समय देखने को मिला जब एक पत्रकार ने वित्तमंत्री के रूप में उनकी काबिलियत पर सवाल उठाते हुए एक लेख लिख दिया था। उसका हश्र यह हुआ कि बेचारे पत्रकार को नौकरी से हाथ धोना पड़ा था। इसको लेकर मीडिया के बड़े वर्ग में सरकार की नकारात्मक छवि गई थी। मीडिया में सकारात्मक संदेश देने के लिए मोदी ने यह कदम उठाया। 
अगले पेज पर पढ़ें कुछ और कारण...

3. डीडीसीए घोटाला : जेटली को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब पूर्व क्रिकेटर और भाजपा सांसद (अब निलंबित) अरुण जेटली को डीडीसीए मामले में घेरना शुरू कर दिया। इस घोटाले को लेकर आजाद ने जेटली पर जमकर हमले किए थे। उस समय मीडिया में आई खबरों से जेटली का आभामंडल कमजोर हुआ था। तब आरोप लगा था कि अरुण जेटली DDCA यानी दिल्ली डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष थे तो उसमें घोटाला हुआ था। स्टेडियम निर्माण में 57 करोड़ के ठेके फर्जी कंपनियों को दिए गए। आम आदमी पार्टी के नेताओं ने भी कहा था कि जेटली के प्रेसिडेंट रहने के दौरान डीडीसीए ने 24 करोड़ की लागत वाला स्टेडियम 114 करोड़ रुपए में बनवाया। 
 
4. स्वामी की सनसनी : हाल ही में सुब्रमण्यम स्वामी ने न सिर्फ वित्त मंत्रालय बल्कि वित्तमंत्री को भी अपने निशाने पर ले लिया। आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन और आर्थिक विशेषज्ञ अरविन्द सुब्रमणियन के बाद स्वामी ने जेटली को भी नहीं बख्शा। इतना ही नहीं जेटली की चीन यात्रा के समय तो उन्होंने कहा कि सूट-टाई पहनकर विदेश जाने वाले नेता वैटर की तरह नजर आते हैं। हालांकि बाद में स्वामी को चुप कराने के लिए मोदी को दखल देना पड़ा। 
 
5. जनाधार विहीन नेता : जेटली के खिलाफ एक और बात जाती है, वह यह कि उनका जनाधार नहीं है। भाजपा की लहर के बावजूद वे अमृतसर से चुनाव हार गए थे। उसके बावजूद उन्हें राज्यसभा में लाकर वित्तमंत्री और रक्षामंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद दिए गए। देश के इतिहास में भी संभवत: यह पहला मौका था जब वित्त मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय एक ही व्यक्ति को दिया गया। हालांकि जल्द ही सरकार ने अपनी गलती को सुधार लिया, लेकिन जेटली को सूचना प्रसारण जैसा महत्वपूर्ण मंत्रालय दे दिया, ताकि लोगों में यह संदेश नहीं जाए कि जेटली का कद घटाया गया है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में भी इस बात को लेकर नाराजी थी। 


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