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दिल्ली सरकार नहीं कर सकती जांच एजेंसी का गठन : अरुण जेटली

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, गुरुवार, 5 जुलाई 2018 (16:13 IST)
नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने गुरुवार को कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले से स्पष्ट हो गया है कि दिल्ली सरकार के पास पुलिस का अधिकार नहीं है, ऐसे में वह पूर्व में हुए अपराधों के लिए जांच एजेंसी का गठन नहीं कर सकती।


जेटली ने फेसबुक पोस्ट में कहा कि इसके अलावा यह धारणा पूरी तरह त्रुटिपूर्ण है कि संघ शासित कैडर सेवाओं के प्रशासन से संबंधित फैसला दिल्ली सरकार के पक्ष में गया है। जेटली ने कहा, कई ऐसे मुद्दे रहे, जिन पर सीधे टिप्पणी नहीं की गई है, लेकिन वहां निहितार्थ के माध्यम से उन मामलों के संकेत जरूर हैं।

लंबे समय तक वकालत कर चुके केंद्रीय मंत्री ने इसी संदर्भ में यह भी लिखा है  कि जब तक कि महत्व के विषयों को उठाया न गया हो, उन पर विचार-विमर्श नहीं हुआ और कोई स्पष्ट मत  प्रकट न किया गया हो तब तक कोई यह नहीं कह सकता कि ऐसे मुद्दों पर चुप्पी का मतलब है कि मत एक या दूसरे के पक्ष में है।

मंत्री ने कहा कि दिल्ली सरकार के पास पुलिस का अधिकार नहीं है, ऐसे में वह पूर्व में हुए अपराधों के लिए जांच एजेंसी का गठन नहीं कर सकती। जेटली ने कहा, दूसरी बात यह है कि उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि दिल्ली अपनी तुलना अन्य राज्यों से नहीं कर सकती। ऐसे में यह कहना कि संघ शासित कैडर सेवाओं के प्रशासन को लेकर दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला दिया गया है, पूरी तरह गलत है।

उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कल एकमत से फैसला दिया था कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता। इसके अलावा पीठ ने उप राज्यपाल के अधिकारों पर कहा था कि उनके पास स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। उपराज्यपाल को चुनी हुई सरकार की मदद और सलाह से काम करना है।

जेटली ने कहा कि यह फैसला संविधान के पीछे संवैधानिक सिद्धांत की विस्तार से व्याख्या करता है और साथ ही संविधान में जो लिखा हुआ है, उसकी पुष्टि करता है। उन्होंने कहा कि इससे न तो राज्य सरकार या केंद्र सरकार के अधिकारों में इजाफा हुआ है और न ही किसी के अधिकारों में कटौती हुई है। यह फैसला चुनी गई सरकार के महत्व को रेखांकित करता है। चूंकि दिल्ली संघ शासित प्रदेश है, इसलिए इसके अधिकार केंद्र सरकार के अधीन हैं।
जेटली ने सामान्य तौर पर लोकतंत्र तथा संघीय राजनीति के वृहद हित में उपराज्यपाल को राज्य सरकार के काम करने के अधिकार को स्वीकार करना चाहिए, लेकिन यदि कोई ऐसा मामला है, जिसकी सही वजह है और जिसमें असमति का ठोस आधार है तो वह (उपराज्यपाल) उसे लिखकर मामले को विचार के लिए राष्ट्रपति (अर्थात केंद्र सरकार) को भेज सकते हैं, जिससे उपराज्यपाल और राज्य सरकार के बीच किसी मामले में मतभेद को दूर किया जा सके।

जेटली ने इसी संदर्भ में आगे लिखा है कि ऐसे मामलों में केंद्र का निर्णय उपराज्यपाल और दिल्ली की निर्वाचित सरकार दोनों को मानना होगा। इस तरह केंद्र की राय सबसे बढ़कर है। (भाषा) 

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