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महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी से लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होती हैं

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ब्रह्मानंद राजपूत

हम विश्व में लगातार कई वर्षों से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाते आ रहे हैं, महिलाओं के सम्मान के लिए घोषित इस दिन का उद्देश्य सिर्फ महिलाओं के प्रति श्रद्धा और सम्मान बताना है। इसलिए इस दिन को महिलाओं के आध्यात्मिक, शैक्षिक, आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। 
 
नारी मानव जाति के लिए जननी का रूप है। कहा जाए तो जननी ही नारी है और नारी ही जननी है। नारी शक्ति या मातृशक्ति का इस संसार को आगे बढ़ाने में अहम् योगदान है। बिना नारी के इस दुनिया की कल्पना नहीं की जा सकती। अगर नारी नहीं होगी तो इस संसार का विकास नहीं हो पाएगा। नारी ही एक पुरुष को जन्म देती है, तभी नारी की सहन करने की शक्ति यानी सहनशक्ति का अहसास होता है कि वह इस संसार में कितनी मजबूत शक्ति है। 
 
आज उसी ही मजबूत नारी शक्ति पर कुछ मानसिक रूप से विक्षिप्त पुरुषों (ऐसे पुरुष जो नारी शक्ति को अपने उपभोग की वस्तु समझते हैं) द्वारा बलात्कार जैसी घटनाएं होती हैं। ऐसे पुरुषों द्वारा नारी को शारीरिक शोषण द्वारा हमेशा लज्जित किया जाता है, यह चीज समस्त मानवजाति को शर्मसार करती है। कुछ पुरुषों के ऐसे कृत्यों द्वारा बाकी के साफ-सुथरी छवि के पुरुषों को भी शर्मसार होना पड़ता है। 
 
आज जरूरत है महिलाओं और छोटी-छोटी बच्चियों के खिलाफ बलात्कार जैसी होनी वाली घटनाओं पर लगाम लगाई जाए। ये तभी हो सकता है जब बलात्कार जैसे कृत्यों के खिलाफ मानव जाति एकजुट होकर फैंसला ले और जो लोग दोषी पुरुषों का साथ देते हैं ऐसे लोगों का भी समाज पूर्ण रूप से बहिष्कार करे। इसके साथ ही आज जरूरत है कि बलात्कार जैसे कृत्यों के खिलाफ सरकारें एक कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान करें और बलात्कार जैसे मामलों की फास्टट्रैक कोर्ट द्वारा त्वरित कार्यवाही हो। जिससे कि दूसरे लोग भी ऐसे कृत्य करने से पहले सौ बार सोचें। तभी मानव जाति और समाज के स्तर को उठाया जा सकता है।
 
आज अपने समाज में नारी के स्तर को उठाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरत है महिला सशक्तिकरण की। महिला सशक्तिकरण का अर्थ है महिलाओं की आध्यात्मिक, शैक्षिक, सामजिक, राजनैतिक और आर्थिक शक्ति में वृद्धि करना, बिना इसके महिला सशक्तिकरण असंभव है। आज हर महिला समाज में धार्मिक रूढ़ियों, पुराने नियम कानून में अपने आप को बंधा पाती है। पर अब वक्त है कि हर महिला तमाम रूढ़ियों से खुद को मुक्त करें। प्रकृति ने औरतों को खूबसूरती ही नहीं, दृढ़ता भी दी है। प्रजनन क्षमता भी सिर्फ उसी को हासिल है। 
 
भारतीय समाज में आज भी कन्या भ्रूण हत्या जैसे कृत्य दिन-रात किए जा रहे हैं। पर हर कन्या में एक मां दुर्गा छिपी होती है। यह हैरत की बात है कि दुर्गा की पूजा करने वाला इंसान दुर्गा की प्रतिरूप नवजात कन्या का गर्भ में वध कर देता है। इसमें बाप, परिवार के साथ समाज भी सहयोग देता हैं। आज जरूरत है कि देश में बच्चियों को हम वही आत्मविश्वास और हिम्मत दें जो लड़कों को देते हैं। इससे प्रकृति का संतुलन बना रहे। इसलिए जरूरी है कि इस धरती पर कन्या को भी बराबर का सम्मान मिले। साथ ही उसकी गरिमा भी बनी रहे। इसलिए अपने अंदर की शक्ति को जागृत करें और हर स्त्री में यह शक्ति जगाएं ताकि वह हर विकृत मानसिकता का सामना पूरे साहस और धीरज के साथ कर सकें। 
 
एक नारी के बिना किसी भी व्यक्ति जीवन सृजित नहीं हो सकता है। जिस परिवार में महिला नहीं होती, वहां पुरुष न तो अच्छी तरह से जिम्मेदारी निभा पाते हैं और ना ही लंबे समय तक जीते हैं। वहीं जिन परिवारों में महिलाओं पर परिवार की जिम्मेदारी होती है, वहां महिलाएं हर चुनौती, हर जिम्मेदारी को बेहतर तरीके से निभाती है ओर परिवार खुशहाल रहता है। अगर मजबूती की बात की जाए तो महिलाएं पुरुषों से ज्यादा मजबूत होती हैं क्योंकि वो पुरुषों को जन्म देती हैं।
 
भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त भारत के मौलिक के मौलिक अधिकारों के अंतर्गत सभी को अनुच्छेद 14-18 के अंतर्गत समानता का अधिकार दिया गया है। जो कि महिलाओं और पुरुषों को बराबरी का अधिकार देता है। इसके अंतर्गत यह भी सुनिश्चित किया गया है कि राज्य के तहत होने वाली नियुक्तियों और रोजगार के संबंध में किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा और संविधान द्वारा मौलिक अधिकारों के अंतर्गत दिया गया समानता का अधिकार भारतीय राज्य को किसी के भी खिलाफ लिंग के आधार पर भेदभाव करने से रोकता है। देश में महिलाओं के उत्थान और सशक्तिकरण को देखते हुए हमारे संविधान को 1993 में संशोधित किया गया। 73वें संशोधन के जरिए संविधान में अनुच्छेद 243ए से 243ओ तक जोड़ा गया। इस संशोधन में इस बात की व्यवस्था की गई कि पंचायतों और नगरपालिकाओं में कुल सीटों की एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए सुरक्षित होंगी। 
 
इस संशोधन में इसकी भी व्यवस्था की गई कि पंचायतों और नगरपालिकाओं में कम से कम एक तिहाई चेयरपर्सन की सीटें महिलाओं के लिए सुरक्षित हों। पंचायती राज संस्थानों द्वारा महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण को लागू करने में सकारात्मक कार्यवाही से महिलाओं के प्रतिनिधित्व में तेजी से वृद्धि हुई है। वास्तव में देखा जाए तो देशभर में पंचायतों में चुनी गई महिलाओं का प्रतिनिधित्व 40 प्रतिशत हो गया है। कुछ राज्यों में पंचायतों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 50 प्रतिशत तक पहुंच गया है। बिना प्रतिनिधत्व के महिलाओं का सशक्तिकरण असंभव है। जब तक महिलाओं को प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाएगा तब तक हम महिलाओं के सशक्तिकरण की कल्पना नहीं कर सकते।  
 
नए संसद भवन में 20 सितंबर 2023 को नारी शक्ति वंदन विधेयक लोकसभा में पास हुआ था। लोकसभा में पास होने के बाद 21 सितंबर 2023 को यह नारी शक्ति वंदन विधेयक राज्यसभा से भी पारित होने के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस विधेयक को अपनी मंजूरी दे दी है।

नारी शक्ति वंदन अधिनियम के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण प्रदान करने का प्रावधान किया गया है। आने वाले सालों में कानून के अमल में आने बाद लोकसभा और विधानसभा में बहुत कुछ बदल जाएगा। लेकिन नारी शक्ति वंदन अधिनियम की सबसे बडी कमी है कि इसके अन्तर्गत पिछडे और आदिवासी वर्ग की महिलाओं को अलग से कोटा नहीं दिया गया है। 
 
अगर इसके अन्तर्गत पिछड़े और आदिवासी वर्ग की महिलाओं को अलग से कोटा दिया जाता तो पिछडे और दबे कुचले वर्ग की महिलाओं का प्रतिनिधित्व भी आने वाले सालों में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में बढ पाता। इसके लिए सरकार को नारी शक्ति वंदन अधिनियम इसके अन्तर्गत पिछड़े और आदिवासी वर्ग की महिलाओं के लिए कोटे की व्यवस्था आने वाले समय में करनी चाहिए। कोई भी राष्ट्र महिलाओं के बिना शक्तिहीन है। क्योंकि राष्ट्र को हमेशा से महिलाओं से ही शक्ति मिलती है। किसी भी जीवंत और मजबूत राष्ट्र के निर्माण में महिलाओं का योगदान महत्वपूर्ण है। महिलाओं की राजनैतिक भागीदारी से लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होती है।
 
आज जरूरत है कि समाज में महिलाओं को अज्ञानता, अशिक्षा, कूपमंण्डुकता, संकुचित विचारों और रूढिवादी भावनाओं के गर्त से निकालकर प्रगति के पथ पर ले जाने के लिए उसे आधुनिक घटनाओं, ऐतिहासिक गरिमामयी जानकारी और जातीय क्रियाकलापों से अवगत कराने के लिए उसमें आर्थिक, सामजिक, शैक्षिक, राजनैतिक चेतना पैदा करने की। जिससे की नारी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर समाज को आगे बढ़ाने में सहयोग कर सकें। साथ-साथ आज जरूरत है कि समाज कि जितनी भी रूढ़िवादी समस्याएं हैं हमें उनका समाधान खोजते हुए हटधर्मिता त्यागकर शैक्षिक, सामजिक, सौहार्दपूर्ण, व्यावसायिक और राजनैतिक चेतना का मार्ग प्रशस्त करते हुए महिलाओं के सामजिक उत्थान का संकल्प लेना चाहिए, क्योंकि हजारों मील की यात्रा भी एक पहले कदम से शुरू होती है।
 
सही मायने में महिला दिवस तब सार्थक होगा जब असलियत में महिलाओं को वह सम्मान मिलेगा जिसकी वे हकदार हैं। इसके साथ ही समाज को संकल्प लेना चाहिए कि भारत में समरसता की बयार बहे, भारत के किसी घर में कन्या भ्रूण हत्या न हो और भारत की किसा भी बेटी को दहेज के नाम पर न जलाया जाएं। विश्व के मानस पटल पर एक अखंड और प्रखर भारत की तस्वीर तभी प्रकट होगी जब हमारी मातृशक्ति अपने अधिकारों और शक्ति को पहचान कर अपनी गरिमा और गौरव का परिचय देगी और राष्ट्र निर्माण में अपनी प्रमुख भूमिका निभाएंगी। 

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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