Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं उठाता....

हमें फॉलो करें मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं उठाता....
कलंदर 

खेल जब दोबारा शुरू होगा तो मोहरे हम वहीं से उठाएंगे, जहां इस वक्त हैं। 
 
सही बात को सही वक्त पर किया जाए तो उसका मज़ा ही कुछ और है। मैं सही वक्त का इंतज़ार करता हूं। 
 
आपने जेल की दीवारों और ज़ंजीरों का लोहा देखा है जेलर साहब, कालिया की हिम्मत का फौलाद नहीं देखा।
 
अगर पहले दो डायलॉग में बात कुछ समझ में नहीं भी आई हो तो तीसरे डायलॉग से साफ हो जाता है कि हम बात कर रहे हैं अमिताभ बच्चन के उन डायलॉग की जिनसे आम आदमी ने ऊर्जा पाई। 

अमिताभ की दीवार रिलीज़ होने के बाद मजदूरों ने 'फेंके हुए पैसे' उठाने से मना कर दिया था। रेलवे स्टेशन पर समान उठाने वाले कुली अपने हक के लिए एकजुट हो गए थे। इसी फिल्म की रिलीज़ के बाद जाली वाली बनियान' खूब बिकीं। (जो फिल्म में अमिताभ ने पहनी थीं) 
 
अमिताभ की फिल्मों के सामाजिक असर की चर्चाएं तो खूब हुईं, लेकिन यह कभी मालूम नहीं किया गया कि यह असर कहां तक गया। अभिताभ की फिल्मों से कितने ही सिकंदर, इकबाल, विजय, एंथोनी, विजय प्रेरित हुए। 
 
कई बार लिखा/पढ़ा जा चुका है कि अमिताभ की फिल्मों ने दबे कुचले आम आदमी की जिंदगी को इस तरह पर्दे पर जिया कि लोग अमिताभ की भूमिका में खुद को ढूंढने लगे। बिग बी की फिल्मों की सफलता के पीछे यह बहुत बड़ा कारण रहा। 

webdunia
दुबले पतले अमिताभ पर्दे पर जब 10 बार हट्टे कट्‍टे गुंडों की पिटाई करते तो अमिताभ उसे अपने अभिनय से हकीकत के नजदीक ला देते। और जब डायलॉग बोलते तो तालियों की गूंज देर तक सुनाई देती। अमिताभ के एक्शन डायलॉग ने आम आदमी को अपनी तकलीफों से लड़ने की प्रेरणा दी। 'इस दुनिया में तरक्की करने के लिए... न बोलना बहुत ज़रूरी है।' (अग्निपथ)   
 
फिल्म कालिया में एक संवाद है, कल्लू से कालिया का सफ़र शुरू। अमिताभ ने अपने फिल्मी करियर में भी बॉम्बे टू गोवा, आनंद, सौदागर से होते हुए एंग्री यंगमैन वाली अपनी छवि बनाने तक कल्लू से कालिया की ही सफर तय किया है। 

webdunia
 
  

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi