Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

संपत्तियों के सर्वे, पुनर्वितरण, कांग्रेस और विवाद

हमें फॉलो करें rahul gandhi
webdunia

अवधेश कुमार

, गुरुवार, 2 मई 2024 (15:45 IST)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संपत्ति सर्वे और पुनर्वितरण मुद्दे को उठाए जाने के बाद यह विषय स्वाभाविक ही तत्काल चुनाव का गर्म मुद्दा बन गया है। कांग्रेस प्रधानमंत्री पर झूठ बोलने का आरोप तो लगाती है किंतु इसका खंडन नहीं करती कि वह संपत्तियों का सर्वे तथा उनके पुनर्वितरण करने के पक्ष में है। आज अगर कांग्रेस के वेबसाइट पर जाएं तो घोषणा पत्र में यह पंक्ति नहीं है। किंतु पिछले दो महीने में राहुल गांधी के इस संबंध में जगह-जगह स्पष्ट वक्तव्य आए हैं। 
 
पिछले 12 मार्च को महाराष्ट्र के नंदुरबार में न्याय यात्रा की सभा में उन्होंने कहा था कि जाति जनगणना और आर्थिक एवं वित्तीय सर्वे क्रांतिकारी कदम है। कांग्रेस अपने घोषणा पत्र में इसे डालेगी। पिछले 7 अप्रैल को उन्होंने हैदराबाद की सभा में स्पष्ट कहा कि 'हम पहले यह निर्धारित करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना करेंगे कि कितने लोग अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक समुदाय से हैं। उसके बाद, धन के समान वितरण को सुनिश्चित करने के लिए एक ऐतिहासिक कदम के तहत हम एक वित्तीय और संस्थागत सर्वेक्षण कराएंगे।

तो धन के समान वितरण शब्द राहुल गांधी ने स्वयं प्रयोग किया है। 6 अप्रैल को उन्होंने कहा था कि हम एक वित्तीय और संस्थानिक सर्वे करेंगे। यह पता लगाएंगे कि हिंदुस्तान का धन किसके हाथ में है, कौन से वर्ग के हाथ में है और इस ऐतिहासिक कदम के बाद हम क्रांतिकारी काम शुरू करेंगे- जो आपका हक बनता है वह हम आपके लिए आपको देने का काम करेंगे। ऐसे और भी वक्तव्य उद्धृत किया जा सकते हैं।
 
राहुल गांधी की घोषणाओं को कांग्रेस का वक्तव्य माना जाए या नहीं? कांग्रेस के प्रवक्ता यह तो कह ही रहे हैं कि कुछ मुट्ठी भर लोगों के पास संपत्ति आ गई है। उनकी भाषा ऐसी होती है मानो जिन उद्योगपतियों, व्यापारियों या कॉर्पोरेट के पास ज्यादा संपत्ति है उनको वह रहने देने के पक्ष में नहीं है। वक्तव्य का स्वर ऐसा होता है सत्ता में आने पर कांग्रेस सबसे लेकर गरीबों में बांट देगी।

प्रधानमंत्री के आरोप के बाद कांग्रेस का पक्ष रखने आए पवन खेड़ा पूरे वक्तव्य में लंबे समय तक अदानी का नाम लेते रहे। कांग्रेस के घोषणा पत्र में आपको थॉमस पिकेटी सहित प्रमुख वैश्विक अर्थशास्त्रियों की 'भारत में आय और धन असमानता, 1922-2023: अरबपति राज का उदय' शीर्षक वाली रिपोर्ट का नाम लेते हुए लिखा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तहत भारत ब्रिटिश राज की तुलना में अधिक असमान है। 
 
आर्थिक विषमता समस्या है और इसको कम करने की जरूरत है। किंतु इस प्रकार की भाषा पुराने समय में क्रांति के द्वारा सत्ता परिवर्तन और समस्त पूंजी पर राज्य नियंत्रण के सिद्धांत को मानने वाले मार्क्सवादी लेनिनवादी करते थे। बाद में माओवादी उनसे ज्यादा आक्रामक हुए और आज के समय में भारत में वही ऐसी घोषणाएं करते हैं। 

आगे कांग्रेस अपने घोषणा पत्र में लोगों से पूछती भी है कि आपको क्या चुनना है, सभी के लिए समृद्धि या कुछ लोगों के लिए धन के बीच? न्याय या अन्याय के बीच? वर्ष 2024 में लोकसभा चुनाव एक-दलीय तानाशाही पर लोकतंत्र, भय पर स्वतंत्रता, कुछ लोगों की समृद्धि पर सभी के लिए आर्थिक विकास और अन्याय पर न्याय को चुनने का अवसर प्रदान करेगा।
 
वर्तमान कांग्रेस में राहुल गांधी के विचार ही सर्वोच्च है। जो राहुल गांधी चाहेंगे वही कांग्रेस करेगी। वह घोषणा पत्र जारी होने के पहले कह रहे हैं कि हम सर्वे और पुनर्वितरण को इसमें शामिल करेंगे और जारी होने के बाद भी उनका बयान यही रहा। यदि घोषणा पत्र यानी न्याय पत्र में आज नहीं है तो यह सामान्य स्थिति नहीं मानी जा सकती।

या तो विवाद उठने के बाद उसे हटा दिया गया या घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष पी चिदंबरम ने इसे अव्यावहारिक मानते हुए उनको बिना बताए शामिल नहीं किया। यानी राहुल गांधी अनेक ऐसी बातें बोलते हैं जिनको उन्हीं की पार्टी में थोड़ी समझ रखने वाले कुछ नेता व्यावहारिक नहीं मानते। लेकिन जिस तरह भारी संख्या में कांग्रेस के लोग बोलने लगे हैं कि कुछ लोगों के हाथों में संपत्ति होने की स्थिति को पार्टी खत्म करना चाहती है उसका भी अपना अर्थ है। 
 
कुछ तो यह भी तर्क दे रहे हैं कि ऐसा कई देशों खासकर अमेरिका, फिनलैंड, स्वीडन आदि में हो चुका है। फिनलैंड जैसे कुछ एक देश में थोड़ी कोशिश हुई पर उसका स्वरूप भी अलग है। सच यह है कि 1917 में रूस की बोल्शेविक क्रांति के बाद कुछ अन्य देशों में कम्युनिस्ट क्रांतियां हुई और वहां राज्य ने समस्त संपत्तियों पर कब्जा किया। चीन ने भी आरंभ में यही किया। उन देशों में भी संपत्तियों का पुनर्वितरण संभव नहीं हुआ और स्थिति बिगड़ती चली गई। चीन में तो 1980 और 90 के दशक में ही निजी पूंजीपतियों की संख्या की तुलना किसी भी प्रमुख देशो के से की जा सकती थी। ऐसे प्रयोग कहीं सफल नहीं हुए। 
 
प्रश्न यह भी है कि आखिर कांग्रेस व्यक्तियों और संस्थाओं के वित्तीय और आर्थिक स्थिति का सर्वे कैसे कराएगी? क्या घर-घर जाकर सरकार के कर्मी देखेंगे कि किनके पास क्या है? मोटा-मोटी भूमि या अन्य क्षेत्रों में निवेश की जानकारी इस समय पैन कार्ड और आधार कार्ड के कारण सरकार के पास है। अगर छिपी हुई संपत्ति का पता लगाना है तो ऐसा ही करना होगा।

किसके पास कितना है और किसके पास नहीं है अगर इन दोनों बातों का पता लगाना है तो एक-एक घर, कार्यालय में प्रवेश करना ही होगा। कोई चाहे ना चाहे जबरन उनसे उनकी पूरी प्रकट और छिपी संपत्ति का विवरण लेना पड़ेगा। कल्पना कर सकते हैं कि इससे कैसी स्थिति पैदा होगी! भारत सरकार के पास किसी की संपत्ति का अधिग्रहण करने का अधिकार है। बावजूद चूंकि संविधान ने संपत्ति को कानूनी अधिकार में शामिल किया है, इसलिए सरकार को मुआवजा देना पड़ता है। क्या कांग्रेस संपत्तियों का अधिग्रहण करती है तो उनका मुआवजा नहीं देगी? मुआवजा नहीं देगी तो संविधान में संशोधन करना पड़ेगा।।
 
भारत की प्रमुख कम्युनिस्ट पार्टियों ने भी इस विषय को अपनी विचारधारा या घोषणा पत्र से स्थाई रूप से अलग कर दिया है। लेकिन भारतसहित विश्व भर में ऐसे अल्ट्रा लेफ्टिस्ट यानी चरम वामपंथी और अल्ट्रासोशलिस्ट यानी चरम समाजवादी अभी भी इसका राग अलापते रहते हैं। पिछले डेढ़ दशकों के कांग्रेस की गतिविधियों पर ध्यान दें तो भारत और दुनिया के ऐसे अनेक चरम सोच रखने वाले सोनिया गांधी परिवार के इर्द-गिर्द पहुंचे हैं। 
 
राहुल गांधी को विचारों और नीतियों की खुराक देने वालों में ऐसे लोग ही बहुतायात में हैं। नरेंद्र मोदी सरकार पर राहुल गांधी के हमले कई बार दुनिया भर में सोशल मीडिया और मुख्य मीडिया की सुर्खियां बन जाते हैं और स्वतंत्रता, समानता, पर्यावरण संरक्षण, मानवाधिकार, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, शरणार्थियों को विशेष अधिकार आदि के नाम पर झंडा उठाने वाली वैश्विक व्यक्तित्व इनके साथ खड़े दिखते है। 
 
विश्व भर में ऐसे लोगों का झुंड खड़ा हुआ है जो संयुक्त राष्ट्र के अधिवेशन से लेकर अनेक वैश्विक सम्मेलनों के बाहर प्रदर्शन करता है, अपना एजेंडा दुनिया के सामने रखने की कोशिश करता है। पिछले लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी गरीबी पर वार 72 हजार नारा भी ऐसी ही सोच वालों की देन थी। पांच न्याय और 25 गारंटी की कांग्रेस की घोषणाओं में भी इस विचारधारा की छाप देखी जा सकती है।

समाज में विषमता की खाई कम करने तथा धरती पर पैदा हुए हर व्यक्ति को जीवन जीने के न्यूनतम संसाधन उपलब्ध कराने के पक्ष में दृढ़ता से काम करने वाले भी ऐसी विचारधारा से भयभीत रहते हैं। कारण, ये अपनी घोषणाओं और वक्तव्यों से लोगों को उत्तेजित कर सकते हैं, समाज में थोड़ी उथल-पुथल पैदा कर सकते हैं पर व्यवस्थित तरीके से समाज और देश का विकास करना, शांतिपूर्वक शासन संचालन के साथ लोगों को जनकल्याणकारी कार्यक्रम स्थाई रूप से उपलब्ध कराना इनके वश का नहीं होता। 
 
अगर किसी ने परिश्रम से कानून और संविधान का पालन करते हुए संपत्ति बनाई है तो उसे समाज के लिए दान देने, खर्च करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है, पर यह उससे संपत्ति को छीन कर या एक भाग लेकर दूसरों में बांट दिया जाए इससे किसी का भला नहीं हो सकता। यह खतरनाक और डरावना विचार है जो समाज को अंधेरी सुरंग में ले जाएगा। 

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

World laughter day 2024: विश्‍व हास्य दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?