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ट्रेजडी के दौरान सोशल मीडिया का सहयोग

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डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी

# माय हैशटैग
सोशल मीडिया का पूरी दुनिया में ‘अस्त्रीकरण’ कर दिया गया है। विपदा की घड़ी में सोशल मीडिया के गलत उपयोग को रोकना और अफवाहों पर अंकुश लगाना गंभीर चुनौती बन गई है। विपदा की घड़ी में सोशल मीडिया एक हथियार की तरह काम करता है। लॉस वेगास में हुए गोलीकांड के बाद यह बात एक बार फिर स्पष्ट हो गई है। 
भारत में हम जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर दिल्ली और अनेक आंदोलनों के दौरान सोशल मीडिया के दुरुपयोग के बारे में जानते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि संकट की घड़ी में सोशल मीडिया के गलत उपयोग को रोकने के बारे में फेसबुक, ट्विटर और गूगल जैसी कंपनियों को गंभीरता से काम करना चाहिए। जिस तरह सोशल मीडिया मददगार होता है, उसी तरह कहीं-कहीं अति उत्साही लोग व्यवस्था को बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ते और सोशल मीडिया उनके हाथों का खिलौना बन जाता है। अपराधी तत्व भी ऐसे में पीछे नहीं रहते और मौके का फायदा उठाते हैं।
 
सोशल मीडिया का विपदा की घड़ी में बेहतरीन उपयोग मुंबई की बारिश के दौरान लोगों ने किया और वह एक उदाहरण बन गया। जरूरत इस बात की है कि आम लोगों को सोशल मीडिया के इस तरह के उपयोग के लिए प्रशिक्षित किया जाए। अगर कोई विपदा अचानक आ पड़े, तब लोग किस तरह सोशल मीडिया के माध्यम से एक-दूसरे के संपर्क में आकर मदद का हाथ बढ़ा सकते हैं, यह प्रशिक्षण भी जरूरी है। 
 
सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स को चाहिए कि वे इस बारे में अपनी ओर से पहल करें। टेलीविजन और रेडियो स्टेशन की तुलना में सोशल मीडिया कई बार ज्यादा बेहतर भूमिका निभा सकता है। लोकल ट्रेनों और समंदर में फंसे लोगों के लिए सोशल मीडिया एक बड़ी सुविधा हो सकता है।
 
अमेरिका के क्वीन्सलैंड में आए तूफान के बाद स्थानीय पुलिस ने इस बारे में बहुत कुछ कार्य किया। सोशल मीडिया का उपयोग नागरिक किस तरह अधिकारियों से संपर्क करने में कर सकते हैं और मदद का हाथ मांगने के साथ ही मदद का हाथ बढ़ा भी सकते हैं, यह क्वीन्सलैंड की पुलिस ने बखूबी कर दिखाया। उसे कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार इसी बात के लिए मिले हैं। संकट की घड़ी में लोग किस तरह के हैशटैग का इस्तेमाल कर सकते हैं, यह भी वहां की पुलिस ने लोगों को सिखाया। 
 
नागरिकों को इस तरह का प्रशिक्षण भी स्थानीय पुलिस देती है कि विपदा की घड़ी में सोशल मीडिया यूजर्स किन तरीकों को अपनाएं और किन तरीकों से बचें। पुलिस को लगता है कि आपदा की पहली सूचना सोशल मीडिया के माध्यम से अधिकारियों तक पहुंच सकती है। हालात का जितना बढ़िया जायजा स्थानीय लोग ले सकते हैं और उसे सोशल मीडिया पर शेयर कर सकते हैं, उतनी तेज जानकारी पुलिस को भी नहीं हो सकती। 
 
क्वीन्सलैंड में आई बाढ़ के बाद वहां के शिक्षा संस्थानों ने इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया है। विश्वविद्यालय में तरह-तरह के वर्कशॉप आयोजित हुए जिसमें लगभग सभी वर्गों के लोगों को बुलाया गया। वर्कशॉप में लोगों ने अपने विचार तो शेयर किए ही, साथ ही नए-नए तरीकों की खोज भी की और उन्हें आपस में बांटा। 
 
सोशल मीडिया की मदद से विपदा में फंसे लोग अपने नजदीकी लोगों के संपर्क में भी बने रहते हैं और मदद मांगने पर मदद का हाथ बढ़ा सकते हैं। ट्विटर और फेसबुक पर नागरिक अपने ग्रुप बनाकर एक-दूसरे के हालचाल जान सकते हैं। अनेक सीनियर सिटीजन ग्रुप सोशल मीडिया के माध्यम से अपने सदस्यों से जुड़े रहते हैं और एक-दूसरे के हाल पूछते रहते हैं। जब मदद की जरूरत होती है, तब वे मदद के लिए आगे आ जाते हैं। इस तरह के ग्रुप्स का उपयोग सीनियर सिटीजंस की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है। 
 
अगर सोशल मीडिया के उपयोग के लिए सकारात्मक काम करने वाले लोगों का समूह सक्रिय रहे, तब विपदा में फैलाई जा रही अफवाहों पर नियंत्रण पाया जा सकता है और एक-दूसरे की मदद जल्दी और प्रभावी ढंग से की जा सकती है। 

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