Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

शीला दीक्षित का बयान व व्यावहारिक प्रमाण

हमें फॉलो करें शीला दीक्षित का बयान व व्यावहारिक प्रमाण
webdunia

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

शीला दीक्षित पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप अपनी जगह पर हैं। इन पर न्यायपालिका को फैसला करना पड़ेगा, लेकिन राजनीतिक मर्यादा, साम्यता व गंभीरता में वे बेजोड़ रही हैं। उनके चुनाव प्रचार का तरीका भी लोगों को याद है। विरोधियों पर हमले में भी वे शालीनता बनाए रखती थीं। ऐसी शीला दीक्षित जब अपने ही हाईकमान पर टिप्पणी करती हैं तो उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। उन्होंने कहा था कि राहुल गांधी अभी परिपक्व नहीं हुए हैं, बाद में उन्होंने बात को संभालने का प्रयास किया किंतु तीर चल चुका था, उसका वापस लौटना संभव नहीं था।
यह तो मानना होगा कि शीला दीक्षित ने यह बयान सतही तौर पर नहीं दिया। कांग्रेस आज जिस दिशा में जा रही है, उसमें शीला की भांति सोचने वाले बहुत लोग होंगे। कुछ लोग कभी-कभार बोल देते हैं, कुछ लोग न बोलने में भलाई समझते हैं। ऐसा भी नहीं कि शीला ने यह बयान आकस्मिक तौर पर दिया हो। राहुल के क्रियाकलाप, फैसले, भाषण आदि में परिपक्वता का अभाव दिखाई देता है। 
 
बात कांग्रेस को लगातार मिल रही पराजय तक सीमित नहीं है। चुनाव में हार-जीत लगी रहती है, लेकिन नेतृत्व का परिपक्व होना ज्यादा महत्वपूर्ण है। राजनीतिक दलों को समझना चाहिए कि प्रजातंत्र में विपक्ष की भूमिका भी कम नहीं होती, भले ही उसकी संख्या कम हो। फिर फैसलों में परिपक्वता हो तो जनहित के मुद्दों पर वह सत्तापक्ष की नाक में दम कर सकता है लेकिन इसके लिए पूर्वाग्रह से मुक्त होना आवश्यक है। इसके अलावा वही मुद्दे कारगर साबित होते हैं जिन पर सत्ता में रहने के दौरान खुद का रिकॉर्ड बेहतर रहा हो। राहुल गांधी इन मापदंडों पर खरे नहीं उतरते। वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति पूर्वाग्रह को छिपाना भी नहीं चाहते। 
 
ऐसा लगता है कि वे नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार नहीं कर सके हैं, दूसरा उनको लगता है कि लगातार मोदी पर हमला बोलने से कांग्रेस का ग्राफ बढ़ जाएगा। इसी के तहत वे मोदी के सूट-कपड़ों से लेकर विदेश यात्रा तक प्रत्येक विषय पर हमला बोलते हैं। वे मोदी को 50 उद्योगपतियों का दोस्त व गरीबों का विरोधी बताते हैं और अपने को गरीबों के साथ दिखाने का प्रयास करते हैं। हद तो तब हुई, जब उन्होंने अपने को भी गरीब दिखाने के लिए कुर्ते की जेब फाड़ ली।
 
संसद के भीतर भी राहुल गांधी परिपक्वता नहीं दिखा सके। यहां उन्हें लगता है कि हंगामे से सरकार को परेशान करते रहना चाहिए। पिछले 3 वर्षों से राहुल की कांग्रेस संसद में इसी रणनीति पर अमल कर रही है। ललित मोदी, निरंजन ज्योति के बयान, मध्यप्रदेश, राजस्थान के प्रकरण, नोटबंदी आदि पर कांग्रेस ने यही किया, लेकिन इन सबका उसे कोई फायदा नहीं मिला। 
 
शीला दीक्षित की भांति एक अन्य वरिष्ठ कांग्रेसी नेता का विचार था कि हंगामे के कारण कांग्रेस सरकार पर वैचारिक व नीतिगत हमले करने का अवसर गंवा रही है। वह देश की सर्वोच्च पंचायत में अपनी बात रखने का अवसर गंवा रही है, लेकिन राहुल पर इन सुझावों का कोई असर नहीं हुआ।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

योग से होगा अवसाद कम, जानिए तथ्य...