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पद्म पुरस्कारों की बंदरबांट

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, शुक्रवार, 27 जनवरी 2017 (22:33 IST)
- अमित शर्मा
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी पद्म पुरस्कारों की घोषणा की जा चुकी है। पद्म पुरस्कार मिलना बड़ा सम्मान का विषय माना जाता रहा है। जिसको भी ये पुरस्कार मिलता है, वो बड़े गर्व से ये सम्मान ग्रहण करता है और आजीवन अपने नाम के आगे-पीछे 'पद्म श्री/विभूषण से सम्मानित' लगाता रहता है क्योंकि यह पुरस्कार लेने के पहले भी, पुरस्कार देने वालो के बहुत 'आगे-पीछे' घूमना पड़ता है। पद्म पुरस्कार पाने के लिए केवल 'आवेदन' करने से काम नहीं चलता है, पुरस्कार पाने के लिए 'निवेदन' ज्यादा जरूरी है। पुरस्कार पाने के लिए की गई जोड़तोड़, सिफारिश और लॉबिंग पुरस्कार की चमक और बढ़ा देती है।
ये पुरस्कार केंद्र सरकार द्वारा किसी भी क्षेत्र में विशेष योगदान को 'केंद्र' में रखते हुए दिए जाते है। देश में सत्तासीन दल का एक मुख्य कार्य, समाज से हर तरह की असमानता को दूर करना भी होता है। जिस तरह से सरकार अपनी कपितय योजनाओं द्वारा अमीरी और गरीबी के बीच की दूरी कम करने का प्रयास करती है, ठीक उसी प्रकार से सरकारों का ये दायित्व भी होता है कि वो सामाजिक समानता और समरसता स्थापित करने के लिए योग्य-अयोग्य, सम्मान-अपमान के बीच की खाई को कम करे और ये कार्य केवल आरक्षण के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है। 
 
इसलिए सरकारें ऐसी हस्तियों को भी पद्म पुरस्कारों से सम्मानित कर रही हैं जो इन पुरस्कारों को पाने के लिए उपलब्धि, योग्यता और योगदान जैसे तुच्छ मापदंडों से नहीं बंधे होते हैं क्योंकि इनका कद इतना ऊपर उठ चुका होता है कि वो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण को भी पार कर जाता है और पुरस्कार प्राप्त करने के लिए जब वो झुकते हैं तो वो भी देश के ऊपर किसी अहसान से कम नहीं होता है। ऐसे लोगों लोगो का, उन्हें सम्मानित किए गए क्षेत्र में योगदान ढूंढने के लिए गूगल की हिम्मत भी जवाब दे जाती है, लेकिन ऐसे लोगों को सम्मानित करने के लिए सरकार की हिम्मत की दाद दी जाती है। कई बार तो ऐसा प्रतीत होता है किसी व्यक्ति को किसी क्षेत्र या विषय में केवल इसीलिए सम्मानित किया गया है क्योंकि उस व्यक्ति ने उस क्षेत्र/विषय में काम ना करके उस क्षेत्र/विषय पर बहुत बड़ा उपकार किया है, जो कि सम्मान किए जाने लायक है। 
 
पहले जिन्हें भ्रष्ट और बेईमान घोषित कर दिया गया है, उनका हृदय परिवर्तन करने और उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए भी ये पुरस्कार अपनी महती भूमिका निभा रहे हैं। इसलिए ज़रूरी नहीं है कि पुरस्कार केवल अच्छे लोगों को ही दिया जाए, ज़्यादा ज़रूरी है कि इन पुरस्कारों से समाज में अच्छाई स्थापित की जाए। पद्म पुरस्कार की "बंदरबाट" आम आदमी की समझ से बाहर होती है क्योंकि "बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद।"
 
विपक्षी दलों द्वारा अक्सर ये आरोप लगते हैं कि पद्म पुरस्कार राजनीति से प्रेरित होकर दिए जा रहे है, हालांकि ये बात अलग है कि ये आरोप भी राजनीति से ही प्रेरित होते है। तो जैसे लोहा लोहे को काटता है वैसे ही राजनीति भी को काटती है। पुरस्कारों में राजीनीति का प्रवेश एक अच्छा संकेत है क्योंकि जब तक हम राजनीति को हर जगह नहीं घुसा देते तब तक राजनीति पवित्र नहीं हो सकती है क्योंकि राजनीति का भगवान की तरह पवित्र होने के लिए उसका भगवान की तरह सर्वव्यापक होना ज़रूरी है।

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