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मनीला में भारत की सफल कूटनीति

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अवधेश कुमार

यह आजाद भारत के इतिहास में पहली बार होगा कि हमारे गणतंत्र दिवस समारोह में इस बार एक साथ दस देशों के राष्ट्राध्यक्ष मुख्य अतिथि के रूप में विराजमान होंगे। फिलीपीन्स की राजधानी मनीला में हुए आसियान शिखर सम्मेलन तथा पूर्व एशिया शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आसियान के दसों सदस्य देशों को निमंत्रण दिया और सबने इसे स्वीकार कर लिया।
 
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 125 करोड़ भारतीय 2018 के गणतंत्र दिवस में आसियान नेताओं के स्वागत की प्रतीक्षा कर रहे हैं। आसियान यानी एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस वह संगठन है जिसे आपसी व्यापार और रक्षा संबंधों को बढ़ावा देने के लक्ष्य से शुरू किया गया था। थाईलैंड, वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपीन, सिंगापुर, म्यांमार, कंबोडिया, लाओस और ब्रुनेई इसके सदस्य देश हैं। यह भारतीय कूटनीति का बहुत बड़ा कदम है जिससे चीन निश्चय ही परेशान हो रहा होगा। यहां भारतीय कूटनीति जिस सघनता से सक्रिय रहा उसके परिणाम स्पष्ट हैं।
 
 
मोदी को अच्छी तरह पता था कि मेजबान फिलीपींस मुस्लिम चरमपंथ का सामना कर रहा है। ऐसे में सम्मेलन में आतंकवाद एक बड़ा मुद्दा होगा। साथ ही यह शिखर सम्मेलन दक्षिण चीन सागर में चीन की विस्तारवादी नीतियों और उत्तर कोरिया के परमाणु महत्वाकांक्षा की पृष्ठभूमि में हो रहा था इसका भी आभास उन्हें था। दक्षिण चीन सागर विवाद से आधे सदस्य सीधे तौर पर जुड़े हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने इन सबको ध्यान में रखकर अपना भाषण दिया और उसको व्यापक समर्थन मिला। मोदी ने आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में संयुक्त प्रयासों का आह्वान करते हुए कहा कि हमारे समक्ष एकजुट होकर आतंकवाद को खत्म करने के बारे में सोचने का समय आ गया है।
 
 
फिलीपींस के राष्ट्रपति रॉबर्ट दुतेर्ते ने भी अपने कुछ अनुभवों का जिक्र करते हुए कहा कि आतंकवाद किस तरह क्षेत्र के लिए खतरा बना हुआ है। आतंकवाद को लेकर पहली बार आसियान में मुखर सर्वसम्मति का स्वर सुनाई दिया है। प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी कहा कि क्षेत्र के लिए नियम आधारित सुरक्षा व्यवस्था ढांचे के लिए भारत आसियान को अपना समर्थन जारी रखेगा। इसमें भले ही उन्होंने चीन का नाम नहीं लिया लेकिन सीधे निशाने पर चीन ही था। उनके नियम आधारित सुरक्षा व्यवस्था ढांचे के प्रस्ताव को व्यापक समर्थन मिला। ऐसा होना ही था, क्योंकि चीन जिस ढंग से जबरन अपना सुरक्षा ढांचा दक्षिण चीन सागर में खड़ा कर रहा है, उससे सभी देश चिंतित हैं।
 
 
प्रधानमंत्री ने सम्मेलन के इतर कई नेताओं से द्विपक्षीय और प्रतिनिधिमंडल स्तर की मुलाकात की। इनमें अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैल्कम टर्बुनेल, चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग, न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री जेसिंडा एर्डेर्न, रूस के प्रधानमंत्री दिमित्री मेदवदेव, ब्रुनेई के सुल्तान हसनाल बोलकिया, कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन सेन, मलेशिया के प्रधानमंत्री नजीब रजाक, वियतनाम के प्रधानमंत्री नेगूयेन झान फुक एवं म्यांमार की स्टेट काउंसलर आंग सान सू की। इनमें अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात सबसे महत्वपूर्ण रही। दोनों नेताओं के बीच चार महीने में यह दूसरी मुलाकात थी।
 
 
व्हाइट हाउस ने कहा है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक नई मंत्रीस्तरीय वार्ता का तंत्र शुरू कर हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में शांति एवं स्थिरता बढ़ाने पर सहमत हुए हैं, जो दोनों देशों के रणनीतिक विचार-विमर्श को आगे ले जाएगा। ट्रंप ने अमेरिका से भारत को कच्चे तेल की प्रथम खेप भेजे जाने के कदम का स्वागत किया, जो इस महीने टेक्सास से शुरू होगा। हाल के महीनों में भारत ने अमेरिका से 10 मिलियन बैरल तेल खरीदा है। ट्रंप ने भरोसा जताया कि ऊर्जा क्षेत्र में दोनों देशों के बीच संबंध काफी मजबूत होंगे और वो वैश्विक स्तर पर व्यापक परिवर्तन लाने वाला साबित होगा। भारतीय तेल कंपनियां अगले एक साल में अमेरिका से दो अरब डॉलर का तेल खरीदना चाहती हैं। व्हाइट हाउस ने बयान में कहा कि ट्रंप ने वादा किया कि अमेरिका भारत को विश्वसनीय और दीर्घकालीन आपूर्ति जारी रखेगा।
 
 
व्हाइट हाउस से जारी बयान में कहा गया कि मोदी और ट्रंप ने दोनों देशों के बीच रक्षा साझेदारी आगे ले जाने पर भी जोर दिया। दोनों ने ही कहा कि भारत और अमेरिका दुनिया के दो महान लोकतंत्र हैं और इन्हें इसी रास्ते पर चलते हुए दुनिया की सबसे मजबूत और ताकतवर सेना भी बनना होगा। निश्चय ही दुनिया की सबसे मजबूत सेना की बात पर चीन चिंतित होगा। भारत और अमेरिका मिलकर ग्लोबल एन्टरप्रेन्योरशिप समिट आयोजित करने जा रहे हैं। मोदी ने ट्रंप से कहा कि भारत इसे दोनों देशों के बीच सहयोग के नए दौर की तरह देख रहा है। नरेंद्र मोदी ने कहा कि दोनों देश आपसी हितों से ऊपर उठकर साथ में काम कर रहे हैं। राष्ट्रपति ट्रंप पिछले दिनों जहां भी गए हैं, जहां भी उन्हें भारत के बारे में कहने का मौका मिला है उन्होंने भारत के बारे में बड़ी बातें कहीं हैं। मैं भी विश्वास दिलाता हूं कि विश्व की भारत से जो उम्मीदें हैं, अमेरिका की जो अपेक्षाएं हैं, उन पर वह खरा उतरने के लिए भरपूर कोशिशें करता रहा है और करता रहेगा। मोदी ने उत्तर कोरिया की हकरतों के खिलाफ दुनिया को एकजुट करने में ट्रंप के मजबूत नेतृत्व को लेकर उनका शुक्रिया अदा किया। यह वहां के वातावरण के अनुकूल था। वैसे भी पूरी दुनिया में उत्तर कोरिया की नाभिकीय आक्रामता चिंता का कारण बनी हुई है। इसमें भारत बिलकुल चुप्पी नहीं साध सकता।
 
 
दूसरी महत्वपूर्ण बैठक जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ थी। भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि भारत ने अपने खास और भरोसमंद साझेदार के साथ बैठक की। दोनों देशों के बीच रणनीतिक वैश्विक साझेदारी को लेकर चर्चा हुई। भारत-जापान के बीच बातचीत में आपसी हित के अलावा हिन्द प्रशांत क्षेत्र का मुद्दा प्रमुख रहा। आबे और ट्रंप से मुलाकात के पहले भारत के अधिकारियों ने अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ हिन्द प्रशांत क्षेत्र पर बातचीत की थी। यह इस पूरे आयोजन के बीच का सबसे महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक कार्यक्रम था। पिछले महीने जापान के विदेश मंत्री तारो कानो ने कहा था कि हम मानते हैं कि चार देशों की बातचीत चारों देशों की रणनीतिक साझेदारी और मजबूत होगी। इसमें हिन्द प्रशांत क्षेत्र को खुला और कारोबार के लिहाज से बेहतर बनाने पर विचार हुआ। पहली चतुर्पक्षीय बैठक से साफ तनाव में दिख रहे चीन ने इस पर कोई सीधी प्रतिक्रिया तो नहीं दी है, लेकिन इस समूह से उसे दूर रखे जाने पर सवाल जरूर खड़े किए हैं। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने कहा कि संबंधित प्रस्ताव पारदर्शी और समग्र होना चाहिए। यह पूछे जाने पर कि संबंधित पक्षों को बाहर करने से उनका तात्पर्य चीन को इसमें शामिल नहीं करने से है, तो गेंग ने कहा कि चीन संबंधित देशों के बीच दोस्ताना सहयोग का स्वागत करता है। उन्होंने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि इस तरह के संबंध तीसरे पक्ष के खिलाफ नहीं होंगे और क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के अनुकूल होंगे।
 
 
एशिया-प्रशांत संकल्पना की जगह पर हिंद-प्रशांत संकल्पना काफी महत्वपूर्ण है। भारत नाम पर एक ही महासागर है जिसको इसमें जोड़ा गया है। पहले जब एशिया प्रशांत की कल्पना की गई तो उसमें अमेरिका के अलावा पूर्वी एशियाई देश ही थे। अब भारत को इसमें सर्वाधिक महत्व मिला है। अमेरिका ने कहा था कि एशिया-प्रशांत के स्थान पर नया शब्द हिंद-प्रशांत भारत के उभरते महत्व को दर्शाता है। हालांकि ह्वाइट हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा था कि यह रणनीति निश्चित तौर पर चीन पर लगाम कसने के लिए नहीं है। हिंद-प्रशांत का व्यापक अर्थ हिंद महासागर और प्रशांत महासागर क्षेत्र से है जिसमें विवादित दक्षिण चीन सागर भी है जहां वियतनाम, मलयेशिया, फिलिपींस और ब्रुनेई लगभग पूरे जलमार्ग पर चीन के दावे पर सवाल उठाते हैं। साफ है कि यह चीन को सीधे प्रभावित करने वाला कदम है।
 
 
कोई कुछ कहे स्पष्ट है कि इस पहल का उद्देश्य इलाके में चीन के आक्रामक रुख का प्रतिरोध करना है। सभी देश इस बात पर सहमत हुए कि मुक्त, खुला, समृद्ध और समग्र हिंद-प्रशांत क्षेत्र के सभी देशों और खासकर दुनिया के हितों के अनुकूल है। चीन की बढ़ती सैन्य और आर्थिक ताकत के बीच इन देशों ने माना है कि स्वतंत्र, खुला, खुशहाल और समावेशी हिन्द प्रशांत क्षेत्र से दीर्घकालिक वैश्विक हित जुड़े हैं। सच कहा जाए तो हिन्द प्रशांत क्षेत्र विश्व में एक नए दौर की शुरुआत है जिसमें भारत की केन्द्रीय भूमिका को स्वीकार किया गया है। इससे हमारी जिम्मेवारियां भी बढ़ी हैं। निश्चय ही भारतीय प्रधानमंत्री ने मनीला जाने के पूर्व अपना पक्ष रखने तथा इसको आगे ले जाने के लिए सूत्र देने की व्यापक तैयारी की थी।

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